एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेई ने जवाहरलाल नेहरू की तारीफ की थी! भारत रत्न से सम्मानित और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। राजनीति में विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मतभेद आम बात है। एक दल का नेता दूसरे दल के नेता की आलोचना करता है। इसके बावजूद उसके गुणों की प्रशंसा भी समान रूप से करता है। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे कई नेता हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी उसी श्रेणी के नेता है। हालांकि, मौजूदा दौर की राजनीति में ऐसे नेता बेहद कम हो चुके है। मौजूदा राजनीतिक दौर में आलोचना के साथ ही भाषा के स्तर में गिरावट साफ नजर आती है। इस बात पर का जिक्र प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किया। अटल बिहारी वाजयेपी ने सदन में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जिक्र करते हुए इस पर चिंता जताई थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ऐसा नहीं था कि नेहरू जी से मतभेद नहीं थे। उनका कहना था कि मतभेद चर्चा में भी गंभीर रूप से उभर कर सामने आते थे। वाजपेयी ने एक बार पंडित नेहरू से कह दिया था कि आपका एक मिलाजुला व्यक्तित्व है। आपमें चर्चिल भी है और चेंबरलेन भी। पंडित नेहरू इस बात पर नाराज नहीं हुए थे। उस भाषण के बाद शाम को पंडित नेहरू की अटल बिहारी वाजपेयी से किसी बेंक्वेट में मुलाकात हुई। अटल से मिलने पर नेहरूजी ने कहा कि आज तो बड़ा जोरदार भाषण दिया। इसके बाद हंसते हुए चले गए। वाजपेयी ने अपने भाषण में कहा था कि आजकल ऐसी आलोचना करना दुश्मनी को दावत देना है।
तत्कालीन पीएम वाजपेयी का कहना था कि यदि आजकल लोगों की ऐसी आलोचना कर दी जाए तो लोग बोलना बंद कर देंगे। अटल बिहारी वाजपेयी का कहना था कि क्या एक राष्ट्र के नाते हम लोग मिलकर काम नहीं कर सकते। यह पहली बार नहीं था जब अटल बिहारी ने वाजपेयी की तारीफ की है। अटल वाजपेयी के मन में पंडित नेहरू को लेकर विशेष सम्मान था। यह सम्मान उस समय भी दिखा जब वाजपेयी इमरजेंसी के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने। जनता पार्टी की सरकार बनने पर नौकरशाहों की तरफ से सभी सरकारी दफ्तरों से कांग्रेसी प्रतीकों, तस्वीरों को हटावाया जा रहा था। अधिकारियों को लगता था कि ऐसा नहीं करने से गांधी विरोधी सत्ता में आई सरकार के मंत्री नाराज हो जाएंगे। वाजपेयी जब अपने ऑफिस में पहुंचे तो वहां एक जगह खाली दिखाई दी। उन्होंने तुरंत अपने सचिव को बुलाया। वाजपेयी ने कहा कि यहां पर नेहरूजी की तस्वीर हुआ करती थी, वो कहां गई? मुझे तुरंत वो वापिस चाहिए।
पंडित नेहरू शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण कौशल के मुरीद थे। वाजपेयी के मन में भी उनके लिए उतना ही सम्मान था। पंडित नेहरू के निधन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कविता के जरिये नेहरू को भावुक श्रद्धांजलि दी थी। अटल ने कहा था, ‘ आज एक सपना खत्म हो गया। एक गीत खामोश हो गया। एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई। अटल ने कहा था कि यह एक चिराग की ऐसी लौ थी जो पूरी रात जलती थी। हर अंधेरे का सामना किया और हमे रास्ता दिखाया। आपको बता दें कि वाजपेयी उन शख़्सियतों में शामिल थे, जो लाइमलाइट में रहना पसंद करते हैं। वह कहती हैं, ‘वह स्टेज परफॉर्मर, कवि और आला दर्जे के बहसजीवी थे। उन्हें आकर्षण का मुख्य केंद्र बनने में मजा आता था। उनका अपने पिता के साथ रिश्ता भी काफी अच्छा था, जबकि उनके पिता की विचाराधारा समाजवादी थी।’वाजपेयी के भीतर अपने विरोधियों को जीतने का हुनर था। वह रिफॉर्म का तरीका भी जानते थे। सागरिका कहती हैं, ‘बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने एक इंटरव्यू के दौरान मुझे बताया था कि संघ नौजवान वाजपेयी के जुनून से खासा प्रभावित था। वह हिंदू धर्म के बारे में जिस तरह से बात करते, उसे हर कोई मंत्रमुग्ध होकर सुनता। वह कविता और गद्य भी लिखते थे। इसलिए वह एकदम से संघ के ख़ास बन गए। ‘
संघ में कद बढ़ने के बाद वाजपेयी लखनऊ आए, दीनदयाल उपाध्याय की एक पत्रिका निकालने में मदद करने। यहां से पूरी तरह से आरएसएस के रंग में रंगकर निकले। 1951 में जवाहर लाल नेहरू का मंत्रिमंडल छोड़ने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपनी पार्टी बनाने के लिए स्वयंसेवक तलाश रहे थे। उस वक़्त एमएस गोलवलकर ने मुखर्जी को वाजपेयी पर दांव लगाने का सुझाव दिया। मुखर्जी ने वाजपेयी को सहायक के रूप में साथ रख लिया। वाजपेयी की सियासत में एंट्री के बारे में बताते हुए सागरिका कहती हैं, ‘मुखर्जी कांग्रेस का विकल्प तैयार करना चाहते थे। वाजपेयी उन्हीं के ज़रिए राजनीति में आए। उनका सियासत में आगमन हिंदू राष्ट्र के सांस्कृतिक योद्धा के तौर पर नहीं हुआ।’ इसमें कोई शक नहीं कि वाजपेयी की शख़्सियत कमाल की थी। इसी की बदौलत वह बहुत जल्द तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नज़रों में आ गए।