जब 94 साल पहले हीरा बा संग बांदा पहुंचे थे बापू!

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एक ऐसी घटना जब बापू हीरा बा संग बांदा पहुंचे थे! आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी का बांदा से गहरा नाता रहा है। ब्रिटिश राज से देश को मुक्ति दिलाने के लिए महात्मा गांधी आजादी की अलख जगाने जब भारत के भ्रमण पर निकले थे। तब 1929 में वह बांदा भी आए थे। उनके आने पर शहर में प्रभात फेरी निकाली गई थी। इसी दौरान शहर कोतवाली में सीढ़ी लगाकर स्वयं चढ़कर बिल्डिंग के ऊपर पहुंचे और चरखा वाला तिरंगा फहराकर क्रांतिकारियों में जोश भरने का काम किया था। उस समय उनके साथ कस्तूरबा गांधी भी थी। इस बारे में जानकारी देते हुए क्रांतिकारी पंडित गोपीनाथ दनादन के उत्तराधिकारी पुत्र सत्य प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि 1929 में रावी नदी के तट पर लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें प्रतिनिधि के रूप में बांदा से क्रांतिकारी गोपीनाथ दनादन भी शामिल हुए थे। इसी सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। साथ ही इसी अधिवेशन में देश को पूर्ण गणराज्य घोषित किया गया था। सत्य प्रकाश द्विवेदी बताते हैं कि उनके पिता ने बताया था कि इस अधिवेशन में महात्मा गांधी की गोद में इंदिरा जी बैठी थी, उस समय उनकी उम्र 9 वर्ष थी।

गोपीनाथ दनादन के पुत्र सत्य प्रकाश बताते हैं कि 1929 में महात्मा गांधी देश प्रेम की अलख जगाने के लिए फतेहपुर के रास्ते नवंबर माह में बांदा आए थे। उनके साथ उस समय जे वी कृपलानी, महादेव देसाई और कस्तूरबा गांधी भी थी। वह अपने साथ सफेद बकरी लेकर आए थे जिसका दूध वह स्वयं पीते थे।

बांदा आगमन के दौरान हुए शहर के कटरा स्थित कुंवर हर प्रसाद सिंह की कोठी में रुके थे और चौधरी चंद्रभूषण सिंह की बग्घी में सवार होकर पूरे नगर का भ्रमण किया था। भ्रमण के दौरान जनपद के समस्त क्रांतिकारी जिनमें कुंवर हर प्रसाद सिंह चौधरी, चंद्रभूषण सिंह, पंडित रूद्रदेव शर्मा क्रांतिकारी पंडित गोपीनाथ दनादन मैयादीन सिंह ,हल्का लोहार, जगन्नाथ करवरिया, राम बहोरी करवरिया, राजा राम रुपौलिहा और रामगोपाल तिवारी इत्यादि शामिल थे।

जब महात्मा गांधी प्रभात फेरी में निकले उसे समय सर में बांधें कफनवा शहीदों की टोली निकली, वंदे मातरम और भारत माता की जय का उद्घोष करते हुए हजारों लोग गांधी जी के काफिले में चल रहे थे। यह काफिला जब कोतवाली के समीप पहुंचा तब महात्मा गांधी ने एक लकड़ी की सीढ़ी मंगवाई और उसे लगाकर कोतवाली की इमारत में चढ़ गए। उन्होंने उस इमारत में भारत मां का जयकारा लगाते हुए चरखा वाला तिरंगा फहराया था। प्रभात फेरी के बाद महात्मा गांधी का काफिला हमीरपुर के लिए रवाना हो गया था। बता दें कि वह महज साल के थे, तो उनकी शादी पोरबंदर के एक व्यापारी परिवार की बेटी कस्तूरबा से कर दी गई। कस्तूरबा मोहनदास से उम्र में 6 माह बड़ी थीं। उसके बाद साल की उम्र में ही गांधी जी एक बेटे के पिता बन गए। लेकिन उनका यह पुत्र जीविन नहीं रहा था। बाद में कस्तूरबा और गांधी जी के चार बेटे हुए, जिनके नाम हरिलाल, मनिलाल, रामलाल और देवदास था। गांधी जी शादी के बाद पढ़ने के लिए विदेश चले गए, जहां से वह वकालत की पढ़ाई करके वापस आए।

बापू ने स्वदेश लौटकर स्वतंत्रता संगाम की लड़ाई में हिस्सा लिया। इस दौरान कस्तूरबा उनका साथ देती रहीं। 1919 में अंग्रेजों के राॅलेट एक्ट कानून के खिलाफ गांधी जी ने विरोध किया। इस एक्ट में बिना मुकदमा चलाए किसी व्यक्ति को जेल भेजने का प्रावधान था। उसके बाद गांधी जी ने अंग्रेजों के गलत कानून और कार्यशैली के खिलाफ सत्याग्रह की घोषणा की। गांधी जी के आंदोलनों के चलते पूरे देश में वह प्रसिद्ध होने लगे थे। कई गरम और नरम दल के नेता गांधी जी से प्रभावित थे और उनका सम्मान करते थे। इन्हीं में एक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन के जरिए पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया गया था। गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। उस दौरान नेताजी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी और रेडियो के जरिए महात्मा गांधी से आशीर्वाद मांगा था। अपने भाषण के अंत में सुभाष चंद्र बोस ने कहा, ‘हमारे राष्ट्रपिता, भारत की आजादी की पवित्र लड़ाई में मैम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना कर रहा हूं।’

आखिरकार गांधी जी समेत कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान सफल हुआ और 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिल गई। उसके बाद 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी। अहिंसा का संदेश देने वाले इस महान विभूति के जीवन का अंत हो गया। इसी के साथ नेताजी द्वारा पहली बार राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी देश के हर नागरिक के लिए राष्ट्रपिता बन गए।