इतिहास में ऐसे कई कलेक्टर हुए हैं जो नेताओं के दाहिने हाथ बनकर सामने आए! पूर्व नौकरशाह वीके पांडियन बीजू जनता दल बीजेडी में शामिल हो गए हैं। उन्हें ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का खासमखास माना जाता है। उन्होंने सरकारी सेवा से वॉलेंटरी रिटायरमेंट लेने से पहले पिछले महीने तक मुख्यमंत्री के निजी सचिव के तौर पर काम किया था। इसके तुरंत बाद पांडियन को कैबिनेट मंत्री के पद के साथ 5T परिवर्तनकारी पहल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका दिए जाने की अटकलें हैं। इस बीच सभी की निगाहें पांडियन के अगले कदम पर हैं। नौकरशाहों का राजनीति में एंट्री का यह पहला मामला नहीं है। उनके पहले कई आईएएस अधिकारियों ने यह रास्ता अपनाया। इन सभी के नेताओं के साथ जबर्दस्त रिश्ते थे। आइए, यहां उन्हीं में से कुछ के बारे में जानते हैं। अजीत जोगी ने जब राजनीति में आने का फैसला किया तब वह जिला कलेक्टर थे। वह 1968 बैच के आईएएस अधिकारी थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर अजीत जोगी कांग्रेस में शामिल हुए थे। बाद में जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। एक समय गांधी परिवार के वफादार रहे जोगी को भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों के कई आरोपों का सामना करना पड़ा। आखिरकार 2016 में अपने विधायक बेटे के छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद आदिवासी नेता ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया। 2020 में अजीत जोगी का निधन हो गया था।
रायपुर के जिलाधिकारी ओपी चौधरी 2018 में बीजेपी में शामिल हुए थे। आईएएस अधिकारी ने अचानक अपने पद और सर्विस से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था। उन्हें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है। ओपी चौधरी को नक्सल प्रभावित इलाकों के विकास के लिए 2011-12 में प्रधानमंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। चौधरी 22 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी बन गए थे। उनके पिता दीनानाथ चौधरी टीचर थे। ओपी चौधरी जब दूसरी कक्षा में ही थे तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पैतृक गांव में पूरी की। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ओपी चौधरी को बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा है।
आरके सिंह 1975 बैच के बिहार-कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी थे। उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव के रूप में काम किया। वह 1990 में समस्तीपुर के जिलाधिकारी थे। 2013 में आरके सिंह ने नौकरशाही छोड़कर पॉलिटिक्स में एंट्री की। वह बीजेपी में शामिल हुए। अभी वह केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। उनके पास बिजली, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा का प्रभार है। आरके सिंह बिहार के सुपौल जिले के मूल निवासी हैं। ऐसी अटकलें थीं कि सिंह 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार के आरा या सुपौल निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनके सुपौल से चुनाव लड़ने पर आपत्ति जताई थी। फिर सिंह ने आरा में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उन्होंने राजद के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्रीभगवान सिंह कुशवाहा को 1,35,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव भी उन नौकरशाहों की फेहरिस्त में हैं जिन्होंने बाद में राजनीति में कदम रखे। अश्विनी वैष्णव बालासोर और कटक जिलों में कलेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने 2003 तक ओडिशा में काम किया। फिर उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में उप सचिव नियुक्त किया गया। बाद में वह वाजपेयी के निजी सचिव बने। UPSC मे उनकी 27वीं रैंक आई थी। वह IIT कानपुर के छात्र रहे हैं। वह राज्यसभा में ओडिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पूर्व आईएएस अधिकारी नीलकंठ टेकाम ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा था। टेकाम कोंडागांव के जिलाधिकारी रह चुके हैं। बीजेपी ने उन्हें केशकाल विधानसभा सीट से टिकट दिया। जब उन्होंने वॉलेंटरी रिटायरमेंट के लिए आवेदन किया था तब वह राजकोष और लेखा निदेशक थे। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग चौधरी 22 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी बन गए थे। उनके पिता दीनानाथ चौधरी टीचर थे। ओपी चौधरी जब दूसरी कक्षा में ही थे तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पैतृक गांव में पूरी की। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ओपी चौधरी को बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा है।डीओपीटी ने 17 अगस्त को उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया था। नीलकंठ मूल रूप से कांकेर जिले के अंतागढ़ के रहने वाले हैं। लेकिन, उनकी कर्मभूमि केशकाल रही। इसी को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें केशकाल सीट से टिकट दिया।