Friday, November 22, 2024
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जब इंटरनेट के लिए तोड़ दी पिता की नाक!

हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जहां एक इंटरनेट के लिए एक बेटे ने पिता की नाक तोड़ दी! इन दिनों ऑनलाइन गेमिंग का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। ऑनलाइन गेमिंग की नशा बच्चों पर सबसे ज्यादा चढ़ रहा है। दिल्ली से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक 14 साल के एक लड़का ऑनलाइन गेम खेलने का इतना आदी था कि जब उसके पिता ने वाईफाई बंद करने की कोशिश की तो उसने उनकी नाक तोड़ दी। इसके अलावा एक 16 साल की लड़की ने ऑनलाइन बुलिंग से परेशान होकर खुद को चोट पहुंचा ली। एक 12 साल का लड़का ऑनलाइन गेम छोड़ना नहीं चाहता था, इसलिए वो स्कूल जाने से ही इनकार कर गया और पढ़ाई छोड़ दी। एक 28 साल का आदमी ऑनलाइन जुआ खेलने और गलत चीजों वाली वेबसाइट्स देखने में इतना डूब गया कि उसने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने घर का सामान बेचकर और अपने माता-पिता के बैंक खाते से चोरी करके भी अपनी लत को पूरा करने लगा। ये सारे मामले एम्स लत संबंधी क्लिनिक के हैं, जो बताते हैं इंटरनेट की लत उतनी ही असली और खतरनाक है जितनी शराब, तंबाकू या ड्रग्स की लत होती है। स्टडी बताते हैं कि 15-16 साल के बच्चे इंटरनेट की लत के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं, इसलिए एम्स का ये क्लिनिक नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग के साथ मिलकर अगले महीने सीबीएसई स्कूलों में साइबर जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है। एम्स द्वारा बनाया गया ये कार्यक्रम साइबर सुरक्षा और डिजिटल सेहत पर ध्यान देगा। इसका मकसद शिक्षकों को यह सिखाना है कि वे कैसे बच्चों को सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करने में मदद कर सकते हैं।

एम्स के नेशनल ड्रग डिडेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री यतन पाल सिंह बलहारा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को इलाज के बारे में बताया कि ‘मरीज और उनकी देखभाल करने वालों का पूरा एनालिसिस किया जाता है। इसके बाद बीमारी का पता लगाया जाता है। कुछ मामलों में ये मानसिक बीमारी मानी जाती है, तो कुछ में शराब या घबराहट जैसी दूसरी मानसिक समस्याएं भी हो सकती हैं। इलाज में आमतौर पर दवाइयां और थैरेपी दोनों शामिल होते हैं। दवाइयों से इस चीज की तलब को कम किया जाता है और दवा बंद करने के बाद होने वाली परेशानियों को दूर किया जाता है, वहीं थैरेपी से घबराहट जैसी समस्याओं और मुश्किलों से लड़ने के तरीकों को सिखाया जाता है।’

इंटरनेट की लत के शरीर पर भी कई बुरे असर होते हैं, जैसे आंखों में सूखापन, माइग्रेन, कमर दर्द, बेवक्त खाना, नींद न आना, साफ-सफाई में कमी और हाथ की कलाई में दर्द (कार्पल टनल सिंड्रोम)। लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी ये लत परिवार में रिश्तों को खराब करती है। घर में लड़ाई-झगड़े होना आम हो जाता है। बच्चे गुस्से में माता-पिता से बदतमीजी करते हैं और कभी-कभी अपने कमरे में बंद भी हो जाते हैं।

ऑनलाइन जुआ खेलना 18 से 30 साल के लोगों में इंटरनेट की लत का सबसे आम रूप बन गया है। इनके पास थोड़े बहुत पैसे होते हैं और ऑनलाइन जुए के लिए आसानी से वेबसाइट मिल जाती हैं, जिसकी वजह से ये लोग इसी में उलझकर आर्थिक रूप से बर्बाद हो जाते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि नशे की लत छुड़ाने के तरीके सीधे तौर पर इंटरनेट की लत छुड़ाने में कारगर नहीं होते। बच्चों का फोन या इंटरनेट छीन लेने के बजाय उन्हें सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करना सिखाना ज़्यादा जरूरी है। उनका कहना था कि हमारा लक्ष्य टेक्नोलॉजी से दूर भागना नहीं है, बल्कि उसके साथ रहना और सीखना है। हमें डिजिटल दुनिया के साथ संतुलित और टिकाऊ रिश्ता बनाना चाहिए।

बच्चों का इंटरनेट चलाना गलत नहीं है, लेकिन इस पर ज्यादा निर्भरता खतरनाक हो सकती है। आईटीएल पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल सुधा आचार्य बताती हैं कि बच्चे अक्सर माता-पिता से झूठ बोलते हैं कि वो फोन पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सीबीएसई ने सभी स्कूलों को स्कूल परिसर और स्कूल बसों में स्मार्टफोन इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। उन्होंने यूनेस्को की 2023 की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि टेक्नोलॉजी पढ़ाई के दायरे को तो बढ़ाती है, लेकिन स्मार्टफोन के इस्तेमाल से बच्चों पर बुरा असर भी पड़ता है, जिससे उनका ध्यान भटकता है, चीजों को सीखने और समझने की शक्ति कमजोर होती है और मानसिक सेहत भी खराब होती है, जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई भी बिगड़ सकती है।

बच्चों के इलाज में माहिर मनोचिकित्सक जितेंद्र नागपाल का कहना है कि माता-पिता और शिक्षकों को साथ मिलकर कई तरह की गतिविधियां करनी चाहिए, ताकि बच्चों की इंटरनेट की लत को कम किया जा सके। जितेंद्र नागपाल किशोरों और छोटे बच्चों की मानसिक बीमारियों के एक्सपर्ट हैं। उन्होंने बताया कि कोविड महामारी के कारण बच्चों की इंटरनेट की लत और बढ़ गई है। उन्होंने यह भी कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए, उनकी तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। उन्हें बच्चों के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए, ताकि बच्चे खुद को अकेला न समझें।’

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