एक समय ऐसा था जब भारत के दौरे पर चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग जेमिन आए थे! चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग जेमिन का 96 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। जेमिन को चीन के सुधारवादी नेताओं में शुमार किया जाता है। उन्होंने चीन की आंतरिक नीतियों को लेकर प्रभावी कदम तो उठाए ही, विदेशों से चीन के संबंधों को भी नई धार दी। बतौर राष्ट्रपति जेमिन 1996 में भारत की यात्रा पर आए थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थी। जेमिन और वाजपेयी की बातचीत ने चीन और भारत के रिश्ते को थोड़ी प्रगाढ़ता दी। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया। हालांकि, बदले में चीन ने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा माना और सिक्किम के रास्ते भारत-चीन के बीच व्यापार की हामी भरी गई। तिब्बत पर भारत की नीति में बदलाव को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भूल के तौर पर भी देखा जाता है। हालांकि, एक पक्ष यह भी है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी 1954 में एक समझौते के तहत तिब्बत को चीन का हिस्सा मान चुके थे। हालांकि, उसमें एक पेच है। क्या अटल ने तिब्बत पर तब भूल की थी और 1996 में अटल का कदम 1954 में नेहरू के तिब्बत पर उठाए गए कदम से कैसे अलग था?
एक दौर था जब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगा करते थे। उसी दौर में पंडित नेहरू ने तिब्बत में चीनी शासन को स्वीकृति दी थी। दरअसल, 1954 में चीन और भारत के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए पांच सिद्धांतों पर सहमति बनी थी। लेकिन जब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लग रहे थे, उसी वक्त चीन अपने नक्शे में भारत के कई इलाकों को दिखा रहा था। नेहरू ने जब आपत्ति जताई तो चीन ने कहा कि नक्शे में गलतियां हैं। हालांकि, उसने नया और सही नक्शा पेश नहीं किया। फिर 1959 में जब तिब्बत में विद्रोह हुआ तो दलाई लामा को भारत ने शरण दे दी। अब चिढ़ने की बारी चीन की थी। माओत्से तुंग ने कहा कि तिब्बत में ल्हासा विद्रोह भारतीयों के कारण हुआ था। कुल मिलाकर एक तरफ हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लग रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर कटुता बढ़ रही थी। आखिरकार 19 अक्टूबर, 1962 की सुबह 4 बजे ही चीन ने लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए। चीनी सैनिकों ने अचानक गोलियों की बौछार कर दी। पांच घंटों में ही सुबह नौ बजते-बजते ऐसा लग रहा था मानो आसमान फट पड़ा हो। पीठ में छुरा घोंपने की इस घटना ने चीन पर से भारत का भरोसा हिला दिया। भारत अब तक चीन की नीयते को हमेशा संदेह के नजरिए से देखता है।
बहरहाल, 1962 युद्ध के बाद 24 जुलाई, 1976 को भारत-चीन के बीच राजनयिक संबंधों को दुबारा बहाल किया गया। उसके 20 वर्ष बाद पहली बार चीन के राष्ट्रपति का भारत दौरा हुआ। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, वो राष्ट्रपति थे जियांग जेमिन। अटल बिहारी वाजपेयी और जियांग जेमिन ने क्रमशः तिब्बत को चीन का और सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया। हालांकि, तब कहा गया था कि यह मान्यता परोक्ष है, आधिकारिक नहीं। उस वक्त भारत सरकार के अधिकारियों ने कहा था कि पूरे तिब्बत को नहीं बल्कि उस हिस्से को ही मान्यता दी गई है जिसे स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र माना जाता है। लेकिन वर्ष 2003 में इसे आधिकारिक स्वरूप भी दे दिया गया। आधिकारिक तौर पर वर्ष 2003 में भारत ने तिब्बत पर चीनी शासन को मान्यता दे दी। उस वक्त भी अटल बिहारी वाजपेयी ही भारत के प्रधानमंत्री थे। जहां तक बात पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के तिब्बत को चीनी शासन अधीन स्वीकार करने की बात है तो वह सिर्फ आठ वर्षों के लिए था। 1962 में चीनी हमले के साथ ही समझौता खत्म हो गया था।
उन्होंने जुलाई 2017 में बीबीसी की हिंदी न्यूज वेबसाइट से बातचीत में कहा था कि पहली बार 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना और बदले में चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा स्वीकार किया। लेकिन यह अटल का दूरदर्शी भरा कदम नहीं था। वो अपनी दलील में कहते हैं कि वाजपेयी जब पीएम नहीं थे, तब वो तिब्बत को स्वतंत्र देश कहा करते थे। उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘वाजेपयी सरकार को रणनीतिक तौर पर इसे टालना चाहिए था। उस वक्त हमने तिब्बत के बदले सिक्किम को सेट किया था। चीन ने सिक्किम को मान्यता नहीं दी थी लेकिन जब हमने तिब्बत को उसका हिस्सा माना तो उसने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी वो रणनीतिक भूल थी और हमने बहुत जल्दीबाजी में ऐसा किया था। हमें तिब्बत को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए था। शुरू से हमें एक स्टैंड पर कायम रहना चाहिए था। हमें बिल्कुल साफ कहना चाहिए था कि चीन ने तिब्बत पर अवैध कब्जा कर रखा है और यह स्वीकार नहीं है।’
बहरहाल, जियांग जेमिन ने तियानमेन स्क्वायर में लोकतंत्र समर्थक विरोध-प्रदर्शनों के खात्मे के बाद चीन को नई दिशा दी और अपने नेतृत्व में उसे अलगाव से बाहर निकालने के प्रयास किए। जेमिन ने चीन में आर्थिक सुधारों का समर्थन किया था। उन्होंने बाजार के अनुकूल आर्थिक सुधार किए। 1997 में ब्रिटिश शासन से हॉन्गकॉन्ग की वापसी और 2001 में विश्व व्यापार संगठन में चीन के शामिल होने की कवायद उनके समय में ही हुई थी। ध्यान रहे कि जियांग को वर्ष 1989 के तियानमेन हिंसा के बाद एक विभाजित कम्युनिस्ट पार्टी की बागडोर मिली थी। वह कांटों भरा ताज था। हालांकि, जियांग जेमिन ने अपने कौशल से ना केवल कम्यूनिस्ट पार्टी और चीन की अंदरूनी राजनीति को साधा बल्कि दुनिया के साथ रिश्ते सुधारने के लिए भी बड़े-बड़े कदम उठाए। जियांग जेमिन अब इस दुनिया में नहीं हैं।