पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई हमेशा से ही बेबाक रहे हैं! भारत रत्न वाजपेयी देश के वो प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्हें दूसरे देशों के नेता भी सम्मान की नजर से देखते थे। वाजपेयी जहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ अपना बर्थडे शेयर करते थे तो वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन उन्हें संबंधों को नई दिशा देने के लिए आज भी याद करते हैं। बतौर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने साल 2003 में जब चीन का दौरा किया तो दोनों देशों के रिश्ते नई दिशा में पहुंचे थे। लेकिन जब साल 1965 में जब पाकिस्तान और भारत की जंग जारी थी तो कुछ ऐसा हुआ था जिससे चीन को बड़ी बेइज्जती सहनी पड़ी थी। बिना कुछ बोले ही वाजपेयी ने चीन को अच्छा-खासा सबक सिखा दिया था।
भेड़ चोरी का आरोप
सन् 1962 में भारत और चीन के बीच जंग हो चुकी थी और वो फिर से 1965 में युद्ध की तैयारी में था। ये वो समय था जब पश्चिमी मोर्चे पर सेनाएं पाकिस्तान के साथ जंग कर रही थीं। अगस्त-सितंबर के महीने में चीन ने एक के बाद एक कई आरोप भारत पर लगाए। इन आरोपों के बीच ही एक आरोप लगाया कि भारतीय सैनिकों ने उसकी 800 भेड़ों और 59 याक चोरी कर ली हैं। चीन की चालबाजियों के बीच भारत की सेनाएं कश्मीर में पाकिस्तान को जवाब देने में व्यस्त थीं। चीन की तरफ से तब भारत सरकार को इस बाबत एक चिट्ठी लिखी गई। चिट्ठी तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम थी और उन्हीं के पास पहुंची। चिट्ठी जनसंघ के उस युवा नेता से वाजपेयी के बारे में थी जिनके एक कदम ने चीन का पारा हाई कर दिया था।
26 सितंबर 1965 में वाजपेयी 800 भेड़ों के साथ चीनी दूतावास में घुस गए थे। यह कदम उन्होंने भेड़ और याक चुराने वाले चीन के आरोप का जवाब देने के लिए उठाया था। भेड़ों की गर्दन पर एक प्लेकार्ड था जिस पर लिखा था, ‘मुझे खा लो लेकिन दुनिया को बचा लो।’ चीन ने एक और चिट्ठी शास्त्री को लिखी और इस बार उसने वाजपेयी के कदम को चीन का ‘अपमान’ करने वाला कदम बताया । चीन ने कहा कि शास्त्री सरकार के समर्थन से वाजपेयी ऐसा कर रहे हैं। इन आरोपों के जवाब में भारत सरकार ने भी करारा जवाब दिया।
भारत सरकार ने कहा, ‘दिल्ली के कुछ लोगों ने 800 भेड़ों का जुलूस निकाला। भारत सरकार का इस प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है। यह दिल्ली के लोगों की चीन के अल्टीमेटम और तुच्छ मुद्दों पर भारत के खिलाफ युद्ध की धमकी के खिलाफ नाराजगी की सहज, शांतिपूर्ण और अच्छी हास्य व्यंग्य की अभिव्यक्ति थी।’ उन दिनों वाजपेयी ने जिस तरह चीन को चिढ़ाया था, उसकी चर्चा हर नुक्कड़ पर लोग करते थे। इस घटना के करीब दो साल बाद चीन एक बार फिर भारत को सबक सिखाने के इरादे से आया था, लेकिन मुंह की खाने के बाद नया सबक लेकर लौटा। सन् 1967 में भी चीन ने भेड़ चुराने वाला बहाना देकर युद्ध की शुरुआत करनी चाही थी। लेकिन 62 की जंग से अलग इस समय भारत की सेनाएं तैयार थीं और दुश्मन को धूल चाटने पर मजबूर कर दिया गया था।
चीन के विशेषज्ञ आज भी मानते हैं कि वाजपेयी, भारत और चीन के रिश्तों को नई दिशा देने वाले अहम शख्स थे। साल 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो चीन काफी नाराज हो गया था। इसके बाद साल 2003 में तत्कालीन चीनी पीएम बेन जियाबाओ भारत की यात्रा पर आए थे। चीन ने भारत की तरफ से हुए न्यूक्लियर टेस्ट्स को खतरा करार दिया था।
फिर जब जियाबाओ भारत आए तो वाजपेयी ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रजेंटेटिव्स (एसआर) तंत्र की शुरुआत की थी। इसका मकसद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाना था। आज भी इसी के तहत भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशें जारी हैं। इससे अलग साल 2003 जून में वाजपेयी भी चीन की यात्रा पर गए और उनके दौरे को आज भी अहम पल करार दिया जाता है। वाजपेयी और उनके प्रतिनिधिदल ने उस समय चीन की हुआनग्पो नदी पर नाव की सवारी की और कई इमारतों को भी करीब से देखा।फिर जब जियाबाओ भारत आए तो वाजपेयी ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रजेंटेटिव्स (एसआर) तंत्र की शुरुआत की थी। इसका मकसद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाना था। आज भी इसी के तहत भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशें जारी हैं। इससे अलग साल 2003 जून में वाजपेयी भी चीन की यात्रा पर गए और उनके दौरे को आज भी अहम पल करार दिया जाता है। वाजपेयी और उनके प्रतिनिधिदल ने उस समय चीन की हुआनग्पो नदी पर नाव की सवारी की और कई इमारतों को भी करीब से देखा।