एक समय ऐसा था जब कांग्रेस का साथ देते थे ज्योतिरादित्य सिंधिया! जीं हाँ, 2016 में शहडोल लोकसभा सीट के लिए हुआ उपचुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था। बीजेपी इससे पहले आदिवासी बहुल रतलाम झाबुआ सीट हार चुकी थी। आदिवासियों पर अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए वह हर कीमत पर शहडोल में जीतना चाहती थी। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पुराने नेता दलबीर सिंह की बेटी को उम्मीदवार बनाया था। दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ी कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह उन गिने-चुने आदिवासी नेताओं में शामिल थीं जो फर्राटेदार इंग्लिश बोलती थीं। बीजेपी के उम्मीदवार ज्ञान सिंह थे जो उस समय शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट में मंत्री थे। उनके प्रचार अभियान की जिम्मेदारी शिवराज ने अपने विश्वस्त भूपेंद्र सिंह को दी थी। हिमाद्री सिंह के लिए कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने शहडोल में कैंप किया था। हिमाद्री जीत तो नहीं पाईं, लेकिन इस चुनाव के किस्से आज भी इस इलाके में चर्चित हैं।इस चुनाव में कांग्रेस नेताओं ने प्रचार के लिए अलग-अलग तरीका अपनाया था। कमलनाथ ने बांधवगढ़ के ताज होटल को अपना मुख्यालय बनाया था तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जमीनी प्रचार का तरीका अपनाया था। कमलनाथ हवाई जहाज से जबलपुर से आते और फिर हेलीकॉप्टर से प्रचार के लिए निकलते। बांधवगढ़ और बाकी के इलाकों में प्रचार करने के बाद वे फिर से जबलपुर लौट जाते। इसके उलट ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक गांव में आदिवासी के घर रुकने का फैसला किया। अपने महाराज वाले एटीट्यूड के लिए मशहूर सिंधिया ने आदिवासी घर में खुद रोटी पकाई थी। समर्थकों ने सिंधिया के खाना बनाने वाले दृश्यों को अपने मोबाइल फोन में कैद किया। इसकी तस्वीरों को यह बताकर वायरल किया गया कि सिंधिया इतने बड़े नेता होकर कितने साधारण तरीके से रहते हैं।
हालांकि, सिंधिया के आदिवासी घर में रुकने से पहले वहां बड़ा टीवी लगाया गया था। घर में पाश्चात्य शैली का कमोड भी लगाया गया था। लेकिन असली खेल तो तब हुआ जब सिंधिया वहां से चले गए। उनके जाते ही सिंधिया के समर्थक टीवी ही नहीं, टॉयलेट तक उखाड़ कर ले गए। यह दृश्य एक पत्रकार ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। इसकी तस्वीरें भी खूब वायरल हुईं। यह प्रचारित किया गया कि कांग्रेस के नेता जाते ही अपने साथ अपनी टॉयलेट भी ले गए। भारतीय जनता पार्टी के प्रचार तंत्र ने इस घटना को खूब प्रसारित किया। नतीजा यह हुआ कि यह चुनाव शिवराज बनाम कमलनाथ-सिंधिया हो गया और हिमाद्री सिंह कुछ हजार वोटों से हार गईं।
2016 के उपचुनाव में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण संभवतः यह था कि उसके कुछ नेता हिमाद्री की जीत नहीं चाहते थे। उन्हें डर इस बात का था कि हिमाद्री जीत गईं तो आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार हो सकती हैं।यह दृश्य एक पत्रकार ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। इसकी तस्वीरें भी खूब वायरल हुईं। यह प्रचारित किया गया कि कांग्रेस के नेता जाते ही अपने साथ अपनी टॉयलेट भी ले गए। भारतीय जनता पार्टी के प्रचार तंत्र ने इस घटना को खूब प्रसारित किया। नतीजा यह हुआ कि यह चुनाव शिवराज बनाम कमलनाथ-सिंधिया हो गया और हिमाद्री सिंह कुछ हजार वोटों से हार गईं। इसके कई कारण भी थी। एक तो उनका आदिवासी बैकग्राउंड और दूसरा उनकी पढ़ाई-लिखाई। वे आधुनिक और शहरी राजनीतिक शैली से अच्छी खासी परिचित थीं, लेकिन यही उनकी तरक्की में बाधा बन गया।
कांग्रेस की हार इसलिए भी ज्यादा हैरान करने वाली थी क्योंकि बीजेपी के उम्मीदवार ज्ञान सिंह तो चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे। उन्हें अपना मंत्री पद छोड़ना गंवारा नहीं था। वे बड़ी मुश्किल से नामांकन भरने और चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए थे। वे प्रचार के लिए भी कम ही निकलते और अपने घर में ही रहते थे।यह दृश्य एक पत्रकार ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। इसकी तस्वीरें भी खूब वायरल हुईं। यह प्रचारित किया गया कि कांग्रेस के नेता जाते ही अपने साथ अपनी टॉयलेट भी ले गए। भारतीय जनता पार्टी के प्रचार तंत्र ने इस घटना को खूब प्रसारित किया। नतीजा यह हुआ कि यह चुनाव शिवराज बनाम कमलनाथ-सिंधिया हो गया और हिमाद्री सिंह कुछ हजार वोटों से हार गईं। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उनसे प्रचार करने को कहा तो ज्ञान सिंह का जवाब था- सांसद बनने से क्या फायदा, उनका मंत्री पद तो चला जाएगा। उन्होंने शिवराज से यह आश्वासन लिया कि सांसद बनने के बाद भी उन्हें मंत्री पद से नहीं हटाया जाएगा। हुआ भी यही। चुनाव जीतने के छह महीने बाद तक वे मंत्री बने रहे। ज्ञान सिंह इतने अनमने थे कि चुनाव जीतने के बाज अपनी जीत का सर्टिफिकेट लेने तक नहीं गए।