जब मौका देख कर सियासी पलटवार करते हैं नीतीश कुमार!

0
90

नीतीश कुमार हमेशा से ही मौका देखकर सियासी पलटवार कर देते हैं! यह कहावत काफी चर्चित है- एक अनार, सौ बीमार। बिहार की राजनीतिक हालात में यह कहावत फिट बैठती है। नीतीश कुमार अनार की भूमिका में हैं, तो बीमार बन गए दो राजनीतिक दल- आरजेडी और बीजेपी। आरजेडी भी नीतीश के लिए उतनी ही बेताब है, जितनी बीजेपी। कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाले आरजेडी को नीतीश की बैसाखी के बिना खड़ा हो पाना अब असंभव लगता है तो बीजेपी की हालत भी यही हो गई है। नीतीश भी इसे समझ रहे हैं। वह सियासत में अनार बनकर इतरा रहे हैं। अनार के बिना बिहार के सियासी दलों के पास सेहतमंद होने का कोई उपाय भी नहीं दिख रहा है। नीतीश कुमार भी अनार की औकात की वजह से अभी तक सब पर भारी पड़ते रहे हैं। नीतीश की पार्टी कभी अपने बूते सत्ता में नहीं आ पाई। हमेशा उसे दूसरे का सहारा ही लेना पड़ा। कभी बीजेपी तो कभी आरजेडी नीतीश की पार्टी जेडीयू की चेरी बनते रहे। सर्वाधिक सीटें लाने के बावजूद किसी ने सरकार बनाने की कभी हिम्मत नहीं जुटाई। मोल-तोल करने का नैतिक साहस भी किसी ने नहीं जुटाया। कम सीटों के बावजूद किसी को कभी नीतीश को हड़काने-धमकाने का साहस नहीं हुआ। नीतीश कुमार इसी का फायदा उठाते रहे।

झारखंड में यह अजूबा जरूर हुआ कि एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को सभी दलों ने सीएम बना दिया। दूसरा अजूबा बिहार में नीतीश कुमार ही रहे हैं। सरकार बनाने के लिए 243 सदस्यों वाली विधानसभा में 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है। नीतीश की जेडीयू को कभी इतनी सीटें अकेले नहीं मिलीं, पर वे 18 साल से बिहार के सीएम बने हुए हैं। हद तो तब हो गई, जब 2020 में जेडीयू 43 विधायकों वाली पार्टी बन कर रह गई। फिर भी ताज नीतीश कुमार के सिर पर ही सजा। 80 विधायकों वाली बीजेपी या 79 विधायकों वाला आरजेडी पीछे छूट गए। कहते भी हैं- भाग्यवान का हल भूत भी जोतता है। नीतीश के भाग्य का ही यह कमाल है। भाग्य पर भरोसा नहीं करने वालों को भी इस पर भरोसा करना पड़ गया। बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता रहा। नीतीश को ताकतवर दल भी समर्थन करते रहे। नीतीश भी अपनी इस ताकत को जानते हैं। तभी तो वे पल भर में मुंह फुला कर कभी आरजेडी से सट जाते हैं तो झटके में उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल भी फेंकते हैं। बीजेपी की मोनोपोली भी उन्हें रास नहीं आती। वे उसे भी काबू में रखते आए हैं। इसे उनका कौशल कहें या भाग्य का कमाल कि ऐसा ही पिछले 18 साल से होता रहा है।

नीतीश की जेडीयू विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है। इसके बावजूद ऐंठ ऐसी कि बड़े-बड़े सूरमा उनका पानी भरते हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद अपने को सियासत का धुरंधर मानते रहे हैं। अपने को किंगमेकर मानते रहे हैं। कभी किंग रहे लालू किंगमेकर की हालत में आ गए। अब तो उनसे यह रुतबा भी छीनता नजर आ रहा है। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी और महागठबंधन बना कर सत्ता से कुछ ही कदम दूर रहने वाले लालू की हेकड़ी नीतीश ने खत्म कर दी है। अब वे भींगी बिल्ली की तरह नीतीश के आगे मिमिया रहे हैं।

बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश की चेरी बनने को मजबूर हो गई है। नीतीश को बीजेपी की जरूरत है, पर वे अपनी शर्तें उससे मनवा रहे। बिहार की सियासत के लिए नीतीश कुमार अपरिहार्य बन गए हैं। नौटंकी भी उन्हें खूब आती है। चार साल पहले उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान खुलेआम कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। तब वे बीजेपी के साथ थे। आरजेडी के साथ आए तो कह दिया कि अगला चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अब आरजेडी को ही नीतीश ने पटखनी दे दी है। लालू गिड़गिड़ा रहे हैं तो बीजेपी उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन से खुश करने में लगी है कि उसके साथ आ जाएं। नीतीश की राजनीति के पराभव की भविष्याणी करने वालों की बोलती बंद हो गई है। बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान फेल हो गया है।

पहले रामविलास पासवान को लोग मौसम विज्ञानी कहते थे। पर, नीतीश ने साबित कर दिया है कि उनसे बढ़ कर कोई मौसम विज्ञानी नहीं। कब बीजेपी को साथ लेना है तो कब आरजेडी को पटा लेना है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। किसी को काबू में कैसे रखा जाए और कितनी उड़ान भरने की छूट दी जाए, यह नीतीश से बेहतर कोई नहीं जानता। स्वर्गवासी हो चुके जार्ज फर्नांडीज हों या शरद यादव हों, सबको उन्होंने साधा। अपने स्वजातीय आरसीपी सिंह और लव-कुश समीकरण के पुरोधा उपेंद्र कुशवाहा को साधा तो ललन सिंह को भी उन्होंने औकात बता दी। नीतीश किसके हैं और किसके रहेंगे, यह उनके अलावा कोई नहीं जानता। लालू भले उन्हें पलटू राम और आंत में दांत होने की बात कहते रहे, लेकिन आज उसी नीतीश के सामने उनकी औकात भींगी बिल्ली जैसी हो गई है।