एक ऐसी घटना जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंच पर पहुंचने पर भी तालियां नहीं बजी! मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने उफान पर है। बीजेपी, कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी भी अपना पूरा दमखम लगा रही है। हालांकि मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की खास नजर है। दरअलस, 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने शानादार प्रदर्शन किया था, लेकिन करीब एक साल कमलनाथ की सरकार चलने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में चले गए और राज्य में एक बार फिर से बीजेपी की सरकार बनी। इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी प्रत्याशियों के लिए ग्वालियर चंबल इलाके में जीत सुनिश्चित करने के प्रयास में जुटे हैं। वहीं कांग्रेस इस इलाके में पूरा दमखम इसलिए लगा रही है ताकि वह साबित कर पाए कि सिंधिया के पाला बदलने से उनकी पार्टी को खास नुकसान नहीं हुआ है। हालांकि 3 दिसंबर को चुनाव रिजल्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा कि ग्वालियर चंबल के लोग बीजेपी और कांग्रेस में किसपर भरोसा करती है। चुनाव की इन्हीं चर्चाओं के बीच आपको इस इलाके की एक पुरानी राजनीतिक कहानी बता रहे हैं। यह कहानी सिंधिया राजघराने और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है। नई जेनरेशन के पाठकों की जानकारी के लिए यहां बता दूं कि यह कहानी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादा जीवाजीराव सिंधिया के जमाने की है। सिंधिया राजघराने के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू का इस परिवार से बेहद करीबी रिश्ता रहा। ग्वालियर के राजा और पंडित नेहरू के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी। राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपनी किताब प्रिंसेस ऑटोबायोग्राफी ऑफ द डावेजर महारानी ऑफ ग्वालियर में लिखा है कि जीवाजीराव कई बार खुद से कार ड्राइव कर पंडित नेहरू को अलग-अलग जगहों पर ले जाया करते थे। भारत की आजादी के बाद ग्वालियर में जीवाजीराव की तरफ से एक सभा आयोजित कराई गई थी। इस सभा में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी आमंत्रित किया गया था। आजादी के बाद देश में वह दौर था जब पंडित नेहरू को सुनने के लिए हजारों और लाखों की भीड़ जुटती थी। लोग दूर-दूर से उन्हें सुनने आते थे।
ग्वालियर की इस सभा की शुरुआत होते ही जैसे ही जीवाजीराव स्वागत भाषण देने के लिए मंच पर चढ़े वहां जोर-जोर से उनके नाम के जयकारे लगने लगे। वहां मौजूद लोग पूरे उत्साह के साथ जीवाजीराव जिंदाबाद, ग्वालियर महाराज जिंदाबाद, सिंधिया घराना जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण का नंबर आया तो वह अपनी सीट से उठकर मंच की ओर बढ़े। जब देश के पहले प्रधानमंत्री मंच की ओर बढ़े तो वहां मौजूद लोगों ने खास उत्साह नहीं दिखाया। वहां पंडित नेहरू के सम्मान में कोई नारेबाजी नहीं हुई। यह बात पंडित नेहरू को नागवार गुजरी। गौर करने वाली बात यह है कि वह इस दर्द को छुपा भी नहीं सके और तत्काल मंच से अपने भाषण में गुब्बार निकाल दिया।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा, ‘जमाना बदल चुका है, देशवासियों को यह सत्य स्वीकार करना चाहिए, जन-जन को स्वीकार करना चाहिए। मैं जहां जाता हूं, लोग मेरे विचार सुनने के लिए उतावले रहते हैं। परन्तु आपका ग्वालियर अपवाद साबित हुआ है। जाहिर है, यहां के लोग आज भी अतीत में रह रहे हैं।’ देश के पहले प्रधानमंत्री का यह भाषण सुनकर जीवाजीराव अपराधबोध से ग्रसित हो गए, वह ऐसा अनुभव करने लगे कि जैसे उनसे भारी भूल हो गई है। जीवाजीराव ने इसके बाद तय किया कि कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता जब कभी ग्वालियर या सिंधिया किले में आएंगे तो मंच के ईर्द-गिर्द जीवाजीराव 100-200 ऐसे लोगों का जमावड़ा करा देते जिनका केवल यही काम होता कि नेताजी के आगमन पर जोर-जोर से तालियां बजाना। उनके भाषण के पंच पर भी तालियां बजाना और जयकारे लगाना। सिंधिया राजघराने के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू का इस परिवार से बेहद करीबी रिश्ता रहा। ग्वालियर के राजा और पंडित नेहरू के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी। राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपनी किताब प्रिंसेस ऑटोबायोग्राफी ऑफ द डावेजर महारानी ऑफ ग्वालियर में लिखा है कि जीवाजीराव कई बार खुद से कार ड्राइव कर पंडित नेहरू को अलग-अलग जगहों पर ले जाया करते थे।राजमाता अपनी बायोग्राफी में लिखती हैं कि ग्वालियर की उस घटना के बाद पंडित नेहरू का सिंधिया घराने से एक दूरी बन गई। हालांकि वह कई बार ग्वालियर आए, सिंधिया किले में भी आए लेकिन वह आत्मीय रिश्ता लगभग खत्म हो चुका था।