Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsजब RAW ने किया पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ा ऑपरेशन!

जब RAW ने किया पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ा ऑपरेशन!

एक ऐसी घटना जिसमें RAW ने पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ा ऑपरेशन कर दिया! किसी भी खुफिया मिशन में कई कड़ियां जुड़ी होती हैं। कई लोग, मशीनें और बहुत सारा पैसा लगा होता है। इसमें सबसे अहम होती है प्लानिंग। 3 मार्च 1971 को दिल्ली में हुआ एक फोन टैप भारत के खुफिया विभाग की कई साल की मेहनत का नतीजा था। बात पाकिस्तान से ढाका हो रही थी और सुन रहे थे दिल्ली में बैठे RAW के संस्थापक रामेश्वरनाथ काव। पाकिस्तान का जनरल अपनी सुरक्षित समझी जाने वाली फोन लाइन पर ढाका में तैनात आईएसआई एजेंट से बात कर रहा था। भारतीय उपमहाद्वीप में एक और जंग की पटकथा तैयार हो रही थी। 1962 में चीन से जंग और 1965 की लड़ाई के बाद ऐसा महसूस किया गया कि उस समय इंटेलिजेंस ब्यूरो का काम संतोषजनक नहीं था। ऐसे में पड़ोसी देश और दुनिया को ध्यान में रखकर एक अलग संस्था की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद ही रिसर्च और एनालिसिस विंग (RAW) का गठन हुआ। इसका काम था दुश्मन से एक कदम आगे रहना और उनकी हर गतिविधियों पर नजर रखना। धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना था और एक साल बाद ही मोहम्मद अली जिन्ना गुजर गए। उनकी मौत से पहले ही पाकिस्तान में अशांति फैलने लगी थी। देश की 55 फीसदी जनता पूर्वी पाकिस्तान में थी और उसकी जबान बांग्ला थी। तब सिर्फ 10 फीसदी जनता ही उर्दू बोलती थी। लेकिन उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बनाया गया तो पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी भड़क गए। मार्शल लॉ लगा और बांग्लाभाषी सैन्य जनरलों के दमन का शिकार होने लगे। मुजीबुर्रहमान की पार्टी को नैशनल असेंबली में बहुमत मिला और उन्होंने पीएम पद के लिए दावा ठोक दिया। लेकिन उनकी एक न चली। तब 1971 में अलग देश की मांग जोर पकड़ने लगी। कुछ समय के लिए सदन स्थगित किया गया। इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान में फोन की घंटिया ज्यादा बजने लगीं। उनमें से एक फोन को खुद काव सुन रहे थे।

बनारस में जन्मे काव को पता चला कि असेंबली को स्थगित करना महज एक दिखावा है। इसके जरिए समय लिया जा रहा था और कुछ बड़ी प्लानिंग हो रही थी। तब आवामी लीग और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच समझौते की कवायद चल रही थी। तभी लाहौर के एक क्लब में बैठे पाक सेना के अधिकारियों की प्लानिंग की भनक भारतीय एजेंसियों तक पहुंची। प्लान मुजीब की गिरफ्तारी का था। पश्चिमी पाकिस्तान की फौज का एक डिविजन पूर्वी पाकिस्तान भेज दिया गया। टैंक पहुंचा दिए गए। काव खुद ढाका के लिए रवाना हुए। काव ने मुजीब को खबर दी कि उनकी गिरफ्तारी की तैयारी है और आपकी जान को खतरा है इसलिए अंडरग्राउंड हो जाइए।

पीएम इंदिरा गांधी ने जब फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ से पूछा कि पाकिस्तानियों को रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं तो उन्होंने 6 महीने का समय मांगा। वैसे भी यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला था। लेकिन सबको पता था कि पाकिस्तान में सिविल वॉर का सीधा प्रभाव भारत पर ही पड़ने वाला था। टीचर, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर समेत सभी राष्ट्रवादी और पढ़े-लिखे बंगालियों का कत्लेआम शुरू हो गया। लोग पूर्वी पाकिस्तान में अपना घरबार छोड़कर भारत के राज्यों में पलायन करने लगे। रोज 40 हजार शरणार्थी भारत आ रहे थे। कलकत्ता के एक कैंप में ढाई लाख लोगों को एक टाइम में खाना खिलाना पड़ता था। 1971 के आखिर में 10 लाख लोग आ चुके थे। इंदिरा गांधी को रणनीतिक माहौल बनाना था, जिसमें वह सफल रहीं। वह यूरोप और अमेरिका गईं। रूस से भी अच्छे संबंध बन चुके थे। भारत से मदद की मांग उठने लगी थी। मुजीब गिरफ्तार हो चुके थे। मुक्ति फौज को सेना ने ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया।

रॉ के पूर्व चीफ एके वर्मा बताते हैं कि कलकत्ता के पास निर्वासन में बांग्लादेश की लीडरशिप गठित की गई। मुक्ति वाहिनी उनकी फौज थी। यह भारतीय सेना, रॉ और आईबी का संयुक्त ऑपरेशन था। शंकर नायर रॉ में नंबर-2 थे। वह कर्नल मेनन के नकली नाम से मुक्ति फौज से मिलते थे। धीरे-धीरे मुक्ति फौजी वापस बांग्लादेश में घुसने लगे। ये इंटेलिजेंस भारतीय सेना तक पहुंचाने लगे थे। बताते हैं कि तब काव ने इस तरह नेटवर्क खड़ा कर दिया था कि पाकिस्तान जो कुछ करने वाला होता था, भारत को पहले ही पता चल जाता था। पाकिस्तान आर्मी के वॉर रूम में भी भारतीय खुफिया एजेंट की पहुंच थी। एक एजेंट ने खबर दी कि पाक एयरफोर्स को भारत के बेस पर अचानक हमले का आदेश दिया गया है। 72 घंटों के भीतर हमला होना था। एक वैकल्पिक तारीख भी पता चली 2 दिसंबर 1971।

3 दिसंबर को जब हमला हुआ तो पाकिस्तानी ज्यादा नुकसान नहीं कर सके क्योंकि सेना पहले से तैयार थी और इसकी वजह थी रॉ को मिला खुफिया इनपुट। जिस गलती का इंतजार भारत बड़ी बेसब्री से कर रहा था, वह गलती पाकिस्तान ने कर दी थी। भारत युद्ध के लिए तैयार था। 14 दिन तक युद्ध चला। ईस्ट और वेस्ट दोनों क्षेत्रों में पाकिस्तान को करारा जवाब मिला। बांग्लादेश के जेसोर में सेना पहले ही जीत हासिल कर चुकी थी। अब ढाका पहुंचने के लिए एक बड़ा साहसिक फैसला लिया गया। पैराट्रूपर्स को एनमी लाइंस के पीछे एयर ड्रॉप किया गया जो मुक्ति वाहिनी फौजियों से मिले। ढाका को घेर लिया गया। 16 दिसंबर 1971 को शाम 4 बजे जनरल नियाजी ने सरेंडर पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। ढाका में भारतीय सेना का हीरोज की तरह स्वागत किया गया।

ईस्ट पाकिस्तान को बांग्लादेश बनना ही था और यह 9 महीने में सोचा-समझा गया और हो गया। बांग्लादेश बनना सफल इंटेलिजेंस का बेहतरीन उदाहरण है, पर खुफिया मिशनों की कामयाबी का उतना जिक्र नहीं होता है। आरएन काव और शंकर नायर को इसका पूरा श्रेय दिया जाता है। पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाले अगर तीन भारतीयों का जिक्र हो तो पीएम इंदिरा गांधी, भारतीय सेना के चीफ सैम मानेकशॉ के साथ रॉ के चीफ आरएन काव का भी नाम लिया जाता है। शुरूआत में काव ने 250 शार्प माइंड वाले आईबी अधिकारियों को रॉ के लिए चुना था। बाद में पूरी दुनिया में काव के एजेंट फैल गए। काव की एक्सपर्टीज इसी से समझिए कि जिन लोगों को ट्रेनिंग मिलती थी वे खुद को ‘कावब्वॉयज’ कहलाना पसंद करते थे।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments