जब 1963 में हुई आर्टिकल 370 हटाने की बहस?

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सन 1963 में भी आर्टिकल 370 हटाने की बहस हुई थी! जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था, ‘अनुच्छेद 370, जैसा कि सदन को याद होगा, कुछ संक्रमणकालीन, अस्थाई व्यवस्थाओं का एक हिस्सा है। यह संविधान का स्थाई हिस्सा नहीं है। यह तब तक एक हिस्सा है जब तक यह ऐसा ही बना रहता है।’सुप्रीम कोर्ट सोमवार यानी 11 दिसंबर को आर्टिकल 370 हटाने के केंद्र के निर्णय पर अपना फैसला सुनाएगा। 370 हटाने के खिलाफ आलोचकों का तर्क है कि अनुच्छेद को निरस्त करने का निर्णय एकतरफा था क्योंकि इसे एक स्थायी संवैधानिक प्रावधान माना जाता था, और केवल जम्मू- कश्मीर संविधान सभा को ही ऐसा निर्णय लेने का अधिकार था। हालाँकि, 26 जनवरी 1957 को विधानसभा को भंग कर दिया गया था। अनुच्छेद को निरस्त करने वाली एनडीए सरकार का तर्क है कि यह एक अस्थायी प्रावधान था और इसके पूर्ण निरस्तीकरण की मांग बहुत पहले ही उठाई जा चुकी थी। इन सबके बाद आज आपको लिए चलते हैं आज से 60 साल पहले यानी साल 1963 और तारीख थी 27 नवंबर। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अनुच्छेद 370 को हटाने पर संसद में जवाब दिया था। 27 नवंबर को तब देश की संसद में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के मुद्दे को लेकर कई सवाल उठाए गए थे और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके सरकार के प्रतिनिधियों ने जवाब भी दिए थे। वह और बात है कि आर्टिकल 370 को साल 2019 में संसद में कानून लाकर निरस्त कर दिया गया था। नेहरू के समर्थक इस बात पर भी जोर देते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए स्वयं जवाहरलाल नेहरू प्रयासरत थे। खैर, 27 नवंबर की ओर दोबारा मुड़ते हैं। हरि विष्णु कामथ, प्रकाशवीर शास्त्री, भगवत झा आजाद, पीसी बोरुआ, मोहन स्वरूप, डॉ एलएम सिंहवी, विश्राम प्रसाद, रघुनाथ सिंह, डीडी मंत्री, राम रतन गुप्ता, पीआर चक्रवर्ती, सिद्धेश्वर प्रसाद, डीडी पुरी, कच्छावैया, डीसी शर्मा और हेम राज सहित 19 सांसदों के एक समूह ने जम्मू और कश्मीर के भारत के साथ निकट एकीकरण पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया मांगी थी। व्यापक प्रश्न को तीन भागों में विभाजित किया गया था।

गृह राज्य मंत्री आरएम हजार्नविस ने बताया कि 25 सितंबर, 1963 को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य में कानूनी और चिकित्सा पेशेवरों के संबंध में समवर्ती सूची सूची III की प्रविष्टि 26 लागू की गई है। इसके अलावा संविधान के अन्य संबंधित प्रावधान भी लागू किए गए हैं। साथ ही, कोयला खनन उद्योग में श्रमिकों के कल्याण से संबंधित समवर्ती सूची की प्रविष्टि 24 को जम्मू-कश्मीर पर लागू करने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है। उन्होंने बताया कि यह निर्णय लिया गया है कि अन्य राज्यों की तरह लोकसभा में जम्मू और कश्मीर के प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुना जाना चाहिए। वर्तमान आपातकाल समाप्त होने के बाद इस निर्णय को लागू किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, ‘यह भी निर्णय लिया गया है कि जम्मू और कश्मीर के सदर-ए-रियासत और प्रधान मंत्री को क्रमशः राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए राज्य विधानसभा के अगले सत्र में कानून लाया जाएगा।

उनके शब्दों की व्याख्या से संकेत मिलता है कि समवर्ती सूची के कानूनों को शामिल करने के साथ, जम्मू-कश्मीर राज्य को दिए गए विशेष अधिकारों में कमी की जा रही है। भारत सरकार की कानून बनाने की शक्तियों के संबंध में, स्टेट लिस्ट जम्मू- कश्मीर पर लागू नहीं थी, और न ही समवर्ती सूची थी। राज्य मंत्री ने आगे स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 370 संविधान के भाग XXI में आता है जो अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधानों से संबंधित है। उन्होंने कहा, ‘चूंकि इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया गया था, इसलिए कई बदलाव किए गए हैं जो जम्मू और कश्मीर राज्य को भारत के बाकी हिस्सों के अनुरूप लाते हैं और राज्य पूरी तरह से भारत संघ के साथ एकीकृत है।’

जवाहरलाल नेहरू तब गृह राज्य मंत्री की बातों से सहमत थे। नेहरू ने इन शब्दों का समर्थन करते हुए कहा कि वास्तव में, जैसा कि गृह मंत्री ने बताया है, यह कमजोर हो गया है, अगर मैं शब्द का प्रयोग कर सकता हूं, और पिछले कुछ वर्षों में कई काम किए गए हैं, जिसने भारत संघ के साथ कश्मीर के संबंध को बहुत करीब बना दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कश्मीर पूरी तरह से एकीकृत है। पंडित नेहरू ने आगे कहा कि हमें लगता है कि अनुच्छेद 370 को धीरे-धीरे कमजोर करने की यह प्रक्रिया जारी है। कुछ नए कदम उठाए जा रहे हैं और अगले एक-दो महीनों में वे पूरे हो जाएंगे। हमें इसे जारी रखने देना चाहिए। हम इस मामले में पहल नहीं करना चाहते हैं और अनुच्छेद 370 को समाप्त करना चाहते हैं। हमारा मानना है कि यह पहल कश्मीर राज्य सरकार और लोगों से ही आनी चाहिए। हम खुशी-खुशी उस पर सहमत होंगे। वह प्रक्रिया जारी है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अनुच्छेद 370, जैसा कि सदन को याद होगा, कुछ संक्रमणकालीन, अस्थायी व्यवस्थाओं का एक हिस्सा है। यह संविधान का स्थायी हिस्सा नहीं है। यह तब तक एक हिस्सा है जब तक यह ऐसा ही बना रहता है।