जब राम मंदिर बनवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आया निर्णय!

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एक ऐसा समय जब राम मंदिर बनवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्णय आ गया था! 16वीं शताब्दी से 21वीं शताब्दी तक राम मंदिर के लिए हिंदुओं की तड़प देखी है। आज जब हिंदु वर्ग का सबसे बड़ा सपना पूरा हो रहा है, मैं साक्षी हूं। अयोध्या में मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के अत्याचार को मैंने सहा है। हिंदुओं का पांच शताब्दियों तक अपने आराध्य वर्गों के लिए तड़प को मैं जीती रही हूं। विभिन्न वर्गों में विभाजित हिंदू जनमानस को एकजुट होने में 500 साल लग गए। वर्गों में बंटे हिंदू जब एक रामलला के सामने दीन भाव से खड़े हुए तो भग्वतवत्सल भगवान ने भी उन्हें वापस लौटने का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया। राम की जीवनी हमें हमेशा प्रेरित करती रही है। राम हर युग में प्रासंगिक रहे हैं। राम मंदिर पर हो रही राजनीति से घबराने की जरूरत नहीं है। यह तो मैं त्रेतायुग से देखती आ रही हूं। राजनीति तो तब भी रची गई थी, जब भगवान श्रीराम बाल्यकाल को पार कर जवानी में कदम रख चुके थे। राजा दशरथ उनके राज्याभिषेक की तैयारी में जुट गए थे। इस दौरान राजा दशरथ के ही महल में रहने वाली दासी मंथरा ने साजिश रची। माता कैकेई के बुद्धि पर अपनी राजनीति का ऐसा मायाजाल फेरा, प्रभु श्रीराम को सत्ता संभालने की जगह 14 वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा। इसलिए, प्रभु राम के कार्य में राजनीति न हो, यह संभव नहीं है। हालांकि, तमाम राजनिति के पार प्रभु श्रीराम रामराज्य की स्थापना करते हमेशा दिखाई देते हैं। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस की घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे हुए। बाद में, वोट बैंक की राजनीति में समाज को एक बार फिर विभिन्न वर्गों में बांट दिया गया। राम मंदिर का मुद्दा अब चुनावी भाषणों और भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में दिखता था। इस बीच में भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश और केंद्र में भी सत्ता में आ चुकी थी। लेकिन, गठबंधन धर्म ने भाजपा को राम मंदिर मामले में कोई भी बड़ा निर्णय नहीं ले पाई। विपक्षी दलों के लिए राम मंदिर का मुद्दा भाजपा को घेरने का अस्त्र बन गया था। एक बार पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई ने लोकसभा में कहा था कि राम मंदिर का मुद्दा हमारी पार्टी से जुड़ा मुद्दा है, जिसे हम कभी नहीं छोड़ सकते। आज हम गठबंधन धर्म का पालन कर रहे हैं, जिस दिन हम उस काबिल होंगे, राम मंदिर जरूर बनेगा। हालांकि, मामला कोर्ट में था। अब यह मामला श्री राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद के नाम से जाना जाने लगा। फैजाबाद कोर्ट से होते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट तक मामला पहुंच चुका था।

1990 में विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी ने कारसेवा के दौरान अयोध्या विवादित परिसर के आसपास के एएसआई सर्वे का खूब जिक्र किया था। दरअसल, 1975-76 में एक सर्वे हुआ था। इसमें राम मंदिर के अवशेष खुदाई में मिलने के दावे किए गए थे। 1990 में इससे संबंधित कुछ मामला आया और उसके बाद विवाद गहराना शुरू हुआ। विश्व हिंदू परिषद और भाजपा इस मुद्दे को लगातार उठा रही थी। कारसेवा के दौरान भी यह मुद्दा खास गरमाया। लेकिन, राम मंदिर के जमीन पर कब्जे में एएसआई सर्वे एक बड़ी भूमिका निभाने वाला था। यह किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। वर्ष 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एएसआई सर्वे का मामला उठाया गया। कोर्ट ने सुनवाई की और एएसआई को खुदाई कर अपनी रिपोर्ट देने का आदेश दिया। यहीं से बाबरी विवाद की कहानी बदलनी शुरू हुई। आज मैं हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चली राम मंदिर विवाद की कहानी सुनाने जा रही हूं।

6 दिसंबर की घटना के बाद रााज जन्मभूमि का मामला जमीन विवाद बन गया था। दरअसल, 1949 में बाबरी परिसर में रामलला प्रगट हो गए थे। मामला कोर्ट तक पहुंच चुका था। वर्ष 1975- 76 आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया एएसआई जन्मभूमि विवाद में एंट्री ली। दावा किया जाता है कि यह सर्वे आरएसएस के इशारे पर कराया गया था। बाबरी परिसर के अगल- बगल में एएसआई पहले भी तीन बार सर्वे कर चुकी थी। एएसआई के पहले निदेशक एलेग्जेंडर कनिंघम ने 1862-63 में अयोध्या का सबसे पहली बार परिसर का सर्वे किया था। यह सर्वे आदेश अंग्रेजी सरकार के वर्ष 1858 में बाबरी परिसर को दो भागों में बांटने के बाद आया था। इसके बाद अलोइस फ्यूरर के नेतृत्व में 1889 से 1891 के बीच विवादित परिसर का दूसरी बार एएसआई ने सर्वे किया। 1969- 70 में प्रो. एके नारायण के नेतृत्व में एएसआई ने विवादित परिसर की तीसरी बार खुदाई की। 1975 में प्रो. बीबी लाल ने चौथी बार खुदाई की। इस बार उनके नेतृत्व में विशेषज्ञों ने साइट के नजदीक पहुंच कर सर्वे किया।

प्रो. लाल उस समय एएसआई के महानिदेशक थे। सर्वे के बाद प्रो. लाल के दावों ने राम मंदिर विवाद को सुलगा दिया। 1990 में राम मंदिर आंदोलन के जोर पकड़ने के दौरान प्रो. बीबी का एक लेख पत्रिका मंथन में छपा। अपने लेख में प्रो. लाल ने दावा किया कि मस्जिद के नीचे उन्हें मंदिर जैसे खंभे मिले थे। उन्होंने दावा किया कि जब मैंने बाबरी साइट का सर्वे किया तो मस्जिद की नींव के पास मंदिर का एक खंभा दिखा। यह बहुत ही पुराना था। प्रो. लाल के इस दावे को विश्व हिंदू परिषद और हिंदूवादी संगठनों ने जमकर उठाया। उनकी ओर से कहा गया कि यह पिलर प्राचीन राम मंदिर के हैं। हालांकि, प्रो. लाल के दावों पर आर्कियोलॉजिस्ट्स ने भी सवाल खड़े कर दिए। विवाद तब अधिक गहराया जब 1993 के वर्ल्ड आर्कियोलोजिक कांग्रेस में प्रो. लाल को बाबरी परिसर में किए सर्वे के रिसर्च पेपर को रखने नहीं दिया गया।

आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट प्रक्रिया फेल होने के बाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई। इसके बाद 27 सितंबर 2018 को केस संविधान पीठ को भेजने पर बहस के बाद फैसला आया। मामले की सुनवाई तीन जजों की ही पीठ में कराए जाने की बात कही। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर 2018 को रिटायर हो गए। 8 जनवरी 2019 को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपनी प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग करते हुए, विवाद को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को आठ सप्ताह में मध्यस्थता का प्रयास करने का आदेश दिया। मध्यस्थता की कार्यवाही 13 मार्च को शुरू हुई और मई तक पूरा किया जाना था। कई पक्षों के अनुरोध पर अदालत ने 10 मई को मध्यस्थता अवधि 15 अगस्त तक बढ़ा दी गई। राम जन्मभूमि पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने 9 जुलाई को कोर्ट से हर रोज सुनवाई की मांग की। कोर्ट में उन्होंने मध्यस्थता के सुस्त होने की रिपोर्ट दी।

सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता की आखिरी कोशिश विफल होने के बाद 6 अगस्त से श्रीराम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हुई। यह सुनवाई 40 दिनों तक चली। इसमें कोर्ट ने बाबरी मस्जिद कमिटी, निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान समेत अन्य पक्षों को सुना। चीफ जस्टिस ने 18 अक्टूबर तक बहस पूरी करने का अनुरोध सभी पक्षों से किया। 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के ऐतिहासिक बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने पांच शताब्दियों से चले आ रहे विवाद पर 9 नवंबर 2019 को बड़ा फैसला दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से देवता श्रीरामलला विराजमान को टाइटल प्रदान किया। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दिए जाने का आदेश दिया गया। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में किसी स्थान पर देने का आदेश दिया गया। जनवरी 1993 में अधिग्रहित भूमि भी रामलला को मंदिर निर्माण के लिए दी गई। केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाकर मंदिर का संचालन करने और राम मंदिर का निर्माण कराने का आदेश दिया गया। इस फैसले ने उस नारे को सही साबित कर दिया, मंदिर वहीं बनाएंगे। इस फैसले के बाद मंदिर का उसी राम जन्मभूमि पर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।