एक ऐसा समय जब मंच से कारसेवकों का जोश बढ़ाया गया था! 6 दिसंबर की तारीख मैं कभी नहीं भूल सकती। उस दिन मेरी धरती पर प्रभु राम का नाम लेकर तमाम नियमों को तोड़ा गया। मेरे राम तो ऐसे थे, जिन्होंने पूरे जीवन मर्यादा का पालन किया। इस कारण वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। पिता के एक वचन के लिए 14 साल वन जाने वाले राम के धाम में उस दिन मर्यादाएं टूटी थी। हालांकि, मैं तब भी चुप थी, जब मेरे प्रभु राम के मंदिर को तोड़कर कर मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीरबाकी ने मस्जिद का निर्माण करा दिया था। लेकिन, उस दिन सभी स्तर पर मर्यादाएं टूटी थी। केंद्र सरकार पूरी स्थिति को काबू कर पाने में सक्षम थी, वहां से कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ। प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार रामभक्त कारसेवकों पर गोली न चलने का आदेश देकर पहले ही तय कर चुकी थी, अगर स्थिति बिगड़ी तो प्रशासन और पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रहेगी। आगे जो कुछ करना होगा, वह कारसेवक ही करेंगे। 6 दिसंबर की घटना को कारसेवकों के आक्रोश की परिणति के रूप में पेश किया जाता है। उस दिन कारसेवकों ने मुगलों के उस गुलामी के प्रतीक को मिटा दिया। सब कुछ कानून के दायरे में होता तो बात अलग थी, लेकिन उस दिन कानून टूटता रहा और कानून के रखवाले कुछ नहीं कर पाए। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित परिसर में किसी प्रका का निर्माण न होने देने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वर को इसी की निगरानी के लिए नियुक्त किया गया था। लेकिन, निर्माण की जगह ध्वंस हो रहा था। इस प्रकार की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई निर्देश जारी नहीं किया गया था। मतलब, निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना थी और ध्वंस कानून- व्यवस्था का मसला। जिसे संभालने में केंद्र और राज्य दोनों सरकारें फेल हो गई। 6 दिसंबर की दोपहर 3:00 बजते- बजते मस्जिद का एक गुंबद गिरा और फिर मस्जिद का मुख्य गुंबद गिरा। बाबरी के अध्याय का आज समापन हो रहा था और देश में एक नए विवाद शुरुआत। साथ ही, यह राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद के अंत की भी शुरुआत साबित हुई। दोपहर 12:00 बजे से शुरू हुई कारसेवा करीब 2:45 बजे पहले मुकाम पर पहुंचती दिखने लगी। विवादित ढांचे का बायां गुंबद गिरा। विश्व हिंदू परिषद जिस मुख्य गुंबद को रामलला का गर्भगृह कहती थी। वह बीच का गुंबद शाम 4:40 बजे नीचे आया। उस समय तक मंदिर आंदोलन के तमाम सीनियर नेता कारसेवा स्थल से निकल गए थे। रामकथा कुंज में लगाए गए लाउडस्पीर के तार को दुरुस्त करा लिया गया था। अब रामकथा कुंज के मंच पर दूसरी पंक्ति के राजनेता और विश्व हिंदू परिषद के साधु- संत मौजूद थे। उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा और आचार्य धर्मेंद्र मंच से भाषण की शुरुआत कर चुके थे। आचार्य धर्मेंद्र रामकथा कुंज के मंच कारसेवकों से अपील कर रहे थे कि जिन्होंने प्रसाद नहीं लिया है, वह प्रसाद ले लें। प्रसाद का मतलब बाबरी मस्जिद की ईंटों से था। कारसेवकों को जमीन समतल किए जाने की भी बात कही गई। उमा भारती कह रही थीं, अभी काम पूरा नहीं हुआ है। जब तक काम पूरा न हो जाए, परिसर न छोड़ें। पूरा इलाका समतल करना है। इस तमाशे में उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा और आचार्य धर्मेंद्र की भूमिका सबसे खास थी।
उमा भारती उस दिन काफी खुश दिख रही थी। वह कारसेवकों को ललकार रही थी। 6 दिसंबर 1992 की कारसेवा में उमा भारती ने दो नारा दिया। एक नारा था, ‘राम नाम सत्य है, बाबरी मस्जिद ध्वस्त है’। वहीं, दूसरा नारा था, ‘एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो’। कारसेवक मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे के साथ- साथ अब इन दोनों नारों से जुड़ गए। उमा भारती ने भीड़ के सामने मेरठ की शिव कुमारी को बाबरी गुंबद पर चढ़ने वाली पहली महिला कारसेवक कहकर संबोधित किया। इसके बाद तो गुंबद पर चढ़ने वालों की होड़ मच गई। इसके बाद मंच पर 1990 की कारसेवा में मारे गए युवा भाइयों रामकुमार और शरद कोठारी के माता- पिता को भी भीड़ के सामने लाया। उमा भारती ने कहा कि इनके बेटों का बलिदा व्यर्थ नहीं गया। इनकी आंखों में आज खुशी के आंसू हैं। हमने उनकी हत्या का बदला ले लिया। उमा कारसेवकों से शुभ और पवित्र कार्य को पूरा करने की अपील करती जा रही थीं। बीच में माइक से अन्य साधु- संत हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ कर रहे थे।
कारसेवक 6 दिसंबर को कुछ अलग ही सोच के साथ आए थे। वह 1934 वाली स्थिति नहीं चाहते थे। 1934 में रामभक्तों ने बाबरी के तीनों गुंबदों को तोड़कर दिया था। बाद में फैजाबाद कलेक्टर ने उसका निर्माण करा दिया। इस बार बाबरी परिसर को समतल करके ही कारसेवा समाप्त किए जाना था। ढांचा गिरते ही कारसेवकों पूरी ताकत के साथ मलबे को समतल करने में जुट गए। वह वहां जल्द से जल्द रामलला को दोबारा स्थापित करना चाह रहे थे। पुलिस- सुरक्षा बल, केंद्र सरकार और कल्याण सिंह सरकार तीनों इसी काम के पूरा होने का इंतजार कर रही थी। इसके बाद ही कोई कार्रवाई होनी थी। कारसेवकों ने ढांचे का मालवा पीछे खाई में गिराया। जमीन समतल करने में लग गए। 15×15 गज के टुकड़े पर जल्दी से जल्दी 5 फीट की दीवार बनाई गई। इसके नीचे अस्थाई चबूतरे तक 18 सीढ़ियां बनी।
अस्थायी निर्माण होने के बाद वहां रामलला की स्थापना होनी थी। लेकिन, मूर्ति गायब होने की खबर सामने आई। कारसेवकों में से किसी ने बाबरी परिसर से रामलला को लेकर निकले पुजारी आचार्य सत्येंद्र के हाथ से मूर्ति गायब कर दी थी। अस्थायी मंदिर निर्माण होने के बाद रामलला नहीं मिले तो हड़कंप मचा। केंद्र सरकार से लेकर यूपी सरकार तक मूर्ति स्थापना के इंतजार में थी। पल- पल का अपडेट कंट्रोल रूप से लिया जा रहा थाञ केंद्र की ओर से अयोध्या मामले का प्रभारी केंद्रीय राज्यमंत्री पीआर कुमार मंगलम को बनाया गया था। वह भी अयोध्या पर पैनी नजर बनाए हुए थे। अधिकारियों से पूछ रहे थे कि मूर्तियां अस्थायी मंदिर में रखी गई हैं या नहीं। केंद्र सरकार उस दिन मूर्तियों की स्थापना को लेकर विशेष रूप से सक्रिया थी।
रामलला की मूर्ति गायब होने के बाद केंद्र सरकार हरकत में आई। केंद्रीय मंत्री कुमार मंगलम ने अयोध्या के राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र से संपर्क किया। उनसे तत्काल उपाय ढूंढ़ने का अनुरोध किया। राजा साहब को जैसे ही मामले की जानकारी मिली, उन्होंने अपने घर में रखी गई रामलला की मूर्तियों को अस्थायी मंदिर में स्थापित किए जाने के लिए भेज दिया। दरअसल, राजा साहब की दादी ने रामलला की एक मूर्ति बनवाई थी। वह राम मंदिर में उसे स्थापित कराना चाहती थीं। राजा साहब ने इस मौके पर मूर्ति को अस्थायी मंदिर में स्थापित करा दिया। केंद्रीय मंत्री को मामले की जानकारी दी गई। इसके बाद पीएम नरसिंह राव ने कैबिनेट बैठक बुलाकर कल्याण सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश की। कैबिनेट की सिफारिश लेकर केंद्रीय गृह मंत्री एसबी चह्वाण स्वयं राष्ट्रपति भवन गए। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने तत्काल कल्याण सरकार को भंग करने की अधिसूचना जारी कर दी। अयोध्या केंद्र के हवाले थी। हालांकि, इस अधिसूचना से करीब 3 घंटे पहले कल्याण सिंह यूपी के राज्यपाल को इस्तीफा सौंप चुके थे।
बाबरी विध्वंस की प्राथमिकी के तहत नेताओं की गिरफ्तारी हुई। एफआईआर के आधार पर लालकृष्ण आडवाणी, विष्णु हरि डालमिया, अशोक सिंघल, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और विनय कटियार 8 दिसंबर 1992 को गिरफ्तार किए गए। उन्हें माता टीला डैम ललितपुर के गेस्ट हाउस में रखा गया। सीजेएम ललितपुर आरआर यादव की कोर्ट में उन्हें 10 जनवरी को पेश किया। जज आरआर यादव ने 10 जनवरी 1992 की शाम छह बजे फैसला सुनाया। जज ने सभी आरोपियों को बिना शर्त ससम्मान रिहा कर दिया। जज ने अपने छह पेज के फैसले में कहा था कि सरकार एफआईआर के संबंध में प्राथमिक साक्ष्य पेश करने में असमर्थ रही है। इसके बाद राम मंदिर का आंदोलन चुनावी मुद्दा बन गया। लड़ाई अब नेताओं के भाषण और कोर्ट में लड़ी जा रही थी। यूपी में 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में काशीराम के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव ने चुनाव लड़ा।
यूपी के चुनावी मैदान में नारा दिया गया, ‘मिले मुलायम- काशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’। बदले सामाजिक समीकरण के यह चुनाव गठबंधन ने जीता। यूपी में सत्ता बदली। राम मंदिर का मुद्दा भी गौण हो गया। विवादित ढांचा गिराए जाने के अगले 11 सालों तक राम मंदिर आंदोलन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिली। मामला फैजाबाद कोर्ट से होते हुए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच रहा था। परिणाम कुछ नहीं निकल रहा था। इस बीच 1998 और 1998 में दो बार केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सत्ता में आई। यूपी में भी भाजपा दोबार सरकार बनाने में कामयाब रही। लेकिन, मंदिर मुद्दा कोर्ट की दहलीज पार नहीं कर पाया। रामलला अब टेंट में थे।