एक ऐसा भी समय था जब पहली बार राम मंदिर की पहली ईंट रखी गई और उस पर भी बवाल हो गया! अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 की उस घटना का जिक्र करते हुए, आज भले ही राम मंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है, लेकिन जिन औरतों ने इस मंदिर के पहले वाले अस्थाई मंदिर की नींव रखी उनकी कहानी और खास है। वीएन दास कहते हैं- रात 9 बजे जब विवादित परिसर में पहुंचा तो सैकड़ों औरतें ईंट और गारे से दीवार बना रही थीं। कमरेनुमा एक ढांचा और उसमें एक चबूतरे जैसा हिस्सा बना था। लखनऊ से हमारे अखबार के दफ्तरी साथियों का फोन आ रहा था कि हेडलाइन क्या रखी जाए। मैं खुद पसोपेश था कि लिखा क्या जाएगा। लेकिन इस भीड़ की महिलाएं इसका जवाब दे रही थीं। ये कमरेनुमा आकृति भगवान रामलला का अस्थाई मंदिर था। ये वही जगह थी जहां विवादित ढांचे का मुख्य गुंबद था। अब इसी पर महिलाओं ने एक चबूतरा बनाकर रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी थी। खबर का शीर्षक तय हो गया था। अगले दिन फ्रंट पेज पर लिखा गया- अयोध्या में तीनों गुंबद ध्वस्त, अस्थाई मंदिर का निर्माण। अयोध्या के इसी अस्थाई मंदिर में भगवान रामलला 28 बरस तक टेंट में विराजमान रहे। भक्त उनकी पूजा करते रहे और पूरा परिसर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की निगरानी में रहा। अदालत ने टेंट बदलने से लेकर मंदिर में जरा सी मरम्मत के लिए भी बड़ी कानूनी जिच कराई। लेकिन कालांतर में फैसला हुआ। राम मंदिर के पक्ष में आए फैसले के बाद इस चबूतरे की जगह पर अब भव्य राम मंदिर बन रहा है। जिस स्थान पर महिलाओं ने वो चबूतरा बनाया था, अब वहां एक भगवा ध्वज लगा दिया गया है। ये वही जगह थी, जहां अब भव्य राम मंदिर का गर्भगृह बन रहा है।
इससे पहले 6 दिसंबर को ही अयोध्या में तमाम घटनाक्रमों के बीच वहां मौजूद संवाददाता विजय दीक्षित ने नवभारत टाइम्स के फ्रंट पेज पर खबर लिखी थी। शीर्षक था- पांच अंजुली जल और रेत से शुरू होगी कारसेवा। ये फैसला वीएचपी के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में हुआ था कि अयोध्या में दोपहर सवा 12 बजे कारसेवा की शुरुआत होगी। अखबार ने इसकी रिपोर्ट में लिखा, ‘कारसेवा की शुरुआत शंकराचार्य वासुदेवानंद करेंगे। वो सरयू का जल छिड़ककर और गड्ढे में सरयू की रेत डालकर कार्यक्रम का श्रीगणेश करेंगे।’ रात के वक्त ये रिपोर्ट सच भी हुई। महिलाओं के मंदिर निर्माण में ना कोई औजार लगा और ना ही कोई सामान। रेत अंजुली से लाई जाती, पानी डाला जाता और ईंट हाथ से ही जोड़ दी जाती।
कारसेवकों के एक वर्ग में इससे रोष है, वो असली कारसेवा करना चाहते हैं। इससे पहले 6 दिसंबर को ही अयोध्या में तमाम घटनाक्रमों के बीच वहां मौजूद संवाददाता विजय दीक्षित ने नवभारत टाइम्स के फ्रंट पेज पर खबर लिखी थी। शीर्षक था- पांच अंजुली जल और रेत से शुरू होगी कारसेवा। ये फैसला वीएचपी के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में हुआ था कि अयोध्या में दोपहर सवा 12 बजे कारसेवा की शुरुआत होगी। अखबार ने इसकी रिपोर्ट में लिखा, ‘कारसेवा की शुरुआत शंकराचार्य वासुदेवानंद करेंगे। वो सरयू का जल छिड़ककर और गड्ढे में सरयू की रेत डालकर कार्यक्रम का श्रीगणेश करेंगे।’ रात के वक्त ये रिपोर्ट सच भी हुई। महिलाओं के मंदिर निर्माण में ना कोई औजार लगा और ना ही कोई सामान। रेत अंजुली से लाई जाती, पानी डाला जाता और ईंट हाथ से ही जोड़ दी जाती।इसलिए आशंका बनी हुई है कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवक विवादित ढांचे के आसपास अपना आक्रोश किसी तरह व्यक्त करेंगे।
किसी अनहोनी से निपटने के लिए अर्धसैनिक बल और रैपिड ऐक्शन फोर्स पूरी तरह से सतर्क हैं।’इससे पहले 6 दिसंबर को ही अयोध्या में तमाम घटनाक्रमों के बीच वहां मौजूद संवाददाता विजय दीक्षित ने नवभारत टाइम्स के फ्रंट पेज पर खबर लिखी थी। शीर्षक था- पांच अंजुली जल और रेत से शुरू होगी कारसेवा। ये फैसला वीएचपी के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में हुआ था कि अयोध्या में दोपहर सवा 12 बजे कारसेवा की शुरुआत होगी। अखबार ने इसकी रिपोर्ट में लिखा, ‘कारसेवा की शुरुआत शंकराचार्य वासुदेवानंद करेंगे। वो सरयू का जल छिड़ककर और गड्ढे में सरयू की रेत डालकर कार्यक्रम का श्रीगणेश करेंगे।’ रात के वक्त ये रिपोर्ट सच भी हुई। महिलाओं के मंदिर निर्माण में ना कोई औजार लगा और ना ही कोई सामान। रेत अंजुली से लाई जाती, पानी डाला जाता और ईंट हाथ से ही जोड़ दी जाती। इसी अखबार में एक लाइन और छपी- क्या आज विवादित ढांचा गिर जाएगा। खबर उस आक्रोश की परिणीति थी जिसे दुनिया भर के पत्रकार अयोध्या में देख रहे थे।