जब 1992 में राम मंदिर आंदोलन हुआ अग्रसर!

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1992 एक ऐसा समय था जब राम मंदिर आंदोलन अग्रसर हुआ था! उत्तर प्रदेश में 1991 की विधानसभा चुनाव में एक नई सरकार चुनकर आ गई थी। मुलायम सिंह यादव सरकार का पतन हो चुका था। प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। अब सब की नजर भाजपा की नई सरकार पर थी, मेरी भी। भाजपा जो 1990 से लगातार राम मंदिर के मुद्दे को लेकर मुखर थी। प्रदेश में सरकार बनाने के बाद उसके अगले कदम की सभी प्रतीक्षा कर रहे थे। लोग देखना चाहते थे कि क्या भाजपा सरकार बनाने के बाद राम मंदिर के मुद्दे पर क्या कदम उठाती है? हालांकि, कल्याण सरकार ने शुरुआती दिनों में राम मंदिर की चर्चा के बाद कोई ठोस कदम नहीं उठाया। कोई एक्शन नहीं होने से लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा। कल्याण सिंह सरकार तक शिक्षा- परीक्षा सुधारों के जरिए अपनी विकास की छवि को प्रदर्शित करने में लगी थी। लेकिन, लोगों की अपेक्षा राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा सरकार के अगले कदम पर था। सरकार भी जानती थी कि इस मुद्दे के स्तर पर उनकी ओर से कोई कदम नहीं उठाया जा सकता है। सरकार भी मुद्दे में कोर्ट के आदेशों की आने की बात करने लगी तो लोगों ने पूर्व की सरकार और कल्याण सरकार की राम मंदिर मसले पर तुलना शुरू कर दी। कल्याण सरकार लगातार लोकप्रियता खोती जा रही थी। भाजपा के सामने चुनौती ऐसे कोई मुद्दे को खड़ा करने की थी, जिससे पार्टी की छवि लोगों के बीच फिर से बढ़ाया जा सके। हिंदुत्ववादी पार्टी के तौर पर स्थापित छवि को पार्टी गिरने नहीं देना चाहती थी। केंद्र में बनी कांग्रेस की पीवी नरसिंह राव सरकार की पैनी नजर यूपी पर थी। नरसिंह राव सरकार किसी भी स्थिति में मुद्दे को हवा दिए जाने से रोकने में जुटे हुए थे। हालांकि, खुलकर कांग्रेस भी राम मंदिर के मुद्दे का विरोध करती नहीं दिख पा रही थी। 1992 के पहले तीन माह अनिश्चितता में बीत चुके थे। अब हिंदुत्वववादी संगठनों का धैर्य जवाब देने लगा था। वहीं, सरकारें कोर्ट पर भरोसा रखने का अनुरोध करती रही। मुलायम सरकार के कारसेवकों पर गोली चलाए जाने की घटना से आक्रोशित विश्व हिंदू परिषद का अब धैर्य जवाब देने लगा था। जनता भी सरकार से कार्रवाई की मांग करने लगी। ऐसे में विश्व हिंदू परिषद आगे आई। मई- जून 1992 में अयोध्या में कारसेवा का फैसला लिया गया। विश्व हिंदू परिषद ने जून के आखिर में यह घोषित किया। मैं अयोध्या जो 1990 से लगातार युद्ध में थी। वह एक बार फिर गरमाने वाली थी। प्रदेश की राजनीति में बड़ा भूचाल आने के संकेत थे। मैं अयोध्या हूं और मैं उस जुलाई 1992 की कहानी सुनाती हूं।

आज से करीब 23 साल पहले भी इसी तरह से उत्साहित थी। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से राम मंदिर निर्माण की अफवाह उठ रही थी। जमीन पर कोई काम नहीं हो रहा था। अप्रैल- मई से इस दिशा में प्रयास शुरू हुआ। दावा किया जा रहा था कि जुलाई के पहले पखवाड़े में मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इसके लिए 100 फीट लंबे और 80 फीट चौड़े चबूतरे का निर्माण किया जाना था। विश्व हिंदू परिषद की ओर से अंदर ही अंदर तैयारी चल रही थी। लेकिन, जैसे ही यह मामला जुलाई की शुरुआत में आम लोगों के बीच आया, अचानक 9 जुलाई 1992 को मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया। इस घटना ने देश की राजनीति के मूड को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। वीएचपी ने जिस प्रकार से निर्माण की योजना पर काम शुरू किया, उससे साफ था कि यह एक पूरी प्लानिंग के तहत इस कार्य को किया गया।

8 जुलाई 1992 को अयोध्या में हलचल अचानक तेज हो गई थी। कई बड़े नेता अयोध्या में कैंप कर रहे थे। 8 जुलाई की रात विनय कटियार विवादित स्थल पर पहुंचे। वहां पर 1989 में मंदिर के शिलान्यास के बाद उस स्थल पर जो छतरी लगाई गई थी। उन लोगों ने उसे हटा दिया। विनय कटियार और उनके साथियों के इस एक्शन ने 9 जुलाई की सुबह होने वाली कार्रवाई का भेद खोल दिया। 9 जुलाई की सुबह विवादास्पद स्थल पर सर्वदेव अनुष्ठान की तैयारी थी। महंत रामचंद्र परमहंस उस सुबह अन्य साधु- संतों और तीर्थयात्रियों के साथ वहां पहुंचे। उनके साथ कुछ कारसेवक छोटे- छोटे कलश में सरयू का जल लेकर आए थे। शिलान्यास स्थल के आसपास की जमीन पर जल छिड़ककर उसे पवित्र किया गया। शिलान्यास स्थल के छोटे चबूतरे पर निर्माण शुरू करने के लिए जैसे ही दीपक जलाए गए। साधु- संतों ने शंख की ध्वनि से पूरे इलाके को गूंजायमान कर दिया।

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता और साधु- संत उस स्थल पर पूरी कार्रवाई कर रहे थे, जिसे हाई कोर्ट ने विवादित घोषित कर दिया था। हाई कोर्ट ने बाबरी परिसर के 2.77 एकड़ जमीन के हिस्से को विवादित घोषित करते हुए इसे राज्य सरकार को अधिग्रहित कर दिया था। इसका सीधा मतलब यह था कि वहां किसी प्रकार का निर्माण नहीं किया जा सकता है।

हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ कार्रवाई हो रही थी। केंद्र और राज्य सरकार इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई करने के मूड में नहीं दिख रही थी। इसका कारण यह था कि केंद्र की पीवी नरसिंह राव सरकार उस दौरान हर्षद मेहता स्कैम के कारण विवादों में घिरती दिख रही थी। राव सरकार के वाणिज्य मंत्री पी. चिदंबरम पर हर्षद मेहता से कनेक्शन सामने आया। विवाद में नाम आने के कारण चिदंबरम को राव सरकार से इस्तीफा देना पड़ा। चिदंबरम पर आरोप था कि उनकी कुछ फर्जी कंपनियों ने हर्षद मेहता के फर्म में इन्वेस्ट किया था। वहीं, भाजपा सरकार भी लोकप्रियता खो रही थी। जनाधार को बचाए रखने के लिए मंदिर के मुद्दे पर चुप्पी ही कल्याण सरकार को लोकप्रिय बना सकती थी। इस कारण केंद्र और राज्य सरकार ने मंदिर निर्माण के मुद्दे को एक प्रकार से हरी झंडी दे दी। सीएम कल्याण सिंह और भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी इसे एक मौके के तौर पर देख रहे थे।

भारतीय जनता पार्टी वीएचपी के राम मंदिर की घोषणा के साथ अपने पुराने मुद्दे पर वापस लौट आई। वहीं, हर्षद मेहता स्कैम से ध्यान भटकाने के लिए राव सरकार ने भी इस मुद्दे को हवा ही दी। वीएचपी के मंदिर निर्माण के कार्यक्रम की शुरुआत के बाद दिल्ली तक एक्शन शुरू हो गया। मुद्दा राम मंदिर ही बन गया। तमाम चर्चाएं थम गई। पीवी नरसिंह सरकार ने तब केंद्रीय गृह मंत्री शंकर राव चह्वाण के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अयोध्या भेजा। केंद्रीय गृह मंत्री करीब 35 मिनट तक अयोध्या में रहे।

पीएम कार्यालय में अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रमुख नरेश चंद्रा ने 5 दिसंबर 1992 को इलाहाबाद हाई कोर्ट से 2.77 एकड़ विवादित जमीन के अधिग्रहण के मु्द्दे पर ऑपरेटिव हिस्से को सुनाने के अनुरोध का दावा किया। नरेश चंद्रा ने कहा कि हाई कोर्ट ने राज्य सरकार इसकी गुजारिश करेगी। केंद्र की ओर से इसका समर्थन किया जाएगा। यूपी सरकार की ओर से जब हाई कोर्ट में इससे संबंधित आवेदन किया गया तो केंद्र के वकील ही नहीं पेश हुए। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी केंद्र के खिलाफ लोगों में शक गहरा गया। इसे पीएम नरसिंह राव के एक बार फिर पलटने के रूप में देखा जाता है।

राम मंदिर का जब भी जिक्र होते की अटल बिहारी वाजपेयी का भी जिक्र होता है। भले ही 6 दिसंबर 1992 की कारसेवा को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी अयोध्या नहीं गए थे। लेकिन, 5 दिसंबर 1992 की शाम को लखनऊ में दिया गया भाषण आज भी याद किया जाता है। अटल जी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला लिया है, उसका अर्थ मैं ये निकालता हूं कि यह कारसेवा को नहीं रोकता है। सचमुच में सुप्रीम कोर्ट ने हमें दिखा दिया है कि हम कारसेवा करेंगे, रोकने का तो सवाल ही नहीं है। कल कारसेवा करके अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय की अवहेलना नहीं होगी। कारसेवा करके सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगा। वहां नुकीले पत्थर निकले हैं, तो उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता है। तो जमीन को समतल करना पड़ेगा। बैठने लायक करना पड़ेगा। तभी तो यज्ञ का आयोजन होगा। अटल जी के इस के इस भाषण में कंकड़- पत्थर को साफ करने का मतलब, बाबरी मस्जिद को विवादित स्थल से हटाए जाने से लगाया जाता है।