उत्तराखंड के जोशीमठ में हजारों पेड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया है! उत्तराखंड के ‘जागेश्वर’ में एक हजार पेड़ों के मौत के फरमान पर एक शायर की ये लाइनें सटीक बैठती हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का अल्मोड़ा जिला आजकल बेहद टेंशन में है। दरअसल जिले के ‘जागेश्वर’ में उत्तराखंड सरकार ने देवदार के 1000 पेड़ों को काटने का फरमान जारी किया है। पेड़ों के सीने पर खंजर से मौत का नंबर भी डाल दिया है। पौराणिक पेड़ों की छाती पर मौत का बिल्ला देख स्थानीय लोग और जागेश्वर धाम मंदिर के पुजारी बेहद नाराज और दुखी हैं। सोशल एक्टिविस्ट भी विकास के नाम पर पेड़ों की हत्या को रोकने के लिए सरकार पर दवाब बना रहे हैं। जागेश्वर धाम के मुख्य पुजारी, हेमंत भट्ट का कहना है, ‘देवदार पेड़ों का संबंध सीधे-सीधे हिंदू धर्म की आस्था और मान्यता से है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अगर पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाई गई तो यह विकास नहीं विनाश की दस्तक होगी। केदारनाथ त्रासदी हम देख चुके हैं, उससे सबक लेने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘कुमाऊं कमिश्नर के संज्ञान में पूरा मामला है, उत्तराखंड सरकार से अनुरोध है कि जल्द से जल्द पेड़ों के कटान के फैसले को रद्द किया जाए।’ जागेश्वर धाम के मुख्य आचार्य गिरीश भट्ट बताते हैं कि दारूक वन की वजह से ‘जागेश्वर धाम’ का महत्व है। उन्होंने कहा, ‘शिवपुराण में स्पष्ट है कि 8वां नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘दारुक वन’ में है। दारुक वन का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है। उन्होंने बताया कि जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे दारुक वन के नाम से ही पहचान मिली है। यहां सात ऋषियों- कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज ने तपस्या की है। देवदार का संधि विच्छेद देव और दार है। देव का मतलब ‘देवता’ और दार का मतलब ‘वृक्ष’ होता है। देवदार के पेड़ों में देवता का स्वरूप होता है। भट्ट कहते हैं, ‘अगर इन्हें काटा गया तो 110% संभावना है कि भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल जाएगा और कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आएगी, जिसके लिए सरकार तैयार रहे।’
जागेश्वर धाम के मुख्य आचार्य गिरीश भट्ट बताते हैं कि यहां रोजाना देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु भी पेड़ों की कटाई की खबर को सुनकर परेशान हैं। वहीं जागेश्वर में रहने वाले 100 से अधिक परिवारों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर पेड़ों को काटा गया तो कोई बड़ी आपदा आएगी और लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा। स्थानीय लोग और पर्यावरणविद् लगातार धामी सरकार को आने वाली आपदा को लेकर आगाह कर रहे हैं।
उत्तराखंड के जागेश्वर में मास्टर प्लान के तहत हो रहे सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 1000 देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी से पर्यावरणविद चिंतित हैं। कार्यदायी संस्था लोक निर्माण विभाग ने चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों की पहचान शुरू कर दी है। इस क्षेत्र के लोग भी इसके विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि आस्था से जुड़े दारुक वन में खड़े इन पेड़ों की वे पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह दारुक वन भगवान शिव का निवास स्थान है, लेकिन धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान को धरातल पर उतारने के लिए आरतोला से जागेश्वर तक तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। टू-लेन सड़क बनाने के लिए इसकी जद में आ रहे 1000 से अधिक देवदार के पेड़ों का कटान होना है। उधर स्थानीय लोग आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।
उत्तराखंड सरकार को बताना चाहिए कि पेड़ों को काटने वाला विकास किसने मांगा है। उत्तराखंड में कई वन पूरी तरह बंजर हो गए हैं, उसके लिए सरकार ने अबतक क्या किया है। सरकार तथाकथित विकास के नाम पर सिर्फ कुछ ठेकेदार लॉबी को खुश करने का काम कर रही है। जागेश्नर में सड़क चौड़ीकरण की कोई जरूरत नहीं है। यहां सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन ही भारी भीड़ लगती है। इस भीड़ को स्थानीय प्रशासन और लोग आसानी से कंट्रोल कर लेते हैं। लेकिन सरकार ने चौड़ीकरण की आड़ में लूट का मास्टर प्लान तैयार किया है। अगर सरकार ने पेड़ों के काटने की योजना को नहीं टाला तो पूरे प्रदेश में जनजागरण होगा।
वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अनुसार, 12 प्रजातियों के किसी भी पेड़ को काटने वाले को जेल जाना पड़ सकता है। इनमें अखरोट, अंगू, साल, पीपल, बरगद, देवदार, चमखड़िक, जमनोई, नीम, बांज, महुआ और आम के पेड़ शामिल हैं। उत्तराखंड में 12 प्रजातियों के पेड़ों को काटना पूरी तरह से मना ही नहीं बल्कि यह गैरकानूनी है। इन पेड़ों को काटने वाले को जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने की जेल होती हो सकती है। हालांकि पिछले साल गैरसैंण के विधानसभा में वन संरक्षण अधिनियम को लेकर सदन में इस पर बात की गई थी, जिसमें पेड़ काटने पर लोगों को जेल की सजा छोडकर जुर्माना देना हो, लेकिन अभी इसपर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।