जब पेड़ों का इलाज गोबर से किया!

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एक ऐसा व्यक्ति जिसने पेड़ों का इलाज गोबर से ही कर दिया! प्रकृति ने हमें सबकुछ दिया है। इसमें हर समस्‍या का समाधान है। बस, समझने और देखने की जरूरत है। आईसीएआर-सीआईएसएच के डायरेक्‍टर रह चुके डॉ राम कृपाल पाठक यह बात कहते हैं। डॉ राम कृपाल पाठक जाने-माने कृषि वैज्ञानिक हैं। वह एक खास किस्‍म के आंवले के जनक रहे हैं। इसे ‘नरेंद्र’ आंवला कहते हैं। यह देश में आंवले की सबसे प्रचलित किस्‍मों में से एक है। डॉ पाठक ने बेल की ऐसी प्रजातियां तैयार की हैं जिनमें एक-एक किलो के फल होते हैं। उन्‍होंने पड़ों के लाइलाज रोग को गोबर से ठीक करने का फॉर्मूला दिया है। वह हवन की भस्‍म को खाद बताते हैं। प्राकृतिक, बायोडायनेमिक, ऋषि-कृषि, ऑर्गेनिक और नैचुरल इन सभी तरह की खेती पर एक साथ काम करने वाले वह पहले वैज्ञानिकों में से एक हैं। कृषि विज्ञान में न जाने कितने ही शोधार्थियों को उन्‍होंने गाइड किया है। ये वैज्ञानिक आज देश-विदेश में सेवाएं दे रहे हैं। डॉ पाठक ने खेती के लिए प्राचीन तौर-तरीकों पर फोकस किया है। उन्‍होंने प्रकृति में पोषक तत्‍वों के विज्ञान पर रिसर्च की है। वह दावे के साथ कहते हैं कि बिना केमिकल और फर्टिलाइजर के बेहतरीन खेती संभव है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा में हर चीज को ठीक करने की कुव्‍वत है। उन्‍होंने खेती को अग्निहोत्र विज्ञान से जोड़कर अध्‍ययन किया है। इन दिनों प्राकृतिक खेती की खूब चर्चा है। इस तरह की खेती की हर विधा पर डॉ राम कृपाल पाठक ने गहरा अध्‍ययन किया है। वह दावे के साथ कहते हैं कि खेती को प्राकृतिक संसाधनों से बड़ी आसानी और लाभकारी तरीके से किया जा सकता है। पुराने समय से ऐसा होता आया है। डॉ पाठक कॉस्मिक एनर्जी यानी ब्रह्मांडीय ऊर्जा की बात करते हैं। उन्होंने इस पर जमकर अध्‍ययन किया है। वह कहते हैं कि आप जंगलों को देखिए। वे अपने आप फलते-फूलते हैं। क्‍या उनमें बीमारियां नहीं होती होंगी। भला वहां कौन जाता है फर्टिलाइजर देने। हमारे ऋषि-मुनि बहुत विद्वान थे। वे साइंटिस्‍टों से कम नहीं थे। वे हवन करते थे। हवनों में भी अग्निहोत्र हवन का खास महत्‍व है। इससे खास तरह की एनर्जी बनती है। यह हार्मफुल माइक्रोऑर्गनिज्‍म को खत्‍म करती है। हवन की भस्‍म का इस्‍तेमाल कैमिकल फर्टिलाइजर की तरह किया जा सकता है।

इस तरह से की जाने वाली खेती को होमा फार्मिंग कहा जाता है। डॉ राम कृपाल पाठक देश में उन गिने चुने वैज्ञानिकों में हैं जो इस तरह की खेती के एक्‍सपर्ट हैं। यूपी का राजभवन इसका उदाहरण है। यहां के उद्यान का प्रभार आरके पाठक के शिष्‍य पर है। उद्यान पूरी तरह से प्राकृतिक है। उद्यान में नियमित रूप से हवन की भस्‍म का छिड़काव किया जाता है। इसके कारण पेड़ पौधे रोगमुक्‍त हैं।

प्रकृति की शक्ति गजब है। इसके लिए उन्‍होंने आम के पेड़ों में होने वाले एक रोग का जिक्र किया। इसका नाम गमोसिस है। कभी इसका इलाज बहुत टेढ़ी खीर हुआ करता था। दरअसल, आम का पेड़ जहां से कटता है वहां से गम निकलता है। इस गम को बैक्‍टीरिया और फंगस का इन्‍फेक्‍शन बहुत जल्‍दी पकड़ लेता है। इससे पूरा पेड़ सूख जाता है। वैज्ञानिकों ने इस बीमारी के इलाज के लिए कैमिकल फॉर्म्‍यूलेशन बनाया था। इसे पेड़ के उस हिस्‍से पर लगाया जाता था जहां से गम निकल रहा होता था। लेकिन, यह बहुत कारगर नहीं था। इससे आम पट्टी के किसान बहुत परेशान थे। फिर आरके पाठक ने सोचा कि क्‍यों न इसका इलाज पारंपरिक तरीकों में तलाशा जाए। वह काफी अध्‍ययन करने लगे। उन्‍हें पता चला कि पहले लोग गाय के गोबर को इसके लिए इस्‍तेमाल करते थे। उन्‍होंने भी वैसा ही किया। इसके अभूतपूर्व नतीजे निकले।

दरअसल, गाय के गोबर में एंटी बैक्‍टीयल और एंटी फंगल प्रॉपर्टीज होती हैं। पुराने जमाने में लोग घरों को भी इसीलिए गाय के गोबर से लीपते थे। जब गाय के गोबर को गम पर अप्‍लाई किया गया तो उसने बैक्‍टीरियल और फंगल इंफेक्‍शन की ग्रोथ को रोका। इसे लेकर स्‍टडी को पब्लिश भी किया गया। हॉर्टिकल्‍चर सोसाइटी ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के प्रेसीडेंट डॉ पाठक करीब 80 साल के हो चुके हैं। लेकिन, आज भी वह बहुत सक्रिय हैं। किसानों की समस्‍याओं को दूर करने के लिए वह हर समय तैयार रहते हैं। उनके बताए तरीकों से न जानें कितने किसान लाभान्वित हो चुके हैं।

डॉ पाठक को एक खास किस्‍म के आंवले को तैयार करने का श्रेय जाता है। इसका नाम नरेंद्र आंवला है। आंवले के औषधीय गुणों के कारण यह काफी मांग में रहता है। नरेंद्र आंवला आंवले की उत्‍कृष्‍ट किस्‍मों में से है। इसी तरह डॉ पाठक ने बेल की ऐसी किस्‍मों को विकसित किया जिनमें एक-एक किलो के फल होते हैं। इस तरह के बेल फल का छिलका बहुत पतला होता है। पल्‍प बहुत ज्‍यादा होता है। इसकी मांग बहुत ज्‍यादा है।