आखिर कब आएगा नीरव मोदी भारत वापस?

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नीरव मोदी भारत कब वापस आएगा यह सवाल बहुत बड़ा सवाल बन चुका है! भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी को भारत लाने का रास्‍ता कुछ हद तक साफ हुआ है। ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने बुधवार को उसकी याचिका खारिज कर दी थी। भारत को प्रत्‍यर्पण के खिलाफ उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। यह और बात है कि उसकी दलीलें काम नहीं आईं। गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता अरिंदम बागची ने ब्रिटेन हाईकोर्ट के फैसले का स्‍वागत किया। उनके मुताबिक, सरकार नीरव मोदी को जल्‍द से जल्‍द भारत लाना चाहती है। आर्थिक भगोड़ों को भारत लाने के प्रयास जारी रहेंगे। हालांकि, इस तरह की प्रक्रिया लंबी होती है। 51 साल के नीरव मोदी पर फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। वह पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में करीब 14,000 करोड़ रुपये का चूना लगाकर भागा हुआ है। अब जब नीरव मोदी की याचिका ब्रिटेन हाई कोर्ट में खारिज हो चुकी है तो क्‍या इसका मतलब है कि उसे मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद किया जाएगा?

एक्‍सपर्ट्स की मानें तो अभी नीरव मोदी के पास रास्‍ते खुले हुए हैं। यानी भारत में उसे लाने की जद्दोजेहद अभी जारी रह सकती है। नीरव ब्रिटेन में आगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। जिस तरह अभी तक का उसका रुख रहा है, उसमें इस बात की आशंका बहुत ज्‍यादा है। वह किसी भी सूरत में भारत की जांच एजेंसियों के हाथ नहीं पड़ना चाहता है। बेशक, भारत को प्रत्‍यर्पण के खिलाफ नीरव की अपील ठुकराई जा चुकी है। लेकिन, उसके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्‍ता बना हुआ है।

लीगल एक्‍सपर्ट्स के अनुसार, अगर नीरव मोदी ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्‍ता चुनता है तो उसके पास अपील करने के लिए सिर्फ 14 दिन हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्‍ता इतना आसान नहीं है। यह अपील सिर्फ तभी हो सकती है जब हाईकोर्ट इसके लिए मंजूरी दे। इसमें हाईकोर्ट को बताना पड़ेगा कि उसका मामला आम जनता के लिए महत्‍व रखता है। इससे यह बात साफ है कि नीरव मोदी की लीगल टीम को काफी मेहनत करनी होगी। उसे इस तरह अपने केस को प्रस्‍तुत करना होगा जिससे साबित हो कि केस जनता के महत्‍व का है। इससे भी नीरव का सिर्फ इतना ही भला होगा कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएगा। सुप्रीम कोर्ट नीरव मोदी को राहत देगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ज्‍यादातर मामलों में वकील यह रास्‍ता अपनाने से मना करते हैं।

भगोड़े कारोबारी के पास दूसरा विकल्‍प मानवाधिकार यूरोपीय अदालत यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यून राइट्स का है। इसके लिए नीरव की टीम को अच्‍छी तैयारी करनी होगी। मानवाधिकार यूरोपीय अदालत फ्रांस के स्‍ट्रॉसबर्ग में बनी है। यह यूरोपीय परिषद के कानून की अदालत है। यह सुनिश्चित करता है कि यूरोपीय परिषद के सदस्‍य देश उन अधिकारों का सम्‍मान करें जिन्‍हें मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्‍वेंशन में तैयार किया गया है। जिन लोगों को लगता है कि उनके मानवाधिकारों का उल्‍लंघन किया जा रहा है, ईसीएचआर में याचिका डाल सकते हैं। इसके लिए उन्‍हें अपने नेशनल लीगल सिस्‍टम के जरिये एप्रोच करना पड़ता है। इसका मतलब यह हुआ कि नीरव मोदी ईसीएचआर का दरवाजा खटखटा सकता है। वह ब्रिटेन सरकार के खिलाफ अपने बुनियादी अधिकारों की दुहाई देकर इस अदालत में जाने का रास्‍ता अपना सकता है।

इन दो रूटों के बाद भी नीरव मोदी के पास ब्रिटेन में राजनीतिक शरण लेने का विकल्‍प है। राजनीति शरण विदेश में रहने का अधिकार है। यह उस देश की सरकार उन लोगों को देती है जिन्हें अपना देश छोड़ना पड़ता है। ऐसे में मामले में लोग दिखाते हैं कि उनकी जिंदगी को खतरा है। अगर नीरव मोदी इस रूट को अपनाता है तो उसे साबित करना होगा कि भारत में उसे उत्‍पीड़न का जोखिम है। दिलचस्प यह है कि नीरव मोदी 2018 में इस रूट को अपनाने का असफल प्रयास कर चुका है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसके बारे बताया गया था। हीरा कारोबारी ने इसके लिए एक वकील की सेवाएं लेने की भी कोशिश की थी। इसके जरिये वह ब्रिटेन में शरण लेने के लिए आवेदन करना चाहता था। उसने लंदन में दो लॉ फर्मों से संपर्क किया था। हालांकि, इसके आसार नहीं है कि ब्रिटेन इस आवेदन को स्वीकार करेगा। कारण है कि भारत नीरव मोदी की वापसी के लिए दबाव बना रहा है। वापसी के लिए इनकार करने से दोनों देशों के बीच रिश्‍ते भी खराब हो सकते हैं। खासकर ऐसे समय जब दोनों मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं।

पूरा मामला पीएनबी घोटाले से जुड़ा है। मोदी और उसके चाचा मेहुल चोकसी पर पीएनबी के फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) के जरिये लगभग 13,700 करोड़ रुपये के लेनदेन का आरोप है। चोकसी ने एंटीगुआ और बारबुडा की नागरिकता ले रखी है। घोटाले का खुलासा होने के हफ्तों पहले जनवरी 2018 में दोनों ने भारत छोड़ दिया था। मई 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भगोड़े हीरा व्यापारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थीं। मार्च 2019 में उसे ब्रिटेन की पुलिस ने मध्‍य लंदन में गिरफ्तार कर लिया था। वह दक्षिण-पश्चिम लंदन के वैंड्सवर्थ जेल में बंद है। फरवरी 2021 में उसके प्रत्यर्पण को अदालत ने मंजूरी दे दी थी। उसी साल अप्रैल में ब्रिटेन सरकार भी नीरव के प्रत्यर्पण के लिए सहमत हो गई थी। हालांकि, नीरव की लीगल टीम ने उसके मानसिक स्वास्थ्य का हवाला देकर लंदन के हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी थी। लीगल टीम की दलील थी कि नीरव की मानसिक स्थिति खराब हो गई है।

हालांकि, भारत सरकार भी नीरव को छोड़ने के मूड में नहीं है। गुरुवार को गृह मंत्रालय के प्रवक्‍ता अरिंदम बागची ने इसके साफ संकेत दे दिए। नीरव के प्रत्‍यर्पण पर ब्रिटेन हाईकोर्ट के आदेश को लेकर बागची ने प्रतिक्रिया देते हुए कई बातें साफ कीं। उन्‍होंने कहा क‍ि भारत सरकार आर्थिक भगोड़ों के प्रत्‍यर्पण के लिए जोरदार तरीके से दबाव बनाए हुए है। अमूमन यह प्रक्रिया लंबी होती है। लेकिन, इस दिशा में सभी प्रयास किए जाएंगे। सरकार चाहती है कि इन भगोड़ों को भारत लाया जाए। यहीं के कानून के हिसाब से इन पर मुकदमा चले। उन्‍होंने ब्रिटेन हाईकोर्ट के फैसले का स्‍वागत किया।