यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यूपी बिहार की रेलवे में सुधार कब आएगा! सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के एक यूजर ने बीते शुक्रवार को भीड़ भरी ट्रेन का एक वीडियो साझा किया था। पोस्ट को कैप्शन देते हुए यूजर ने लिखा, “यह जनरल कोच नहीं है… यह स्लीपर कोच नहीं है… यह 3AC कोच नहीं है… यह 2nd AC कोच है… भीड़ भारतीय ट्रेनों के सबसे प्रीमियम कोचों में से एक तक पहुंच गई है।”यात्रा करने के लिए केवल फर्स्ट एसी बचा है…” ट्रेन में एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में लोगों को वॉशरूम का रास्ता अवरुद्ध करते हुए और प्रवेश और निकास द्वार पर खड़े देखा गया है।इस ट्वीट के जवाब में भारतीय रेलवे ने एक और वीडियो पोस्ट किया जिसके बारे में उसने कहा कि यह उसी कोच का है। इसमें लिखा था, ”कोच का मौजूदा वीडियो। कोई भीड़-भाड़ नहीं। कृपया भ्रामक वीडियो साझा करके भारतीय रेलवे की छवि खराब न करें।”
एक्स यूजर के वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए एक यूजर ने लिखा, “भारत में हम करदाता असहाय हैं। हम दिन में 12-14 घंटे काम करते हैं, कमाते हैं, 33% प्रत्यक्ष कर, 3% सेस, 18% जीएसटी और अन्य कर चुकाते हैं। अपनी मेहनत की कमाई में बचता है 40% से भी कम। इसके बदले पाते हैं कमतर सार्वजनिक शिक्षा, प्रशासनिक प्रणाली और चिकित्सा, सामाजिक सुरक्षा, आदि।” इस बीच एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की,रेलवे बोर्ड के एक रिटायर्ड मेंबर से जब यह सवाल पूछा गया तो उनका विचार था कि जहां तेज गति से चलने वाली लोकल ट्रेन ज्यादा है, वहां लोग रिजर्व डिब्बे में नहीं चलते। बिहार में सड़क परिवहन ना के बराबर है। बस का भाड़ा भी ट्रेन से ज्यादा है। लोकल या पैसेंजर ट्रेन ज्यादा है नहीं। इसलिए मजबूरी में लोग रिजर्व डिब्बे में सफर करते हैं। “ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। मुझे भी एक दुखद अनुभव हुआ, जहां कन्फर्म सीट होने के बावजूद मेरा पूरा परिवार मुंबई से वडोदरा तक 6 घंटे तक खड़े होकर आया। हमारी सारी शिकायतें अनसुनी हो रही हैं। यह एक असंवेदनशील सरकार है।”
देश के हिंदी पट्टी, खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इन इलाकों के मेल व एक्सप्रेस ट्रेन के रिजर्व डिब्बों में अनऑथराइज्ड पैसेंजर ठुंसे रहते हैं। इनमें से कुछ तो बेटिकट होते हैं जबकि कुछ को रेलवे के टीटीई जुर्माना काट कर टिकट बना देते हैं। भले ही उनका टिकट बन गया हो, लेकिन रहते हैं वे अनऑथराइज्ड ही। हमने पिछले दिनों ही पुरुषोत्तम एक्सप्रेस में यात्रा की थी। उसमें एसी3 में सफर कर रहे एक अनऑथराइज्ड पैसेंजर से पूछा तो उसने जवाब दिया “क्या करें हम। जनरल डिब्बे में तो इतने पैसेंजर ढुंसे हैं कि घुस भी नहीं पाएंगे। बता दें कि यात्रा करने के लिए केवल फर्स्ट एसी बचा है…” ट्रेन में एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में लोगों को वॉशरूम का रास्ता अवरुद्ध करते हुए और प्रवेश और निकास द्वार पर खड़े देखा गया है।इस ट्वीट के जवाब में भारतीय रेलवे ने एक और वीडियो पोस्ट किया जिसके बारे में उसने कहा कि यह उसी कोच का है। मजबूरन स्लीपर डिब्बे में घुसना पड़ता है। इस ट्रेन में स्लीपर के पहले 10 डिब्बे होते थे। उसे घटा कर 4 कर दिया गया है। ऐसे में तो एसी3 ही सहारा बचता है ना।”
हमने आनंद विहार से बिहार जाने वाली कई सुपरफास्ट ट्रेनों को देखा। उन ट्रेनों में जनरल डिब्बे दो या तीन थे। आनंद विहार से ट्रेन रवाना होती है और यहीं इतने पैसेंजर्स हैं कि कोई उसमें घुस भी नहीं सकता। स्थिति यह है कि लोग शौचालयों में सफर कर रहे हैं। जनरल डिब्बे में चार शौचालय होते हैं, चारों पर पैसेंजर्स का कब्जा। एक शौचालय में तो बड़े-बच्चे मिला कर 10 व्यक्ति दिखे। अब समझिए कि उस डिब्बे में यात्रा करने वालों को नेचर्स कॉल आए तो वह कैसे फारिग होंगे?
रेलवे बोर्ड के एक रिटायर्ड मेंबर से जब यह सवाल पूछा गया तो उनका विचार था कि जहां तेज गति से चलने वाली लोकल ट्रेन ज्यादा है, वहां लोग रिजर्व डिब्बे में नहीं चलते। बिहार में सड़क परिवहन ना के बराबर है। बस का भाड़ा भी ट्रेन से ज्यादा है। लोकल या पैसेंजर ट्रेन ज्यादा है नहीं। इसलिए मजबूरी में लोग रिजर्व डिब्बे में सफर करते हैं। इसका निदान यह हो कि लोकल पैसेंजर्स के लिए भी पर्याप्त ट्रेन हो। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी ट्रेन भी समय पर चले।