आखिर कोरोनावायरस से कब मिलेगा छुटकारा?

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कोरोनावायरस से छुटकारा पाना अब मुश्किल होता जा रहा है! H3N2 इन्फ्लूएंजा के बीच कोविड के मामलों में उछाल ने टेंशन बढ़ाई है। दिल्‍ली, महाराष्‍ट्र, केरल समेत कई राज्यों में कोरोना ने फिर रफ्तार पकड़ी है। संक्रमितों में सर्दी, खांसी, जुकाम, गले में खराश, हल्के बुखार जैसे लक्षण आम हैं। इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि मरीजों में इस बार लक्षण ज्यादा समय तक दिख रहे हैं। कफ की समस्‍या भी रहती है। कोरोना मरीजों को अब एक नई परेशानी से जूझना पड़ रहा है। वायरस उनके मुंह का स्वाद बिगाड़ रहा है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बार कोरोना इन्‍फेक्‍शन की सबसे बड़ी पहचान यही है कि स्वाद में कड़वाहट आ जाती है। राहत की बात यह है कि कोरोना पहले की तरह फेफड़ों मे उतरकर निमोनिया में तब्‍दील नहीं हो रहा। ऐसा होता तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी से खतरा बढ़ जाता। संक्रमण की हालिया लहर के कमजोर होने के पीछे यही वजह बताई जा रही है। हालांकि, वायरस अब गले में कॉलोनी बसा लेता है। कोविड का असर अब अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा दिख रहा है। मेडिकल एक्‍सपर्ट्स के अनुसार, को-मॉर्बिड मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है। भले ही अभी फैल रहा कोरोना उतनी गंभीर बीमारी नहीं दे रहा, लेकिन शुगर, किडनी, लिवर, हार्ट, कैंसर, एनीमिया जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ज्‍यादा खतरा है। ऐसे लोगों में सामान्‍य इन्‍फ्लूएंजा भी निमोनिया बन सकता है। संभव हो तो को-मॉर्बिडिटी वाले मरीज घर से मास्‍क पहनकर बाहर निकलें।

किसी को दो से अधिक बार कोरोना हो रहा है तो उसका असर शरीर के अलग-अलग अंगों पर देखने को मिल रहा है।एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बार कोरोना इन्‍फेक्‍शन की सबसे बड़ी पहचान यही है कि स्वाद में कड़वाहट आ जाती है। राहत की बात यह है कि कोरोना पहले की तरह फेफड़ों मे उतरकर निमोनिया में तब्‍दील नहीं हो रहा। ऐसा होता तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी से खतरा बढ़ जाता। संक्रमण की हालिया लहर के कमजोर होने के पीछे यही वजह बताई जा रही है। हालांकि, वायरस अब गले में कॉलोनी बसा लेता है। कोविड का असर अब अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा दिख रहा है। मेडिकल एक्‍सपर्ट्स के अनुसार, को-मॉर्बिड मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है। भले ही अभी फैल रहा कोरोना उतनी गंभीर बीमारी नहीं दे रहा, लेकिन शुगर, किडनी, लिवर, हार्ट, कैंसर, एनीमिया जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ज्‍यादा खतरा है। डॉक्टरों की मानें तो किसी को तीसरी बार कोरोना हो रहा है तो उसके फेफड़ों पर इसका असर देखने को मिल रहा है।

इससे शरीर में जॉइंट पेन जैसी समस्या हो रही है। फरीदाबाद के एकॉर्ड अस्पताल में कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ़ ऋषि गुप्ता बताते हैंएक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बार कोरोना इन्‍फेक्‍शन की सबसे बड़ी पहचान यही है कि स्वाद में कड़वाहट आ जाती है। राहत की बात यह है कि कोरोना पहले की तरह फेफड़ों मे उतरकर निमोनिया में तब्‍दील नहीं हो रहा। ऐसा होता तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी से खतरा बढ़ जाता। संक्रमण की हालिया लहर के कमजोर होने के पीछे यही वजह बताई जा रही है। हालांकि, वायरस अब गले में कॉलोनी बसा लेता है। कोविड का असर अब अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा दिख रहा है। मेडिकल एक्‍सपर्ट्स के अनुसार, को-मॉर्बिड मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है। भले ही अभी फैल रहा कोरोना उतनी गंभीर बीमारी नहीं दे रहा, लेकिन शुगर, किडनी, लिवर, हार्ट, कैंसर, एनीमिया जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ज्‍यादा खतरा है। कि कोरोना का जो वैरिएंट इस वक्त भारत में है, वह ओमिक्रॉन का ही सब वेरिएंट है।

लोगों को चाहिए कि वह अपने शरीर का ज्यादा ध्यान रखें।एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बार कोरोना इन्‍फेक्‍शन की सबसे बड़ी पहचान यही है कि स्वाद में कड़वाहट आ जाती है। राहत की बात यह है कि कोरोना पहले की तरह फेफड़ों मे उतरकर निमोनिया में तब्‍दील नहीं हो रहा। ऐसा होता तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी से खतरा बढ़ जाता। संक्रमण की हालिया लहर के कमजोर होने के पीछे यही वजह बताई जा रही है। हालांकि, वायरस अब गले में कॉलोनी बसा लेता है। कोविड का असर अब अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा दिख रहा है। मेडिकल एक्‍सपर्ट्स के अनुसार, को-मॉर्बिड मरीजों को सावधान रहने की जरूरत है। भले ही अभी फैल रहा कोरोना उतनी गंभीर बीमारी नहीं दे रहा, लेकिन शुगर, किडनी, लिवर, हार्ट, कैंसर, एनीमिया जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ज्‍यादा खतरा है। इस बार मरीजों में A टाइप निमोनिया में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।