एक ऐसा गांव जहां पर एक रुपए में IITians बनते हैं! देश के लाखों बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं। इसके लिए वो पूरी जी-जान लगाकर मेहनत करते हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं, तो वहीं डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए नीट की। अब तो देश के लगभग हर शहर में लाखों कोचिंग सेंटर खुल गए हैं, जहां बच्चों से मोटी फीस वसूल कर उन्हें इन परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती है। आईआईटी और नीट के लिए सबसे प्रसिद्ध शहर राजस्थान का कोटा है, जहां तमाम कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। यहां देशभर से बच्चे पढ़ने आते हैं। लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि बिहार में एक गांव ऐसा है, जहां लगभग हर घर में आईआईटियंस हैं तो शायद आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन ये बिल्कुल सच है। बिहार के गया जिले में आने वाला ‘मानपुर पटवाटोली’ गांव आईआईटी के लिए मशहूर है। इसे ‘बिहार का कोटा’ और ‘आईआईटियंस के गांव’ के नाम से जाना जाता है।गांव में करीब 1 हजार परिवार रहते हैं। गांव के हर घर से कोई न कोई इंजीनियर या डॉक्टर है। यहां के बच्चे आज विदेशों में नौकरियां कर रहे हैं। गांव में इंजीनियर बनने का सिलसिला 1992 से शुरू हुआ था। यहां से सबसे पहले जितेंद्र प्रसाद ने आईआईटी की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गांव के अन्य बच्चों में भी आईआईटी के प्रति रुझान बढ़ा। अगर बात जितेंद्र की करें तो उन्होंने आईआईटी बीएचयू से इंजीनियरिंग की। इसके बाद उनकी जॉब टाटा स्टील में लगी जहां उन्होंने करीब दो साल नौकरी की इसके बाद वो अमेरिका में नौकरी करने चले गए।
जितेंद्र की सफलता ने गांव के दूसरे बच्चों को बहुत प्रभावित किया। बच्चों ने खुद से ही आईआईटी की तैयारी करना शुरू कर दिया। लेकिन गांव में पढ़ाई के संसाधन नाकाफी थे। इसके बाद बच्चों की मदद करने के लिए गांव के ही दुर्गेश्वर प्रसाद और चंद्रकांत पाटेश्वरी सामने आए। उन्होंने गांव के बच्चों की पढ़ाई के लिए एक लाइब्रेरी शुरू की। इसके साथ ही तैयारी करने वाले बच्चों को फ्री में कोचिंग देना शुरू किया। इन दो युवाओं के प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले साल इनके यहां तैयारी करने वाले 40 बच्चों में से 19 ने आईआईटी की परीक्षा पास की।
दुर्गेश्वर प्रसाद ने बताया कि गांव के बच्चों में पढ़ने की ललक है। इसे देखते हुए उन्होंने साल 2013 में वृक्ष नाम की संस्था शुरू की। शुरुआत में उन्होंने गांव के निर्धन और बेसहारा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पहले उन्होंने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देनी शुरू की। वो क्लास एक से लेकर आठवीं तक बच्चों को पढ़ाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वो बच्चों को आईआईटी और नीट के लिए तैयार करने लगे।
उनके सेंटर पर फिलहाल करीब 200 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 40 बच्चे आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे हैं। वहीं 150 से ज्यादा बच्चे प्राइमरी और अन्य क्लासेस के हैं। दुर्गेश्वर ने इन बच्चों को पढ़ाने के लिए शानदार तरीका निकाला है। उनकी कोचिंग में सीनियर अपने जूनियर्स को पढ़ाते हैं। यानी प्राइमरी के बच्चों को क्लास 8वीं तक के बच्चे पढ़ाते हैं, आठवीं तक के बच्चों को 10वीं तक के बच्चे और इसी तरह उनके सीनियर उन्हें पढ़ाते हैं। लेकिन आईआईटी और नीट की तैयारी करने वाले बच्चों को वो खुद भी पढ़ाते और आसपास के गेस्ट टीचर्स को भी बुलाते हैं।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे आईआईटी में पढ़ाई कर रहे हैं या फिर देश विदेश में अच्छी नौकरियां कर रहे हैं। जब भी ये बच्चे गांव आते हैं तो कोचिंग सेंटर पर जाकर गांव के बच्चों की वर्कशॉप करते हैं। आईआईटी की तैयारी करने वाले जूनियर बच्चों को परीक्षा की तैयारी के गुर सिखाते हैं। गांव के लोगों के प्रयास का ही नतीजा है जो इस गांव से हर साल 10-12 बच्चों का सिलेक्शन आईआईटी के लिए होता है।
जब दुर्गेश्वर से हमने पूछा कि गांव में सेंटर चलाने में आने वाला खर्च निकालने के लिए आप क्या करते हैं? तो उन्होंने बताया कि गांव के लोग और आसपास के लोग इस काम में उनकी मदद करते हैं। दो साल पहले जब देश में कोरोना वायरस ने दस्तक दी, तब भी पटवाटोली के बच्चों की तैयारी जारी रही। वृक्ष संस्था के लोगों ने समाज से पुराने मोबाइल और लेपटॉप इकट्ठे किए और बच्चों को दिए ताकि वो ऑनलाइन अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। इसके अलावा उन्होंने ‘वन डे वन रुपये’ स्कीम शुरू की है। इसके तहत सेंटर पर पढ़ने वाले बच्चे उन्होंने एक दिन की 1 रुपये फीस देते हैं। उनका मानना है कि इससे बच्चों के पेरेंट्स पर कोई एक्स्ट्रा बोझ नहीं पढ़ता है और सेंटर भी ठीक से चल जाता है।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि गांव के बच्चों के बेहतरीन प्रदर्शन को देखकर आसपास के लोग भी अक्सर गांव में आते हैं। साथ ही पास कस्बे के एसबीआई बैंक के मैनेजर ने यहां के बच्चों को कई बार सम्मानित किया है। एसबीआई मैनेजर ने कहा है कि जब भी गांव का कोई बच्चा आईआईटी में सिलेक्ट होगा तो उसे बैंक की तरफ से एजुकेशन लोन की व्यवस्था वो करेंगे। गांव के प्रधान प्रेम नारायण भी इस काम में काफी सहयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में सदियों से पावरलूम का काम होता आ रहा है। यहां दरी और अन्य तरह के कपड़े बनाए जाते हैं। इसलिए पहले इस गांव को ‘बिहार का मैनचेस्टर’ भी कहा जाता था। लेकिन अब गांव का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। गांव के बच्चे बिजनस को करते ही हैं साथ में कई बच्चे आईआईटी और नीट को पास कर रहे हैं। अगर आप कभी गया जाएं तो एक बार आईआईटियंस के इस गांव नें भी जा सकते हैं।