हाल ही में एकता कपूर ने बॉलीवुड की कई मुश्किलों की बात की है! अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब पुरुष प्रधान बॉलिवुड में नायिका प्रधान फिल्मों ने अपना परचम लहराना शुरू किया था। ‘पीकू’ हो या ‘तुम्हारी सुलु’, अपनी ‘कहानी’ से दर्शकों का दिल जीतकर खुद को बॉक्स ऑफिस का ‘क्वीन’ साबित करना शुरू किया था लेकिन प्रड्यूसर एकता कपूर की मानें, तो कोविड के बाद इन महिला प्रधान फिल्मों की राह फिर मुश्किल हो गई है। बॉलिवुड में औरतों के बारे में फिल्में बनाना बहुत ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। मैंने तीन हीरोइनों को लेकर एक फिल्म बनाई है, द क्रू जिसके प्रोमो को बहुत प्यार मिला लेकिन मैं आपको बता नहीं सकती कि कितने लोगों ने मुझसे कहा कि तीन औरतों की फिल्म कौन देखेगा?’ इंडस्ट्री की जानी-मानी निर्माता एकता कपूर ने हाल ही में ‘फिक्की फ्रेम्स’ में अपने इस बयान से सबको चौंका दिया। बात हैरानी की है भी, क्योंकि लंबी लड़ाई के बाद अब जाकर हमारी नायिकाओं ने सिल्वर स्क्रीन पर अपना दबदबा कायम किया था। प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत, विद्या बालन, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट आदि ने ‘मैरी कॉम’, ‘पीकू’, ‘कहानी’, ‘द डर्टी पिक्चर’, ‘तनु वेड्स मनु 2’, ‘क्वीन’, ‘राजी’, ‘पद्मावत’ जैसी कामयाब फिल्मों से इस नायक प्रधान बॉलिवुड में नायिका प्रधान फिल्मों की राह मजबूत की थी। अभी तो कई स्तर पर बराबरी की लड़ाई चल ही रही थी। ऐसे में, एकता कपूर जैसी स्थापित निर्माता का तबू, करीना कपूर खान और कृति सेनन जैसी चर्चित अदाकाराओं से सजी फिल्म ‘द क्रू’ के लिए ऐसे सवालों का सामना करना निश्चित तौर पर निराशा भरी बात है।
इंडस्ट्री में विमन सेंट्रिक फिल्मों के दबदबे की आम धारणा को तोड़ते हुए एकता ने खुलासा किया कि कोविड के बाद हालात बदल गए हैं और ऐसी फिल्में बनाना और मुश्किल हो गया है। बकौल एकता, ‘आज माचाेइजम वाली फिल्में बनाना आसान है, जबकि फेमिनिजम एक टैबू है, जो डरावनी बात है। अगर मेरी फिल्म में तीन हीरोइनों के बजाय तीन हीरो होते तो कहानी कुछ और होती। मेरा मानना है कि इस सोच की जड़ कॉमर्स यानी पैसे से जुड़ी है। जब इन फीमेल सेंट्रिक फिल्मों का कॉमर्स बदलेगा, तभी ये सोच बदलेगी। आप देखें, तो अब भी पैसे से जुड़े फैसले मर्द के होते हैं। बहुत सी औरतें अब भी मूवी की टिकट खरीदने के लिए अपने पतियों का इंतजार करती हैं। इसलिए, ओटीटी और टीवी में भले बदलाव और बराबरी आ गई हो, लेकिन फिल्मों में अभी भी काफी चुनौतियां हैं।’ गौर करें ताे एकता की बात सही ही लगती है। कोविड के बाद थिएटर्स में आई फीमेल सेंट्रिक फिल्मों में आलिया भट्ट की गंगूबाई काठियावाड़ी ही हिट साबित हुई। जबकि अदा शर्मा की द केरल स्टाेरी सरप्राइज हिट रही, तो रानी मुखर्जी की चटर्जी वर्सेज नॉवे ने ठीकठाक कमाई की। इनके अलावा, कंगना रनौत की थलाइवी, तेजस, धाकड़ सभी बॉक्स ऑफिस पर असफल ही रहीं। विद्या बालन की लीड वाली नीयत, काजोल स्टारर सलाम वेंकी, शिल्पा शेट्टी की सुखी, भूमि पेडनेकर की थैंक यू फॉर कमिंग, दीया मिर्जा, रत्ना पाठक, फातिमा सना शेख की धक धक जैसी तमाम फीमेल सेंट्रिक फिल्में भी थिएटर में दर्शक नहीं खींच पाईं। हाल ही में आई किरण राव की लापता लेडीज को खूब वाहवाही मिली लेकिन बॉक्स ऑफिस पर धमाल वह भी नहीं मचा पाई।
हालांकि, फीमेल सेंट्रिक फिल्मों के साथ बजट से लेकर स्क्रीन की संख्या तक, हर जगह भेदभाव भी होता है। पर्दे पर खुद सशक्त महिला किरदार निभाने के बाद अब बतौर निर्माता भी फीमेल सेंट्रिक फिल्में बनाने वाली ऐक्ट्रेस रिचा चड्ढा और तापसी पन्नू का अनुभव भी एकता की तरह ही कड़वा रहा है। रिचा चड्ढा कहती हैं, ‘अगर आपकी फिल्म हीरोइन सेंट्रिक है, डायरेक्टर या प्रड्यूसर फीमेल है और आप अपनी फिल्म बेचने जाते हैं तो आपसे पूछा जाता है कि हीरो कौन है? इंडस्ट्री में बॉयज क्लब काम करता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।’ वहीं, इंडस्ट्री में हीरो-हीरोइन को लेकर होने वाले भेदभाव के खिलाफ हमेशा आवाज उठाने वाली तापसी पन्नू ने अपने बैनर तले बनी नायिका प्रधान फिल्म धक धक काे सही से प्रमोट नहीं किए जाने पर खुलकर नाराजगी जताई थी। रत्ना पाठक शाह, दीया मिर्जा, फातिमा सना शेख, संजना सांघी स्टारर इस फिल्म का ट्रेलर महज रिलीज से चार दिन पहले रिलीज किया गया था। इस भेदभाव से नाखुश तापसी ने दो टूक कहा था, ‘ये सबसे बड़ा झूठ है कि कॉन्टेंट ही किंग है। जब फिल्म बनती है तो एक लाइन सुनने के बाद ही फाइनैंसर पूछने लगते हैं कि हीरो कौन है? उसके आधार पर ही वे तय करते हैं कि कितना इन्वेस्टमेंट करना है।’
पहली लाइन ही यही बोली जाती है कि फीमेल सेंट्रिक फिल्म है न, तो इतना बजट नहीं होगा। फीमेल सेंट्रिक फिल्म है न, तो आप फीस कम करो। हमारा, बजट, स्क्रीन, सैलरी सब कम होता है और ये अपमानजनक तरीके से कम होता है।’ तापसी इसकी एक वजह ऑडियंस के नजरिए को भी मानती हैं। बकौल तापसी, ‘बिजनेस के लिहाज से सोचें तो मेकर्स पूरी तरह गलत भी नहीं हैं। वे कहते हैं कि थिएटर में लोग ही नहीं आ रहे हैं। आप प्री-बुकिंग का डाटा देख लीजिए, जब हीरो वाली फिल्म आती है तो लोग पहले से तय कर लेते हैं कि उन्हें फलां फिल्म देखनी है, लेकिन एक हीरोइन की लीड वाली फिल्म आती है तो लोग रिव्यू का इंतजार करते हैं। इसलिए बजट, स्क्रीन की संख्या, फीस सबमें बराबरी आने में बहुत वक्त लगेगा।’
बॉक्स ऑफिस पर फीमेल सेंट्रिक फिल्मों के ना चलने के कारण ओटीटी ऐसी फिल्मों का मुख्य ठिकाना बन गया है। निर्माता रिस्क न लेते हुए अपनी विमन सेंट्रिक फिल्माें को सीधे ओटीटी पर ला रहे हैं। फिर वह करीना कपूर की जाने जां हो, तबू की खुफिया, विद्या बालन की शेरनी, जलसा हो या काजोल-कृति सेनन की दो पत्ती, रवीना टंडन की पटना शुक्ला, सारा अली खान की ऐ वतन मेरे वतन, ज्यादातर हीरोइनों की मुख्य भूमिका वाली फिल्में थिएटर के बजाय ओटीटी की शोभा बन रही हैं।