विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी को घोषित कर दिया गया है! कोविड-19 के बीच भारत में मंकीपॉक्स वायरस के चार मामले आ चुके हैं। केरल से तीन और दिल्ली से एक केस मिला है। सबसे ताजा केस वेस्ट दिल्ली से आया है जहां 31 वर्षीय व्यक्ति में वायरस की पुष्टि हुई। मरीज मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में भर्ती है। उसको बुखार और त्वचा पर घाव होने के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया और उसकी कोई ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है। भारत में मंकीपॉक्स का पहला मरीज कोल्लम में 12 जुलाई को मिला था। संक्रमित शख्स यूएई से आया था। दूसरा केस अगले ही दिन कन्नूर में सामने आया, जहां दुबई से आए शख्स इस बीमारी से पीड़ित मिला था। दुनिया भर में मंकीपॉक्स के करीब 17 हजार मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से अफ्रीका में 5 मरीजों की मौत भी हो चुकी है। मंकीपॉक्स के प्रसार को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। आइए समझते हैं कि इस बीमारी के लक्षण, इलाज और बचने के तरीके क्या हैं। साथ ही साथ एक्सपर्ट्स से यह भी जानेंगे कि क्यों मंकीपॉक्स, कोविड-19 जितना संक्रामक और खतरनाक नहीं है।
मंकीपॉक्स है खतरनाक
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स पर शनिवार को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस अधनोम घेब्रेसियस ने कहा कि 70 से ज्यादा देशों में इस वायरल इन्फेक्शन का प्रसार बेहद असाधारण स्थिति है। डब्ल्यूएचओ की बैठक में इस बीमारी को इमरजेंसी घोषित करने पर आम सहमति नहीं थी। यह पहली बार है जब बिना आम सहमति के किसी बीमारी को इमरजेंसी करार दिया गया है। टेड्रोस से कहा कि यह ऐसी बीमारी है जो दुनिया में नए-नए तरीकों से फैल रही है, जिसके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। इन कारणों के चलते, मैंने तय किया है कि मंकीपॉक्स पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है।
मंकीपॉक्स पर यह डब्ल्यूएचओ का सबसे टॉप लेवल का अलर्ट है। हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा का मतलब है कि WHO मंकीपॉक्स को दुनियाभर के लिए बड़ा खतरा मानता है और इसे फैलने से रोकने और महामारी में बदलने की आशंका से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल की तुरंत जरूरत है। यह घोषणा दुनियाभर की सरकारों के लिए तुरंत कार्रवाई की अपील का काम करती है।
कब – कब हुई ऐसी इमरजेंसी घोषित?
ग्लोबल हेल्थ एजेंसी के रूप में, WHO ने पिछले दो दशक में सात ग्लोबल इमरजेंसी घोषित की हैं। 2009 में स्वाइन फ्लू, 2014 में पोलियो और इबोला, 2015 में जीका, 2018 में के. इबोला और 2019 में कोविड-19 को ग्लोबल हेल्थ इमजरेंसी घोषित किया गया था। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के डॉ. फहीम युनूस के अनुसार, सारी हेल्थ इमजरेंसीज महामारी नहीं बनतीं, लेकिन WHO का यह कदम ऐहतियाती है।डॉ. युनूस के अनुसार, मंकीपॉक्स पर कोविड-19 वायरस जितना खौफ फैलाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने एक ट्विटर थ्रेड में समझाया कि कोविड श्वसन तंत्र के जरिए आसानी से फैलता है और फेफड़ों को निशाना बनाता है, यह ज्यादा घातक है। उन्होंने तुलनात्मक रूप से कहा कि कोविड अगर सर्पदंश है तो मंकीपॉक्स खटमल का काटना भर है। मंकीपॉक्स का फैलना थोड़ा मुश्किल है। यह नया वायरस नहीं है और इसके लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि मंकीपॉक्स की व्यापक टेस्टिंग की जरूरत है। डाक्टर के मुताबिक, जहां भी मंकीपॉक्स के आउटब्रेक्स हुए हैं, वहां वैक्सीनेशन की रणनीति पर अमल करना होगा। उन्होंने चेताते हुए कहा कि मंकीपॉक्स को लेकर डर फैलने की जरूरत नहीं है।
यह वायरल इंफेक्शन है। इंसान को संक्रमित होने पर फीवर, गले में खराश, सांस में दिक्कत होती है। इसके अलावा चिकन पॉक्स की तरह शरीर में रैशेज, दाने बन जाते हैं जो पूरे शरीर पर दिखने लगते हैं। स्मॉल पॉक्स और चिकनपॉक्स में रैशेज शरीर के हर हिस्से में बनते हैं, तलवे और हथेली में नहीं बनते। मंकीपॉक्स में हथेली और तलवे में भी बनते हैं। स्मॉल पॉक्स में इस्तेमाल होने वाला वैक्सीन इसमें कारगर हो सकता है लेकिन अभी यह अमेरिका और रूस में ही उपलब्ध है।
कई बार यह सांस से संबंधित इंफेक्शन कर देता है, जिससे मरीज को निमोनिया हो सकता है। इससे मरीज को दूसरी तरह का संक्रमण हो जाता है। कुछ मरीज के ब्रेन तक संक्रमण पहुंच जाता है और उन्हें मेननजाइटिस तक हो सकता है। ऐसी स्थिति में मरीज की मौत हो सकती है। अतः डब्ल्यूएचओ के अनुसार उनकी देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है!