क्या आप जानते हैं कि बिलकिस बानो कौन है! साल 2002 में गुजरात में दंगे भड़के तो वहां रहने वाले तमाम मुस्लिम दंगों से बचने के लिए प्रदेश छोड़कर जाना चाहते थे। इन्हीं लोगों में बिलकिस बानो और उनका परिवार भी शामिल था। बिलकिस बानो गुजरात के दाहोद जिले के रंधिकपुर नाम के गांव की रहने वाली हैं। उनके परिवार में तीन साल की बेटी समेत 15 सदस्य थे, जो किसी सुरक्षित स्थान पर जाने की कोशिश कर रहे थे।2002 दंगों के समय बिलकिस पांच माह की गर्भवती भी थीं।इस मामले में दायर चार्जशीट के मुताबिक, 3 मार्च को जब बिलकिस बानो अपने परिवार और अन्य कई परिवारों के साथ किसी सुरक्षित जगह की तलाश में छप्परबाड़ गांव पहुंची तो 20-30 लोगों ने उन पर हमला कर दिया। लाठी-डंडे और जंजीरों से उन्हें पीटने लगे। इस हमले में बिलकिस के परिवार के सात लोगों की मौत हो गई।
इतना ही नहीं बिलकिस बानो और चार महिलाओं के साथ शारीरिक दुष्कर्म किया। बिलकिस की मां का भी रेप किया गया। मरने वालों में बिलकिस की तीन साल की बेटी भी शामिल थी। इस दिल दहला देने वाले अपराध पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश जारी किए।
इस मामले में बिलकिस बानो को धमकियां मिलीं। उन्हें कई बार घर बदलने पड़े। पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदली गई। लेकिन बिलकिस ने न्याय की लड़ाई जारी रखी। सीबीआई के हाथ में केस आया तो मामले की दोबारा जांच शुरू हुई। 21 जनवरी 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने 11 दोषियों को सामूहिक बलात्कार और बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सीबीआई की विशेष अदालत के फैसलों को बंबई हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। लगभग 15 साल बिलकिस बानो और उनके परिवार की हत्या के दोषियों ने जेल में सजा काटी।
इसी मामले में जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे एक दोषी ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 15 अगस्त के दिन इन 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। इन 11 दोषियों में गोविंद नाई, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, जसवंत नाई, केशरभाई वोहानिया, शैलेश भट्ट, प्रदीप मोढ़डिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट, बाकाभाई वोहानिया और रमेश चांदना शामिल हैं। उनकी रिहाई के बाद से मामला चर्चा में है और एक बार फिर बिलकिस बानो का नाम सुर्खियों में आ गया है।
कानून के अंतर्गत किसी दोषी को उम्रकैद की सजा होने पर उसे कम से कम 14 साल की सजा जेल में काटनी होती है, जिसके बाद दोषी माफी की गुहार लगा सकता है। दोषी के व्यवहार और अपराध की प्रकृति की समीक्षा के आधार पर सरकार फैसला लेती है कि दोषी को रिहा करना है या सजा जारी रखनी है। हालांकि 14 साल का प्रावधान हल्के अपराध के दोषियों पर ही लागू होता है। संगीन मामलों में दोषी को आजीवन कारावास का दंड पूरा करना होता है।21 जनवरी 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने 11 दोषियों को सामूहिक बलात्कार और बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सीबीआई की विशेष अदालत के फैसलों को बंबई हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। लगभग 15 साल बिलकिस बानो और उनके परिवार की हत्या के दोषियों ने जेल में सजा काटी।
इसी मामले में जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे एक दोषी ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 15 अगस्त के दिन इन 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। इन 11 दोषियों में गोविंद नाई, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, जसवंत नाई, केशरभाई वोहानिया, शैलेश भट्ट, प्रदीप मोढ़डिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट, बाकाभाई वोहानिया और रमेश चांदना शामिल हैं। उनकी रिहाई के बाद से मामला चर्चा में है और एक बार फिर बिलकिस बानो का नाम सुर्खियों में आ गया है।
कानून के अंतर्गत किसी दोषी को उम्रकैद की सजा होने पर उसे कम से कम 14 साल की सजा जेल में काटनी होती है, जिसके बाद दोषी माफी की गुहार लगा सकता है।कानून के अंतर्गत किसी दोषी को उम्रकैद की सजा होने पर उसे कम से कम 14 साल की सजा जेल में काटनी होती है, जिसके बाद दोषी माफी की गुहार लगा सकता है। दोषी के व्यवहार और अपराध की प्रकृति की समीक्षा के आधार पर सरकार फैसला लेती है कि दोषी को रिहा करना है या सजा जारी रखनी है। हालांकि 14 साल का प्रावधान हल्के अपराध के दोषियों पर ही लागू होता है। संगीन मामलों में दोषी को आजीवन कारावास का दंड पूरा करना होता है।