आज हम आपको राजन तिवारी की कहानी सुनाएंगे, जो अपराधी होते हुए भी बिहार में जाकर नेता बन गए! कभी उत्तरप्रदेश को तो कभी बिहार, कभी जेल तो कभी विधानसभा, राजन तिवारी का नाम अक्सर सुर्खियों में आ ही जाता है। फिलहाल उत्तर प्रदेश के फार्रुखाबाद में जेल में बंद राजन तिवारी कभी बिहार के माननीय नेताजी हुआ करते थे। दो-दो बार विधानसभा तक पहुंचने वाले इस बाहुबली नेता का नाता जितना राजनीति से रहा उससे कहीं ज्यादा लंबा इतिहास इनका अपराध से हैं। हत्या, किडनैपिंग, मारपीट, लूटपाट और गैंगस्टर एक्ट।
उत्तर प्रदेश और बिहार नेताओं का अपराध से चोली दामन का साथ रहा है। अक्सर इन दोनों राज्यों में माफिया डान अपने अपराधों से बचने के लिए राजनीति के शरण लेते नज़र आते हैं। राजन तिवारी को भी उन्हीं नेताओं में एक माना जा सकता है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के सोहगोरा गांव में एक बेहद साधारण परिवार में राजन तिवारी का जन्म हुआ। पिता सरकारी वकील थे। बेटे को पढ़ा लिखाकर अच्छा ऑफिसर बनाना चाहते थे, लेकिन राजन तिवारी तो कुछ और ही सपना देख रहे थे।स्कूल टाइम तक तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पहुंचते ही राजन तिवारी के रंग-ढंग बदलने लगे। गोरखपुर यूनिवर्सिटी सालों से छात्र राजनीति का गढ़ रही है। छात्र राजनीति या यू कहें सरकारी ठेकों पर अपना कब्जा जमाने का जरिया। गोरखपुर में छात्र नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई हमेशा से ही यूनिवर्सिटी का हिस्सा रही और यहां पहुंचते ही नब्बे के दशक में राजन तिवारी भी गुटबाजी की इस लड़ाई में शामिल हो गए। उस वक्त वहां श्रीप्रकाश शुक्ला की तूती बोलती थी। ब्राह्मण और ठाकुरों की लड़ाई में श्रीप्रकाश अपना रूतबा जमा चुके थे और फिर राजन तिवारी ने भी श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ हाथ मिला लिया।
गोरखपुर में श्रीप्रकाश शुक्ला और उनके एक अन्य साथी आनंद पांडे का आंतक पहले ही काफी ज्यादा बढ़ चुका था और अब राजन तिवारी भी इस गैंग का हिस्सा बन चुके थे। इन तीनों की तिकड़ी ने पुलिस की नाक में दम किया हुआ था। अक्सर मारपीट, चाकू से वार, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, हत्या जैसे संगीन मामले इस गैंग के खाते में जुड़ते रहते। राजन तिवारी का नाम भी अपराधियों की लिस्ट में शामिल हो चुका था। ये माना जाता था राजन तिवारी श्रीप्रकाश जायसवाल राइट हैंड हैं और इस गैंग से जुड़े तमाम काले कारनामों में तिवारी का नाम होता ही था।24 अक्टूबर 1996 को महाराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा से विधायक रहे बाहुबली नेता वीरेन्द्र प्रताप शाही के ऊपर जानलेवा हमला होता है। उनकी कार पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जाती हैं। हमले में शाही को जांघ में गोली लगती है और वो बाल-बाल बच जाते हैं, लेकिन उनके गनर की मौत हो जाती है। इस हमले के बाद तो राजन तिवरी का नाम और ज्यादा फेमस हो जाता है। श्रीप्रकाश शुक्ला के अलावा राजन तिवारी को भी वीरेन्द्र प्रताप शाही पर हुए हमले का आरोपी बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश पुलिस राजन तिवारी को वांटेड अपराधियों की लिस्ट में डाल देती है और उनकी तलाश शुरू हो जाती है।
इस हमले के बाद ही राजन तिवारी खुद को बचाने के लिए एक नई जगह की तलाश करते हैं और उनका नया ठिकाना होता है बिहार का पूर्वी चंपारन इलाका। पूर्वी चंपारन में राजन तिवारी का ननिहाल बताया जाता है। कहते हैं यहीं पहुंचकर राजन तिवारी ने राजनीति को करीब से जाना। यहां वो गोविंदगंज के विधायक देवेन्द्र दूबे के करीब आए। वो देवेन्द्र दूबे को मामा कहकर बुलाते। 40 से ज्यादा मामलों में आरोपी राजन तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस की लिस्ट में बेशक वांटेड अपराधी थे, लेकिन गोविंदगंज में वो राजनीति के गुर भी सीख रहे थे। यहां पर राजन तिवारी ने अपना एक गैंग बना लिया था। बिहार में भी उनके ऊपर कई अपराधिक मामले दर्ज हुए।
इसी दौरान राजन तिवारी के कथित मामा और गोविंदगंज के तत्कालीन विधायक देवेन्द्र दूबे की हत्या हो जाती है। इस हत्या में दो लोगों के नाम सामने आते हैं, माकपा के विधायक अजीत सरकार और दूसरे लालू सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद, लेकिन थोड़े ही दिनों में इन दोनों का कत्ल हो जाता है और आरोप लगते हैं राजन तिवारी और उनके गैंग पर। कहते हैं श्रीप्रकाश शुक्ला की मदद से राजन तिवारी ने देवेन्द्र दूबे के दोनों हत्यारों को ठिकाने लगा दिया था। राजन तिवारी इन दोनों हत्याओं के आरोप में लंबे समय तक जेल में भी रहे, निचली अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि 15 साल बाद 2014 में उन्हें पटना हाइकोर्ट ने हत्या के आरोपों से बरी कर दिया।
देवेन्द्र दूबे की हत्या के बाद राजन तिवारी ने गोविंदगंज से ही चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। यूपी पुलिस का वांटेड अपराधी बिहार में विधायक बन चुका था। राजन तिवारी ने गोबिंदगज सीट से दो बार चुनाव जीता। पहली बार निर्दलीय और दूसरी बार लोक जनशक्ति पार्टी से। 2004 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमायी। नीतिश सरकार के आने के बाद बिहार में राजन तिवारी की दाल नहीं गलती नज़र आयी और उन्होंने एक बार फिर उत्तर प्रदेश का रुख किया। 2016 में राजन तिवारी बीएसपी में शामिल हो गए लेकिन पार्टी ने उन्हें सीट नहीं दी।इसी महीने राजन तिवारी पर पुलिसकर्मियों को धमाकाने का भी आरोप लगा है। दरअसल चार सिपाहियों ने आरोप लगाए कि राजन तिवारी ने पहले उनके साथ गलौज की और फिर जान से मारने की धमकी दी। ये चारों राजन तिवारी को कोर्ट में पेश करने के लिए ले जा रहे थे। गोरखपुर की कैंट पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है। इस बाहुबली नेता पर अब तक 40 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं हालांकि इनमें से कई मामलों में उन्हें क्लीन चिट भी मिली है लेकिन कई मामले अब भी पेंडिंग हैं। 17 साल से राजन तिवारी पर कोर्ट में पेश होने का वारंट भी जारी है, बावजूद इसके वो कभी कोर्ट में पेश नहीं हो रहे थे।