वजुभाई वाला एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने एक समय पीएम मोदी के लिए इस्तीफा दिया था! गुजरात की राजनीति में साल 2001 की बड़ी अहम भूमिका है। यह वही साल था, जब राज्य की राजनीति में नरेंद्र मोदी की वापसी हुई थी और सीधे मुख्यमंत्री बने थे। 7 अक्तूबर, 2001 को उन्होंने शपथ ली। इसके बाद उनके सामने भूकंप से तबाह हुए राज्य को उबारने के साथ-साथ पार्टी को मजबूत बनाने की दोहरी चुनौती थी। इसके अलावा सीएम बन चुके नरेंद्र मोदी को चुनकर विधानसभा भी पहुंचना था। राज्य में उस वक्त बीजेपी के 117 विधायक थे, मोदी को विधानसभा भेजने के लिए राजकोट (द्वितीय) से विधायक वजुभाई वाला ने इस्तीफा दे दिया। 2002 के जनवरी महीने में चुनाव हुआ। इसमें नरेंद्र मोदी 57 फीसदी से अधिक वोट हासिल करके विधायक बने। मोदी जुलाई तक यहां से विधायक रहे। इसके बाद 2002 के चुनावों का ऐलान हो गया। वजुभाई वाला को फिर से पार्टी ने टिकट दिया और वे फिर विधायक बन गए।
83 साल की उम्र के वाला गुजरात की राजनीति में आज भी सक्रिय हैं। अब जब गुजरात में 15वीं विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं तो चर्चा है कि वजुभाई वाला सौराष्ट्र की कमान संभालेंगे। 1985 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद राजकोट से सात बार विधायक चुने गए। वजुभाई वाला के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है। उन्होंने बतौर वित्त मंत्री सर्वाधिक 18 बार गुजरात का बजट पेश किया। सरकार के साथ वे बाद गुजरात बीजेपी के दो बार अध्यक्ष भी रहे। वाला का करियर यहीं खत्म नहीं होता है, 23 जनवरी, 2012 को वे गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष बने। वे 31 अगस्त, 2014 तक वे इस पद रहे। इसके बाद उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया, तो लंबे कद के वाला ने यहां भी रिकॉर्ड बनाया और सर्वाधिक लंबे समय तक वे कर्नाटक के राज्यपाल रहे। तमाम राजनेताओं से उलट वजुभाई वाला का राजनैतिक करियर कभी उतार या ढलान की ओर नहीं गया। वे ऊपर की तरफ बढ़ते चले गए। गुजरात के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में उनका नाम हमेशा लिया गया। बात चाहें 2014 में हुए नेतृत्व परिवर्तन के दौरान की हो या फिर 2021 में विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाए जाने का घटनाक्रम। वजुभाई वाला सुर्खियों में रहे। कहते हैं नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री पद लिए गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहे थे तो आनंदीबेन पटेल से पहले वजुभाई मुख्यमंत्री बनने वाले थे, लेकिन बाद में आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
वजुभाई वाला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से की। वे 1971 में गुजरात में जनसंघ पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आपातकाल के दौरान 11 महीने जेल में भी रहे। विधायक और मंत्री बनने से पहले वजुभाई ने अपनी राजनीतिक पारी राजकोट के मेयर के रूप में शुरू की। वे राजकोट से बीजेपी के पहले मेयर थे। इतना ही नहीं सौराष्ट्र में बीजेपी को मज़बूत करने में उनकी और पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की भूमिका मानी जाती है। सौराष्ट्र 1980 तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ था। मेयर के बाद 1985 में वह पहली बार राजकोट पश्चिम सीट से गुजरात विधानसभा में बतौर विधायक चुनकर पहुंचे। 1990 में बीजेपी और जनता दल की सरकार में पहली बार मंत्री बने। 1996 से 1998 दो साल छोड़ दिया जाए तो वजुभाई 1990 से लेकर 2012 तक मंत्री रहे हैं। दो साल वह मंत्री इस वजह से नहीं थे, क्योंकि उस समय शंकर सिंह वाघेला ने बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस के साथ सरकार बना ली थी। वजुभाई के मेयर बनने से पहले राजकोट में पानी की बहुत समस्या थी। उन्हें यहां पानी की समस्या दूर करने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने ट्रेन से राजकोट में पानी लाने का काम शुरू किया था। उस दौरान उन्हें पानी वाले मेयर के नाम से भी जाना गया।
वजुभाई वाला ने 2001 में विपक्ष के निशाने पर थे। उन पर आरोप लगाए जा रहे थे। वे आरोप उनके गले की फांस बनते, इससे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपनी सीट छोड़कर न सिर्फ विरोधियों का मुंह बंदकर दिया। मोदी की गुडबुक में आ गए। कुछ समय के लिए जरूर वाला विधायक नहीं रहे, लेकिन उनके एक फैसले ने विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया। इसके बाद उन्होंने राजनीति में एक लंबा सफर तय किया। चमक-दमक वाली जीवनशैली में जाने के बाद भी उन्होंने अपना देशी अंदाज बकरार रखा। वे लोगों से देशी अंदाज में बात करते हैं। इसके चलते वे एक विशेष वर्ग से कभी दूर नहीं हुए। इसका उन्हें हमेशा फायदा मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में गुजरात से दिल्ली के लिए निकले तो मणिनगर से बतौर विधायक अपना इस्तीफा वजुभाई वाला को सौंपा। उस वक्त वजुभाई वाला विधानसभा के स्पीकर थे। ये वही वजुभाई थे जिन्होंने जब इस्तीफा दिया था तब नरेंद्र मोदी विधानसभा पहुंचे। करीब 13 साल बाद नरेंद्र मोदी जब इस सदन से निकले तो उनका इस्तीफा लेने के लिए वजुभाई ही खड़े थे। पीएम मोदी ने चुनावी राजनीति की शुरुआत राजकोट वेस्ट की। इसके बाद वे मणिनगर आ गए थे। जीवन के शुरुआती कालखंड में आटा चक्की चलाने वाले वजुभाई वाला ने पहले मेयर और फिर महामहिम तक सफर किया। इतने लंबे सार्वजनिक जीवन के बाद भी वे गुजरात की राजनीति में सक्रिय हैं। वे मोदी के विश्वासपात्र हैं, यही वजह है कि जब बीजेपी सौराष्ट्र में खुद को मजबूत करने में जुटी है तो वजुभाई अहम भूमिका निभाने के लिए डेंगू को हराकर अस्पताल से घर पहुंचे गए हैं। अगले कुछ दिनों में वे पूरी तरह से फिर सक्रिय दिखेंगे।