दाऊद को डराने वाला बृजेश सिंह कौन था?

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बृजेश सिंह वह व्यक्ति था जिसने एक समय दाऊद को भी डरा कर रख दिया था! जब जुर्म का रास्ता लंबा लगने लगा तो यूपी के कई माफिया डॉन ने सियासत को अपनी मंजिल बनाया। अपराध की दुनिया से बचकर राजनीति में शरण लेने वाले बृजेश सिंह की कहानी भी बिल्कुल फिल्मी है। पहले पढ़ाई लिखाई, फिर अपराध की दुनिया में कदम और आखिर में नेताजी का लिबास। अगर बेहद कम शब्दों में बृजेश सिंह की कहानी को समझाना तो ये काफी है। वाराणसी के धौरहरा गांव में यूपी के इस बाहुबली नेता का जन्म हुआ। बचपन से पढ़ने लिखने में बेहद तेज,यूनिवर्सिटी आने तक उनका ध्यान सिर्फ पढ़ाई-लिखाई पर रहा लेकिन इसके बाद उन्होंने जुर्म की ऐसी दास्ता लिखीकि पूरा पूर्वांचल हिला कर रख दिया।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि कॉलेज के एक मेधावी छात्र को जुर्म का दामन थामना पड़ा, ये जानने के लिए हमें अस्सी के दशक में जाना होगा। उस वक्त बृजेश सिंह बनारस के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। एक दिन वो अपने कॉलेज गए हुए थे, तभी उन्हें खबर मिली कि उनके पिता की हत्या कर दी गई है। हत्या गांव के दबंग लोगों ने की। बृजेश सिंह के पिता का गांव के कुछ दबंगों से जमीन को लेकर विवाद चल रहा था और इसी मामले में उनके पिता को मार दिया गया। ये बात बृजेश सिंह के दिमाग में घर कर गई। पिता की हत्या ने बृजेश की ज़िंदगी को बदल कर रख दिया। उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लेने की ठानी और पिता के हत्यारे हरिहरन सिंह को मौत के घाट उतार दिया। ये पहला अपराधा जो बृजेश सिंह ने किया लेकिन इसके बाद वो इस राह पर चल ही नहीं पड़े बल्कि दौड़ने लगे।

करीब डेढ़ साल बाद 1986 में चंदौली के सिकरौर गांव में, ग्राम प्रधान समेत 7 लोगों की हत्या होती है और आरोप लगते हैं बृजेश सिंह पर। पुलिस घटना स्थल के पास से घायल अवस्था में पड़े बृजेश को गिरफ्तार कर लेती है। क्रास फायरिंग में बृजेश के पैरों में गोली लगती है और वो वही गिरे हुए होते हैं। ये पहला मामला था जब बृजेश सिंह जेल पहुंचते हैं। दो साल पहले तक यूनिवर्सिटी का होनहार लड़का अब 7 हत्याओं का आरोपी बन चुका था और जेल की हवा काट रहा था।

इसी दौरान जेल में बृजेश सिंह की मुलाकात त्रिभुवन सिंह से होती है। उन दिनों पूर्वांचल में त्रिभुवन सिंह का अच्छा खासा दबदबा था जबकि बृजेश अभी दबंगई में नए-नए हाथ आजमा रहे थे। दोनों ही राजपूत समुदाय से थे, तो बस यहां से दोनों की दोस्ती की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी और इनकी दोस्ती ने आगे चलकर पूर्वांचल के माफिया राज में बड़ी अहम भूमिका अदा की।बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह को मुख्तार अंसारी का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता था। मुख्तार और बृजेश सिंह के बीच गैंगवार में त्रिभुवन सिंह का भी काफी अहम रोल माना जाता है।

इस घटना के कुछ समय बाद ही बृजेश सिंह जेल से फरार हो गए। अब उनका मकसद था पुलिस से बचना और इसलिए इसी दौरान उन्होंने मुंबई का रुख किया। कहा जाता है कि मुंबई में बृजेश सिंह ने दाऊद से मुलाकात की। उन दिनों मुंबई में दाऊद और अरूण गवली के बीच अक्सर गैंंगवार की खबरें आती रहती थीं । बृजेश सिंह ने दाऊद के लिए अरूण गवली के चार आदमियों को गोलियों से भून डाला था। कहते हैं इस घटना के बाद बृजेश दाऊद के काफी करीब आ गए थे और इस बात ने खासा तूल भी पकड़ा था। महाराष्ट्र सरकार ने बृजेश सिंह पर मकोका कानून भी लगाया।

अब बृजेश पूरी तरह से अपराध की दुनिया के माहिर हो चुके थे। सात हत्याओं के आरोप के बाद पूर्वांचल में उनकी दबंगई काफी बढ़ गई। लोगों को बृजेश सिंह के नाम से डर लगने लगा था। इसी दौरान दूसरी तरफ मुख्तार अंसारी भी अपराध में अपने पांव पसार रहे थे। दोनों में जंग थी पूर्वांचल में खुद को ताकतवर साबित करने की। खुद की ताकत साबित करने का तरीका एक था और वो था सरकारी ठेकों पर कब्जा करना। बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच अक्सर सरकारी ठेको को लेकर गैंगवार की खबरें आने लगी। गोलीबारी, मारपीट, चाकू मारना, ये सब घटनाएं इन दोनों गैंग के बीच अक्सर नज़र आती। त्रिभुवन सिंह के साथ मिलकर बृजेश सिंह अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहे थे।

इसी बीच मुख्तार अंसारी ने राजनीति का रुख कर लिया था। मुख्तार 1996 में विधायक बन चुके थे और उनके निशाने पर सीधे तौर पर बृजेश सिंह आ गए थे।बृजेश सिंह ने भी मुख्तार को अपने रास्ते से हटाने का प्लान बना डाला। 2001 में जब मुख्तार अंसारी का काफिला गाजीपुर से गुजर रहा था तो उनके काफिले पर जानलेवा हमला हुआ। ये हमला किया बृजेश सिंह ने। बृजेश सिंह और उनके गैंग ने गाजीपुर के उसरी चट्टी इलाके में मुख्तार अंसारी की गाड़ी पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई। दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई। इस हमले में मुख्तार अंसारी बाल-बाल बचे। हमले में अंसारी के गनर की मौत हो गई जबकि एक शूटर भी मारा गया। हमले में बृजेश सिंह भी बुरी तरह से घायल हुए। खबरे तो यहां तक फैली कि हमले में बृजेश सिंह की मौत हो गई है। इस हमले के बाद बृजेश सिंह यूपी में किसी को नज़र ही नहीं आए। लंबे समय तक बृजेश सिंह की कोई खबर नहीं मिली। कहते हैं मुख्तार अंसारी की वजह से बृजेश सिंह ने यूपी से दूरी बना ली थी। उनके ऊपर 5 लाख का ईनाम भी रखा गया। हालांकि इस दौरान भी बृजेश का गैंग यूपी में काम कर रहा था और बृजेश दूर बैठे ये सब करवा रहे थे।

2022 कई लिहाज से बृजेश सिंह के लिए खास रहा। उनकी पत्नी ने बड़ी जीत दर्ज की तो वही 13 साल बाद आखिरकार वो वाराणसी जेल से बाहर आ गए। फिलहाल बृजेश सिंह की पत्नी के अलावा उनके भतीजे सुशील सिंह भी विधायक हैं। सुशील सिंह बृजेश सिंह के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह के बेटे हैं और चार बार से लगातार विधायक हैं। 2017 और 2022 में सुशील सिंह ने बीजेपी से जीत दर्ज की है। इसके पहले उनके पिता और बृजेश सिंह के भाई चुलबुल सिंह भी बीजेपी से एमएलसी रह चुके हैं यानी बृजेश सिंह के परिवार के बीजेपी से अच्छे संबंध हैं।