बिहार के छोटे सरकार यानी अनंत सिंह को कौन नहीं जानता! 9 साल की उम्र और पहली हत्या का आरोप, 15 साल पूरे हुए तो एक और हत्या में नाम आ गया। बस फिर क्या था बिहार के बाढ़ जिले के इस छोटे से लड़के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई खतरनाक अपराधों को अंजाम देते हुए बन गया मोकामा का डॉन। अब तक आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। बिहार के मोकामा जिक्र आए और अनंत सिंह का नाम ना लिया जाए तो ये हो ही नहीं सकता। रोबीली मूछें, काला चश्मा, और स्टाइलिश हैट, इन सबको अपनी पहचान बनाने वाले अनंत सिंह की दबंगई न सिर्फ उनके चेहरे पर नज़र आती है बल्कि अखबारों की सुर्खियां भी बनती है।
रेप, हत्या, डकैटी, लूटपाट, किडनैपिंग, रंगदारी जैसे न जाने कितने ही मामलों के आरोपी अनंत सिंह ने बेहद छोटी उम्र में ही जुर्म की दुनिया का रुख किया। इसे उस इलाके का असर कहें जहां अनंत सिंह पैदा हुए या फिर परिवार से मिली विरासत, अनंत सिंह ने बहुत जल्दी जुर्म की दुनिया में अपना सिक्का जमा लिया। अनंत सिंह का जन्म बिहार के बाढ़ जिले के लदमा गांव में 1967 में हुआ। उनके घर में उनसे बड़े चार और भाई थे। अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह की पहले से ही उस इलाके में खासी दबंगई चलती थी। दिलीप सिंह कांग्रेस के विधायक श्याम सुंदर धीरज के लिए बूथ कब्जाने का काम करते थे। बाद में उनकी लालू यादव से नजदीकिया हो गई और मोकामा से ही उन्होंने आरजेडी की सीट पर चुनाव लड़कर श्याम सुंदर धीरज को मात दी। बचपन से ही अनंत सिंह भाई से दंबगई और सियासत दोनों के गुण सीखते रहे।
इसी दौरान अनंत के सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या हो गई थी। ये बात अनंत सिंह हज़म नहीं कर पाए। कहते हैं वो किसी भी कीमत पर अपने भाई के हत्यारों को मारना चाहते थे। अनंत सिंह को खबर मिली की उनके भाई का हत्यारा नदीं के दूसरी तरफ आया हुआ है तो उन्होंने तैरकर नदी को पार किया और भाई के हत्यारे पर हमला किया। बताया जाता है कि अनंत सिंह ने ईंट पत्थर से ही कुचलकर अपने भाई के हत्यारे को मौत दी। इस घटना के बाद पूरे इलाके में अनंत सिंह का खौफ कई गुना बढ़ गया। आसपास के लोग उनसे डरने लगे। सरकारी ठेको को कब्जाने का कारोबार भी तब तक अनंत सिंह शुरू कर चुके थे। भाई मोकामा से विधायक थे तो पुलिस की कोई चिंता ही नहीं। नब्बे का दशक आते-आते अनंत सिंह का मोकामा और उसके आसपास के इलाकों में खासा रौब हो चुका था। भाई की वजह से आरजेडी से तो अनंत सिंह के रिश्ते थे ही, इसी दौरान नीतिश कुमार की नज़र भी अनंत सिंह पर पड़ चुकी थी।
1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पहली बार नीतीश कुमार की पार्टी ने आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ा तो उन्हें अनंत सिंह की याद आई। मोकामा में अनंत सिंह एक बड़ा नाम बन चुके थे और चुनाव जीतने के लिए उनकी जरूरत को नीतीश कुमार बखूबी पहचान रहे थे और अनंत सिंह ने भी नीतीश का पूरा साथ दिया। नीतीश से अनंत सिंह की नजदीकिया, आरजेडी को पसंद नहीं आ रही थी। 2004 में आरजेडी के इशारे पर अनंत सिंह की कोठी पर अचानक एसटीएफ यानी स्पेशल टास्क फोर्स ने धावा बोल दिया। दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई। अनंत सिंह के 8 आदमी इसमें मारे गए जबकि एक पुलिस के जवान की भी गोली लगने से मौत हो गई। कहते हैं अनंत सिंह भी इस मुठभेड़ में बाल-बाल बचे और वहां से फरार हो गए।
अनंत सिंह के ऊपर अब तक कई संगीन मामले दर्ज हो चुके थे लेकिन उनकी सेहत पर इसका कभी कोई असर नहीं पड़ा। राजनैतिक पार्टियों से उनकी करीबी पहचान हमेशा उनके काम आई। इसके अलावा मोकामा का जातिय समीकरण भी हमेशा से अनंत सिंह के पक्ष में रहा। अनंत सिंह भूमिहार थे और मोकामा में भूमिहारों की संख्या काफी ज्यादा है। अनंत सिंह बेशक इलाके के डॉन थे लेकिन भूमिहार समुदाय उन्हें अपने हीरो के रूप में देखता था और उन्हें छोटे सरकार के नाम से बुलाया जाता था। इसके अलावा लोगों की समस्याओं को हल करना, लोगों की मदद करना, गांव की लड़कियों को शादी में दहेज देना, रोजगार के तांगे बांटना, जैसे कई ऐसे काम थे जिन्होंने अनंत सिंह को इलाके के मसीहा के रूप में भी स्थापित किया था। 2005 में पहली बार मोकामा के इस माफिया ने जेडीयू से चुनाव लड़ा और जीता भी। दरअसल पहले मोकामा सीट पर अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह का कब्जा रहता था, लेकिन 2001 में वो चुनाव हार गए और इसलिए इस सीट पर अब ‘छोटे सरकार’ यानी अनंत सिंह लौट आए थे।
नीतीश कुमार ने जब अनंत सिंह को सीट दी तो कई तरह के सवाल उठे। एक तरफ नीतीश कुमार अपराध मुक्त बिहार के एजेंडे के साथ उतरे थे वही दूसरी तरफ आपराधिक छवि वाले अनंत सिंह को सीट देकर वो कटघरे में खड़े हो रहे थे, लेकिन बावजूद इसके नीतीश ने 2005 का ही नहीं बल्कि अगले चुनाव में भी अनंत सिंह को जेडीयू की टिकट दी। अनंत सिंह की दबंगई बिहार में कैसी थी ये इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नीतीश किसी भी कीमत पर अनंत सिंह को छोड़ना नहीं चाहते थे। नीतीश कुमार की अनंत सिंह के साथ एक फोटो भी काफी चर्चा में रही थी। इस फोटो में नीतीश कुमार अनंत सिंह के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं।
जुर्म से राजनीति में आने वाले नेताजी अनंत सिंह अपनी स्टाइल को लेकर भी अक्सर चर्चा में रहे। चाहे हवा में एक 47 लहराने का मामला हो या फिर बग्गी में बैठकर विधानसभा तक जाने का, किसी न किसी रूप में उनकी खबरें टेलीविजन औरअखबारों का हिस्सा बन ही जातीं। महंगी कारों का शौक रखने वाले अनंत सिंह 2005 में जब विधायक बने तब भी अपनी संपत्ती को लेकर विवादों में आए। 2005 में चुनावी हलफनामें में उन्होंने अपनी संपत्ती के ब्यौरे में साढ़े तीन लाख की संपत्ती दर्ज की लेकिन पांच साल बाद ही उनकी संपत्ति बढ़कर करीब 38 लाख तक पहुंच गई जो हर किसी के लिए हैरानी का विषय था लेकिन विवादों में रहना तो इस रौबीले नेता को बखूबी भाता था। घर में अजगर पालने की बातें हों या फिर जानवरों के मेले में लालू प्रसाद यादव के घोड़े को ले जाने की, ऐसे अनंत किस्से अनंत सिंह के साथ जुड़े नज़र आते हैं।
2020 तक हालात फिर बदले लेकिन नहीं बदला तो अनंत सिंह का जीत का सिलसिला। इस बार अनंत सिंह आरजेडी से चुनाव लड़े और लगातार चौथी बार मोकामा में अपनी जीत दर्ज की, लेकिन अब अनंत सिंह की विधायकी खत्म हो चुकी है। वजह है 2019 का एक मामला। दरअसल 2019 में अनंत सिंह के पुश्तैनी घर में छापेमारी हुई थी। उनके घर से एके 47 राइफल, दो हैंड ग्रेनेड और जिंदा कारतूस बरादम हुए। इस मामले में इसी साल जून में अनंत सिंह को दस साल की सजा सुनाई गई। इस सजा के बाद अपने आप उनकी विधायकी खत्म हो गई है और अब नवंबर में मोकामा सीट पर फिर से चुनाव होना है। माना जा रहा है कि अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी इस सीट सेआरजेडी की टिकट पर चुनाव लड़ सकतीं हैं।