Friday, November 22, 2024
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कौन थे धनंजय सिंह? जो अपनी मृत्यु के 4 साल बाद वापस आ गए!

उत्तर प्रदेश के धनंजय सिंह जो अपनी मृत्यु के 4 साल बाद आ गए, उनका आज भी रहस्य बना हुआ है! उत्तर प्रदेश का जिला जौनपुर, जो अक्सर अपराध की खबरों को लेकर जाना जाता है। जहां की पृष्ठभूमि से एक से बढ़कर एक अपराधी आते हैं। उसी जौनपुर में बच्चा-बच्चा जिस नाम से वाकिफ है- वो हैं धनंजय सिंह। उत्तर प्रदेश की दबंग राजनीति में अपना एक अलग रुतबा रखने वाले धनंजय सिंह का जन्म बेशक जौनपुर में न हुआ हो, लेकिन 1990 के बाद धनंजय का रिश्ता यहां से ऐसा जुड़ा कि कभी काले कारोबार में, तो कभी नेताजी के रूप में, उनका नाम जौनपुर का पर्यायवाची बन गया।

1975 में कोलकाता में जन्मे धनंजय का परिवार 1990 से पहले ही जौनपुर आ चुका था। धंनजय सिंह जौनपुर में ही पढ़ाई कर रहे थे। करीब पन्द्रह साल की उम्र में ही उनपर एक टीचर की हत्या का आरोप लगा। महर्षि विद्या मंदिर स्कूल के एक टीचर गोविंद उनियाल की हत्या में जब दसवीं क्लास के एक छात्र का नाम आया तो पूरे जौनपुर में सनसनी फैल गई। ये नाम था धनंजय सिंह का। हालांकि पुलिस इस मामले में सबूत नहीं जुटा पाई। इस घटना को अभी दो साल ही बीते थे कि एक और हत्या में धनंजय सिंह का नाम सामने आया। कहते हैं 12वीं क्लास के पेपर धनंजय सिंह ने पुलिस हिरासत से ही दिए। इस मामले में भी पुलिस को उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत हाथ नहीं लगा।

ये दो घटनाएं तो बस शुरूआत थी, धनंजय सिंह के जौनपुर के डॉन बनने की। लखनऊ यूनिवर्सिटी में पहुंचने के बाद तो धनंजय सिंह की दबंगई ऐसी बढ़ी कि जौनपुर में लोग उनके नाम से भी घबराने लगे। छात्र राजनीति में ही धनंजय सिंह की धूम मच चुकी थी। राजपूत परिवार से आने वाले धनंजय सिंह ने यूनिवर्सिटी में ठाकुरों का एक गुट बना लिया था। कहा जाता है कि इसमे धनंजय सिंह के अलावा अपने-अपने इलाकों के दबंग, अभय सिंह और बबलु सिंह शामिल थे। इस गुट का यहां खासा दबदबा था। आए दिन मारपीट, लड़ाई झगड़े के मामले इस गुट के नाम जुड़ते जा रहे थे। जैसे-जैसे अपराध की फेहरिस्त धनंजय सिंह के नाम से बढ़ती रही, वैसे-वैसे जॉनपुर के डॉन के रूप वो और भी पॉवरफुल होते चले गए।

अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती उस वक्त काफी मशहूर थी। धीरे-धीरे इन दोनों ने रेलवे ठेकेदारी में हाथ आजमाना शुरू किया। उस वक्त रेलवे ठेकेदारी में पूर्वांचल के माफिया अजीत सिंह का बड़ा नाम था। वो नहीं चाहता था कि कोई और रेलवे ठेकेदारी में लेकिन धनंजय सिंह और अभय सिंह की दोस्ती ने अजीत सिंह को भी पीछे धकेल दिया। पूर्वांचल में माफिया और रेलवे ठेकेदारी का कारोबार पैसे का जरिया तो होता ही था, साथ ही इसे रुतबे की निशानी भी माना जाता था। धीरे-धीरे धनंजय सिंह ने अभय सिंह के साथ मिलकर रेलवे ठेकेदारी से पैसा कमाना शुरू कर दिया।

1997 तक धनंजय सिंह का गुट बेहद मजबूत बन गया था लेकिन इसी दौरान लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या में धनंजय सिंह का नाम जुड़ने लग। गोपाल शरण की दिन दहाड़े, बाइक सवार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्या के आरोप के बाद धनंजय सिंह को फरार होना पड़ा। पुलिस ने उनके ऊपर 50 हज़ार रूपये का इनाम भी घोषित कर दिया। इसके पहले भी कई और मामले धनंजय पर दर्ज हो चुके थे। एक तरफ रेलवे ठेकेदारी से धनंजय सिंह का गैंग जमकर उगाही कर रहा था, तो दूसरी तरफ धनंजय सिंह पुलिस से बचते फिर रहे थे। ऐसे में उगाही का सारा पैसा अभय सिंह के पास आने लगा। इसी बात को लेकर कुछ समय बाद धनजंय सिंह और अभय सिंह में तकरार शुरू हो गई। कॉलेज से शुरू हुई अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती पैसे के बंटवारे को लेकर दुश्मनी में बदल चुकी थी।

1998 में धनंजय सिंह के साथ एक ऐसी घटना हुई कि लोगों ने या यू कहे पुलिस ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इंजीनियर गोपाल शरण की हत्या के आरोप के बाद धनंजय सिंह पुलिस से बचते फिर रहे थे। इसी दौरान पुलिस को सूचना मिली कि धनंजय सिंह एक पेट्रोल पंप पर लूट की वारदात को अंजाम देने वाले हैं। पुलिस की पूरी टीम वहां पहुंच गई। दोनों तरफ से गोलियां चली और पुलिस ने दावा किया इस एनकाउंटर में मारे गए चार लोगों में से एक माफिया डॉन धनंजय सिंह हैं। हत्या, हत्या की कोशिश, लूटपाट, किडनैपिंग, मारपीट जैसे कई मामलों के आरोपी धनंजय सिंह पुलिस की नज़र में मर चुके थे लेकिन 4 महीने बाद जब एक बार फिर धनंजय सिंह सामने तो उत्तर प्रदेश पुलिस के होश उड़ गए। एनकाउंटर को फर्जी पाया गया। इस मामले में कई पुलिसवाले ससपेंड हुए और उनपर केस भी चला। इस मामले के बाद धनंजय सिंह दबदबा और बढ़ गया।

2002 पहली बार धनंजय सिंह ने चुनाव लड़ने का मन बनाया। उन्होंने जौनपुर को ही अपनी सीट चुना और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत भी दर्ज की। अब जौनपुर का सबसे बड़ा दबंग सियासी सफर पर था। उनके कई नए दोस्त बने तो कई नए दुश्मन लेकिन विधायक बनने के चंद महीनों बाद ही उनके एक पुराने दोस्त अभय सिंह से उनका सामना हुआ। अभय सिंह जो अब उनका दुश्मन था, उसने धनंजय सिंह के काफिले पर गोली बरसानी शुरू कर दिया। ये घटना बनारस में टक्साल सिनेमा के पास की है। इस घटना में धनंजय सिंह के चार साथी घायल हुए।

बेहद महंगी और लग्जरी कारों के शौकीन बाहुबलि नेता धनंजय सिंह को बेहद अमीर नेताओं की श्रेणी में शुमार माना जाता है। कई बड़ी कारों के अलावा, फार्म हाउस, प्लॉट और मकान उनके नाम हैं। पंचायत चुनाव के दौरान उनकी पत्नी, श्रीकला रेड्डी और धनजंय सिंह ने नामांकन के समय अपनी जो संपत्ति लिखवाई वो खासी चर्चा में रही थी। अगर इनकी चल-अचल संपत्ति को मिला लिया जाए तो बाहुबली सांसद को अरबों का मालिक कहना गलत नहीं होगा।

धनजंय सिंह से जुड़ा एक और विवाद काफी सुर्खियों में रहा था। कई अपराधिक मामलों में लिप्त होने के बावजूद धनंजय सिंह लंबे समय Y श्रेणी की सुरक्षा लिए हुए, उनके साथ हमेशा चार गनर मौजूद रहते थे। इस मामले में उनके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर हुई और कोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी की थी, जिसके बाद 2018 में उनकी ये सुरक्षा हटा ली गई।

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