आज हम आपको एमएस गोलवलकर की कहानी सुनाने जा रहे हैं! कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एक बार फिर से विवादों में हैं। दिग्विजय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक एमएस गोलवलकर को लेकर एक ट्वीट किया। ट्वीट को लेकर विवाद हो गया है। दिग्विजय सिंह के खिलाफ पोस्टर साझा कर विद्वेष फैलाने के आरोप में इंदौर में केस भी दर्ज हो गया है। दिग्विजय पर आरोप है कि सिंह ने फेसबुक पर गोलवलकर के नाम और तस्वीर वाला विवादास्पद पोस्टर साझा किया ताकि दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और हिंदुओं में वैमनस्य पैदा कर उन्हें वर्ग संघर्ष के लिए उकसाया जा सके। जानते हैं कि दिग्विजय सिंह ने गोलवलकर के बारे में क्या लिखा है। कौन थे एमएस गोलवलकर जिनको लेकर यह विवाद पैदा हुआ है। गोलवलकर राजनीति से दूर रहते थे। दिग्विजय सिंह ने एक पोस्टर शेयर किया। इसमें लिखा था ‘सदाशिव राव गोलवलकर ने अपनी पुस्तक We and Our Nationhool Identified में स्पष्ट लिखा है। जब भी सत्ता हाथ लगे तो सबसे पहले सरकार की धन संपत्ति, राज्यों की जमीन और जंगल पर अपने दो तीन विश्वसनीय धनी लोगों को सौंप दें। 95% जनता को भिखारी बना दे उसके बाद सात जन्मों तक सत्ता हाथ से नहीं जाएगी।’ मैं सारी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए तैयार हूं लेकिन जो दलित पिछड़ों और मुसलमानों की बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी आजादी मुझे नहीं चाहिए। -गोलवलकर गुरुजी 1940
दिग्विजय के खिलाफ तुकोगंज पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि स्थानीय वकील और संघ कार्यकर्ता राजेश जोशी ने शिकायत की। शिकायत पर सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना, धारा 469 ख्याति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से जालसाजी, धारा 500 मानहानि और धारा 505 सार्वजनिक शांति भंग करने के इरादे से भड़काऊ सामग्री प्रसारित करना के तहत मामला दर्ज किया गया है। शिकायत में कहा गया कि गोलवलकर के बारे में सिंह के फेसबुक पोस्ट से संघ कार्यकर्ताओं और समस्त हिन्दू समुदाय की धार्मिक आस्था आहत हुई है। संघ के एक स्थानीय पदाधिकारी ने मीडिया को भेजे बयान में आरोप लगाया कि सिंह ने इस संगठन की छवि धूमिल करने के लिए सोशल मीडिया पर गोलवलकर को लेकर ‘मिथ्या और अनर्गल पोस्ट’ किया।
माधव सदाशिव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक थे। संघ में गोलवलकर को पूज्नीय गुरुजी के नाम से जाना जाता है। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के बाद गोलवलकर ने 43 (1040-1973) साल तक संघ की कमान संभाली। हेडगेवार ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना था। गोलवलकर का जन्म रामटेक, महाराष्ट्र में हुआ था। गोलवलकर ने संघ की सैद्धांतिक सोच को शाखाओं की मदद से मोहल्लों तक पहुंचाया। गोलवलकर राजनीति में रुचि नहीं लेते थे। गोलवलकर का मानना था कि गवर्नेंस वेश्याओं का धर्म है। गोलवलकर ने आरएसएस को संन्यास आश्रम की छाया में ढाला। माना जाता है कि संघ के अब तक जितने भी सरसंघचालक हुए हैं उनमें से सबसे अधिक छाप एमसएस गोलवलकर की है।
गोलवलकर ने साल 1942 में संघ को भारत छोड़ो आंदोलन से पूरी तरह से अलग-थलग रखने का फैसला किया था। उनके इस फैसले को लेकर आरएसएस की अब तक आलोचना की जाती है। आरएसएस पर किताब लिखने वाले लेखक नीलंजन मुखोपाध्याय का कहना है कि साल 1930-31 के दौरान संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने भी गांधी जी के दांडी मार्च के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन में संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शामिल नहीं हुआ था।गोलवलकर राजनीति में रुचि नहीं लेते थे। गोलवलकर का मानना था कि गवर्नेंस वेश्याओं का धर्म है। गोलवलकर ने आरएसएस को संन्यास आश्रम की छाया में ढाला। माना जाता है कि संघ के अब तक जितने भी सरसंघचालक हुए हैं उनमें से सबसे अधिक छाप एमसएस गोलवलकर की है। हालांकि, उन्होंने संगठन के लोगों को व्यक्तिगत रूप से शामिल होने की छूट दी थी।
गोलवलकर से जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री से लेकर अटल बिहार वाजपेयी बहुत प्रभावित थे। चीन के साथ युद्ध के दौरान संघ ने नागरिक प्रशासन में अहम भूमिका अदा की थी। इससे पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए। नेहरू ने आरएसएस की एक टुकड़ी को पूरी यूनिफॉर्म और बैंड के साथ 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का मौका दिया। 1965 के युद्ध के दौरान भी गोलवलकर उन चंद लोगों में शामिल थे जिनसे तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने सलाह मशविरा किया था। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी गोलवलकर से काफी प्रभावित थे। वाजयपेयी गोलवलकर की उपस्थिति में कभी कुर्सी पर ना बैठकर हमेशा जमीन पर बैठते थे।