चंबल के बीहड़ में पैदा हुए कई डकैतों की कहानी तो आपने सुनी होगी! निर्भय गुर्जर की गिनती बीहड़ के दुर्दांत डाकुओं के साथ अव्वल दर्जे के रंगीन मिजाज इंसान के रूप में होती है। उसके गिरोह के जिंदा सदस्यों का कहना है कि वो जिस गांव में दाखिल होता, रंगरेलियां मनाकर ही वापस लौटता था। बीहड़ में उसके साथ तीन महिलाएं नीलम गुप्ता, सरला जाटव और मुन्नी पांडेय रहती थीं। तीनों का उसने अपहरण कर अपने हरम में शामिल किया था। निर्भय का उसके बेटे की पत्नी के साथ भी अफेयर था। बाद में उसकी एक पत्नी भी उसके बेटे से प्यार करने लगी थी। जब दोनों एक साथ भाग गए तो निर्भय इस धोखे से उबर नहीं पाया। यहीं से उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी।
निर्भय अपने गिरोह के साथ तीन-तीन गर्लफ्रेंड को साथ लेकर चलता था। वह उन्हें सलवार-सूट नहीं पहनने देता था। इसके बदले वह उन्हें हर समय जींस-टॉप पहनने के लिए मजबूर करता था। उसने अपने दत्तक पुत्र श्याम जाटव की शादी सरला जाटव से कराई थी, लेकिन खुद श्याम ने उसे निर्भय के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था। इसके बाद श्याम ने गिरोह से बगावत कर दी थी। वह निर्भय की प्रेमिका नीलम के साथ भाग गया और पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था।
निर्भय गुर्जर का जन्म 1961 में अयाना औरैया थाना के अंतर्गत गंगदासपुर गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता मान सिंह के पास सात-आठ बीघा जमीन थी, लेकिन उस जमाने में सिंचाई की सुविधा नहीं थी। इस कारण पैदावार अच्छी नहीं होती थी। उसके परिवार में माता पिता के अलावा में पांच बहनें और एक छोटा भाई भी था। निर्भय की एक बहन भिंड के घिनौची गांव मे ब्याही है। आमदनी कम होने के कारण परिवार के भरण पोषण में मुश्किल आती थी। परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए निर्भय छोटी-मोटी चोरियां करने लगा। उसके खिलाफ पहला मामला वर्ष 1989 में जनपद जालौन के थाना चुर्खी में डकैती में दर्ज किया गया था।
यहीं से निर्भय के कदम धीरे-धीरे अपराध की ओर बढ़ने लगे। आगे चलकर वह दस्यु लालाराम गिरोह के सम्पर्क में आ गया। इसी गिरोह के साथ मिलकर निर्भय ने हत्या, लूट, अपहरण, डकैती जैसे संगीन वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया। निर्भय के ऊपर यूपी और एमपी के विभिन्न जिलों में लूट, अपहरण, हत्या और डकैती के 200 से अधिक मामले दर्ज थे।
निर्भय के गिरोह में 60 सदस्य थे। इनमें युद्ध सिंह उर्फ लाठी वाला, श्याम जाटव, सरला, नीलम, मंगल सिंह और शोबरन सिंह प्रमुख थे। अपने गिरोह के बूते उसने चंबल के बीहड़ों में अपना एकछत्र राज स्थापित किया था। एक दौर ऐसा था कि पुलिस वाले भी उसके गिरोह से मुकाबला करने से घबराते थे।
2005 में निर्भय अजीतमल थाना क्षेत्र के गांव सीता की गढिय़ा में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मारा गया था। बताया जाता है कि निर्भय के दत्तक पुत्र श्याम का उसकी पत्नी नीलम से प्रेम संबंध हो गया था। दोनों करीब-करीब एक ही उम्र के थे। साल 2005 में गैंग का उत्तराधिकारी कहा जाने वाला श्याम, निर्भय की पत्नी नीलम को लेकर फरार हो गया। निर्भय को इससे काफी दुख पहुंचा था।
श्याम और नीलम भागकर पुलिस के पास पहुंच गए। उनके सरेंडर करने से पुलिस को गिरोह के बारे में खुफिया जानकारियां मिल गईं। इसके बाद जालौन में पुलिस सतर्क हुई और उसके ठिकानों पर मुठभेड़ शुरू कर दी। पहले निर्भय का प्रमुख साथी बुद्ध सिंह लाठी मारा गया। इसके बाद कानपुर के तत्कालीन डीआईजी दलजीत चौधरी ने अपना जाल फैला कर 2005 में ही चंबल के आतंक यानी निर्भय का खात्मा कर दिया था।
निर्भय के गिरोह में 60 सदस्य थे। इनमें युद्ध सिंह उर्फ लाठी वाला, श्याम जाटव, सरला, नीलम, मंगल सिंह और शोबरन सिंह प्रमुख थे। अपने गिरोह के बूते उसने चंबल के बीहड़ों में अपना एकछत्र राज स्थापित किया था। एक दौर ऐसा था कि पुलिस वाले भी उसके गिरोह से मुकाबला करने से घबराते थे।
2005 में निर्भय अजीतमल थाना क्षेत्र के गांव सीता की गढिय़ा में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मारा गया था। बताया जाता है कि निर्भय के दत्तक पुत्र श्याम का उसकी पत्नी नीलम से प्रेम संबंध हो गया था। दोनों करीब-करीब एक ही उम्र के थे। साल 2005 में गैंग का उत्तराधिकारी कहा जाने वाला श्याम, निर्भय की पत्नी नीलम को लेकर फरार हो गया। निर्भय को इससे काफी दुख पहुंचा था।
श्याम और नीलम भागकर पुलिस के पास पहुंच गए। उनके सरेंडर करने से पुलिस को गिरोह के बारे में खुफिया जानकारियां मिल गईं। इसके बाद जालौन में पुलिस सतर्क हुई और उसके ठिकानों पर मुठभेड़ शुरू कर दी। पहले निर्भय का प्रमुख साथी बुद्ध सिंह लाठी मारा गया। इसके बाद कानपुर के तत्कालीन डीआईजी दलजीत चौधरी ने अपना जाल फैला कर 2005 में ही चंबल के आतंक यानी निर्भय का खात्मा कर दिया था।