भारत में आज सबसे बड़े संवैधानिक पद भारत के महामहिम राष्ट्रपति के लिए सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक वोट डाले जा रहे हैं। इस बार उसका पक्ष की तरफ से एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का जीतना लगभग तय माना जा रहा है। वही विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की जीत की संभावना लगभग ना के बराबर है। लेकिन हम जानते हैं कि राजनीति संभावनाओं से जुड़ा एक क्षेत्र है इसमें कभी भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है।
आइए जानते हैं भारत के पहले राष्ट्रपति कौन हुए।
संविधान लागू होने से पहले संविधान सभा द्वारा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद चुने गए। वहीं साल 1947 में नई सरकार के गठन के साथ ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद एक बार फिर भारत का राष्ट्रपति चुन लिया गया। डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के एक महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानियो में से एक थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने से पूर्व भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे।
आपको बता दें कि राजेंद्र प्रसाद प्रारंभिक की शिक्षा बिहार के छपरा जिले में जिला स्कूल से हुई मात्र 18 साल की आयु में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल करके अपनी बुद्धिमत्ता का प्रमाण दिया। बापू के साथ लेकर कटता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लॉ में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की । श्री राजेंद्र बाबू हिंदी के साथ-साथ उर्दू,संस्कृत और फारसी जैसी भाषाओं से भलीभांति परिचित थे।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा। सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें ‘भारतरत्न’ की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित भी किया गया था।
भारत में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव साल 1952 हुआ। तब भी पक्ष और विपक्ष अपने उम्मीदवार खड़े किए वही सत्ता पक्ष में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया। तो विपक्ष की ओर से तत्कालीन वामपंथी दलों ने डॉक्टर केटी शाह को अपनाया, प्रोफेसर केटी शाह चुनाव में हार गए और स्वतंत्र भारत की पहली निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपना कार्यभार संभाला। इस चुनाव में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को लगभग 83.8% वोट मिले।
राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत में राष्ट्रपति पद के लिए दो बार चुनाव लड़ा और दूसरी बार के चुनाव में लगभग 99% वोट के साथ भारत के राष्ट्रपति बने। ऐसा करने वाले वह एक मात्र राष्ट्रपति है।
राजेंद्र प्रसाद जी से जुड़े कुछ राजनीतिक विवाद।
राजेंद्र जी ने राजनीतिक विरोध की शुरुआत साल 1951 में आए हिंदू कोड बिल के आने से की। तत्कालिन नेहरू सरकार द्वारा लाए गए हिंदू कोड पर कड़ी आपत्ति जताते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने नेहरू सरकार द्वारा लाए गए हिंदू कोड बिल को बिना हिंदू जनमत सलाह के पेश करने पर विरोध दर्ज करवाया था और साथ ही इसकी आलोचना भी की थी।
इस बिल पर आपत्ति जताते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू सरकार को बताया कि यह बिल अलोकतांत्रिक है और आर्टिकल 143 के तहत यह मामला सुप्रीम कोर्ट का कर दिया।इस पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू सरकार को कोर्ट से कानूनी और संवैधानिक सुझाव लेने को कहा।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तब एक बार राष्ट्रपति के सोमनाथ मंदिर के दौरे पर विरोध जताया था। जिससे सरकार और राष्ट्रपति के बीच एक आलोचनात्मक विरोध शुरू हुआ था।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ही शुरू की मौत की सजा पाने वाले दोषियों को दया याचिका देने की परंपरा।
आपको बता दें कि आज के समय में मौत की सजा पाने वाले किसी भी दोषी को मौत से बचाने का एकमात्र जरिया भारत के महामहिम होते हैं। जो उसकी मौत की सजा को दया याचिका के तहत लाकर आजीवन कारावास में बदल देते हैं। आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ही इस परंपरा की शुरुआत की थी।
उन्होंने उस समय मौत की सजा पाने वाले 180 दोषियों की दया याचिका में से 179 दोषियों की दया याचिका को स्वीकार कर दिया था और उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। वही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने एक दोषी की दया याचिका को खारिज कर दिया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा चलाई गई यह परंपरा भारत में आज भी लागू है। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अनेक बार मतभेदों के विषम प्रसंग आए, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित होकर भी अपनी सीमा निर्धारित कर ली थी।सरलता और स्वाभाविकता उनके व्यक्तित्व में समाई हुई थी। उनके मुख पर मुस्कान सदैव बनी रहती थी, जो हर किसी को मोहित कर लेती थी। राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे।