Sunday, September 8, 2024
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डायबिटीज रोगियों में हेपेटाइटिस का जोखिम क्यों अधिक होता है? जानिए!

जब शरीर में एक बीमारी दस्तक देती है तो अनेक बीमारियां उसके पीछे-पीछे आ ही जाती है! विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 422 मिलियन लोग डायबिटीज जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या के शिकार है। हर साल मधुमेह रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये चिंताजनक है कि जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या होती है, उनमें अन्य कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का जोखिम भी बढ़ जाता है। डायबिटीज मरीजों को हेपेटाइटिस का खतरा भी हो सकता है। हेपेटाइटिस भी बहुत ज्यादा तेजी से फैल रही बीमारी है, जिस में लिवर में सूजन आ जाती है। भारत में डायबिटीज और हेपेटाइटिस दोनों ही रोग एक बड़ी आबादी को प्रभावित कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की साल 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हेपेटाइटिस बी से संक्रमितों की संख्या लगभग चार करोड़ है, साथ ही हेपेटाइटिस सी से लगभग 1.2 करोड़ लोग प्रभावित हैं। हालांकि गंभीरता तब बढ़ जाती है, तो हेपेटाइटिस से संक्रमित मरीज हृदय रोग या डायबिटीज जैसी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में क्रोनिक एचसीवी (हेपेटाइटिस सी वायरस) से पीड़ित एक तिहाई लोगों को टाइप 2 डायबिटीज है। वहीं विशेषज्ञों के मुताबिक इससे हेपेटाइटिस सी और अधिक गंभीर हो सकता है। ये चिंताजनक है कि हेपेटाइटिस सी के उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली थेरेपी से डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 दोनों होने की संभावना रहती है। जो लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, उन्हें चिंता रहती है कि हेपेटाइटिस सी होने पर उनकी डायबिटीज की समस्या गंभीर हो सकती है।

गुर्दे का विकार स्वाभाविक?

डायबिटीज के मरीजों में हेपेटाइटिस की गंभीरता पर डाॅ अभिषेक अरुण का कहना है कि डायबिटीज के मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। ऐसे रोगी किसी भी तरह के वायरल इंफेक्शन और बैक्टीरियल इंफेक्शन की चपेट में आसानी से आ सकते हैं। अगर मरीज लंबे समय से डायबिटीज से पीड़ित है, तो उनमें गुर्दे का विकार होना स्वाभाविक है। ऐसे मरीज कई बार डायलिसिस पर होते हैं, जिन्हें डायबिटीज और हेपेटाइटिस दोनों होता है।

मधुमेह रोगियों के लिए स्थिति तब अधिक गंभीर हो जाती है, जब उन्होंने हेपेटाइटिस बी का टीकाकरण न कराया हो। मरीज के डायलिसिस के वक्त या उससे पहले संक्रमण होना आम बात है। संक्रमण गुर्दे की बीमारी को जन्म दे सकता है, जिससे हेपेटाइटिस होने की संभावना बढ़ती है।

जो सामान्य लिवर के मरीज होते हैं, उनमें हेपेटाइटिस की ग्रेडिंग यानी रोग के स्तर व गंभीरता के मुताबिक कई दवाएं दी जाती हैं। इसलिए डायबिटीज की दवाएं भी बदलती रहती हैं, क्योंकि डायबिटीज की ज्यादातर दवाएं लिवर पर असर डालती है। ऐसे में अगर लिवर गड़बड़ है तो डायबिटीज की दवाएं साइड इफेक्ट्स भी कर सकती हैं।

डॉक्टर अभिषेक अरुण का कहना है कि डायबिटीज और हेपेटाइटिस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए जरूरी है कि उनकी पूरी स्क्रीनिंग की जाए। ताकि ये पता चल सके कि हेपेटाइटिस किस स्टेज पर है और डायबिटीज के इलाज के दौरान अन्य कोई जोखिम होने की संभावना तो नहीं है।

इसके लिए डायबिटीज मरीज का लिवर फंक्शन टेस्ट कराया जाना जरूरी है। अगर डायबिटीज के मरीज की समय समय पर जांच होती रहती हैं तो ये पता चलता है कि उनके लिवर को सुरक्षित रखने के साथ ही किस तरह की दवाएं किस वक्त पर देनी है।

डॉक्टर ने बताया कि डायबिटीज के साथ ये बहुत सामान्य सी समस्या है। अस्पताल में ऐसे बहुत सारे मरीज आते हैं, जो इंफेक्टिव हेपेटाइटिस और पेरिनेटल हेपेटाइटिस के शिकार होते हैं। डाॅक्टरों के लिए चुनौती तब होती है, जब हेपेटाइटिस की वजह से लिवर सिरोसिस हो जाता है यानी लिवर बहुत ज्यादा खराब हो जाता है। दिक्कत तब होती है, जब ऐसे मरीजों की ब्लड शुगर नियंत्रित नहीं होती, उन्हें बहुत जल्दी भर्ती करने की जरूरत पड़ जाती है। ऐसे मरीजों में ब्लीडिंग, हेपाटो कोमा, कई तरह के इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।इलाज के लिए चिकित्सकों की प्राथमिकता होती है कि मधुमेह रोगियों को शुगर नियंत्रित करने के साथ ही उन्हें सही दवा दी जाए, ताकि मरीज को कोई नया इंफेक्शन न हो जाए। इसके अलावा मरीजों को सही खानपान की जानकारी भी दी जाती है, क्योंकि हेपेटाइटिस के मरीज सही तरह से कुछ खा नहीं कर पाते। मरीज को पता होना चाहिए कि उसे क्या खाना है और कब खाना है ताकि अपनी शुगर को लिवर के विकार के साथ कैसे संभालना है।

हेपेटाइटिस से बचाव के तरीके

डायबिटीज के मरीजों को हेपेटाइटिस के खतरे से बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी का टीकाकरण कराना जरूरी होता है। जो भी डायबिटीज के मरीज होते हैं, उन्हें कुछ जरूरी वैक्सीनेशन कराने होते हैं। इन टीकों में हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन अनिवार्य है। नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत अब जन्म के बाद बच्चे को हेपेटाइटिस बी का टीका लगाया जाता है। लेकिन जो पुराने मधुमेह रोगी हैं, जिन्हें उस दौर में हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लग सका, उनको वैक्सीनेशन जरूर कराना चाहिए।

डायबिटीज के मरीज ही नहीं जिन लोगों को भी हेपेटाइटिस बी का टीका नहीं लगा हो, उन्हें वैक्सीन लगवानी चाहिए। अधिकतर लोग इस बारे में जागरूक नहीं हैं। वह सोचते हैं कि जब बीमारी होगी, तब देखा जाएगा। लेकिन हर व्यक्ति के लिए हेपेटाइटिस बी का टीकाकरण जरूरी है।

मधुमेह रोगी अगर अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं या उनकी डायलिसिस हो रही है तो उन्हें समय समय पर जांच कराते रहना चाहिए ताकि पता चल सके कि मरीज में किस प्रकार का इंफेक्शन है। क्योंकि डायलिसिस के वक्त संक्रमित होना सामान्य है।

हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई दूषित खाने और गंदे हाथों से हो सकता है, इसलिए मरीजों को खानपान में स्वच्छता का खास ध्यान रखना चाहिए।

पौष्टिक खानपान और सही डाइट को अपनाकर भी मरीज लिवर को सेहतमंद रख सकते हैं,  साथ ही मधुमेह को नियंत्रित कर सकते हैं।

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