वर्तमान में सभी राजनेता समलैंगिक रिश्ते और मैरिटल रेप पर चुप्पी साधे हुए हैं! पिछले दिनों सेम सेक्स मैरिज मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख सामने आया, जिस पर ज्यादातर राजनीतिक दलों ने खुलकर अपना रुख रखने से परहेज किया। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं होगा, जब संवेदनशील सामाजिक मुद्दों पर विभिन्न राजनीतिक दल एकबारगी अपना रुख रखने से बच रहे हों। इससे पहले भी मैरिटल रेप, समलैंगिक अधिकारों, समलैंगिक संबंधों से लेकर लिवइन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर भी राजनीतिक दलों ने काफी सोच समझ कर अपना रुख सामने रखा। दरअसल, भारत एक पारंपरिक समाज है, जहां पारंपरिक और सामाजिक मान्यताएं काफी गहरी हैं। समाज में लोग आसानी से अपनी स्थापित मान्यताओं के खिलाफ जाने या उन्हें बदलने में सहज नहीं हैं। संवेदनशील मुद्दे और राजनीति: समाज का काफी बड़ा वर्ग इन मान्यताओं का पक्षधर है, ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दल तमाम ऐसे संवेदनशील मुद्दे जो हमारी सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं के लिहाज से काफी बोल्ड या उनके उलट हैं, उनके साथ खड़े होने से बचते हैं। दरअसल, इसका सीधा संबंध उनकी वोट और चुनावी राजनीति से है। उन्हें लगता है कि अगर वे इन मुद्दों के पक्ष में जाते हैं तो उन्हें इसका सियासी नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि राष्ट्रीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दल तक इन मुद्दों पर अपना सावधानी भरा रुख रखना पसंद करते हैं। वह समाज में बदलती सोच और रीतियों को देखते हुए अपना रुख तय करते हैं। उसी के हिसाब से वह अपना रुख का दायरा बढ़ाते हैं।
पिछले एक दशक में जैसे-जैसे लिवइन रिश्तों को लेकर समाज में सहजता आई, समाज इन्हें स्वीकारने लगा, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों का रुख भी इसपर साफ होता गया। खासकर, जब जुडिशरी ने इस मामले में समाज की बदलती जरूरतों को देखते हुए अपने फैसले दिए तो समाज के साथ-साथ राजनीतिक लोगों और दलों में इस मुद्दे पर अपनी बात रखने की हिम्मत आई।
कई संवेदनशील मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल से लेकर सरकार तक जुडिशरी के रुख का भी इंतजार करते हैं। अगर जुडिशरी इन्हें लेकर एक रुख या विचार सामने रखती है, जिसे लेकर समाज में एक स्पष्टता आती है तो फिर सरकार से लेकर राजनीतिक दलों तक को अपने विचार रखने का आधार मिल जाता है। इतना ही नहीं, तमाम संवेदनशील मुद्दों को सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाला जाता है ताकि इन मुद्दों पर जो भी फैसला आए, उसके लिए कोर्ट को जिम्मेदार कहा जाए। मैरिटल रेप का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है। सरकार से लेकर राजनीतिक दल तक इस पर कोई रुख लेने से बच रहे हैं।
कुछ समय पहले राहुल गांधी ने जरूर मैरिटल रेप को टिप्पणी की थी, जिसमें उन्होंने भारतीय समाज में वैवाहिक संबंधों में पत्नी की सहमति की सोच को मामूली बताते हुए कहा था कि महिलाओं की सुरक्षा के नजरिए यह सोच सबसे महत्वपूर्ण होनी चाहिए। हालांकि कांग्रेस ने अधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा। इसी तरह सेम सेक्स मैरिज वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का हालिया रुख सामने आने के बाद कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि समलैंगिक विवाह और इससे संबंधित मुद्दों पर हम सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग और बंटे हुए फैसलों का अध्ययन कर रहे हैं। इस पर बाद में हम एक विस्तृत प्रतिक्रिया देंगे।
वहीं इस मसले में कुछ याचिकाकर्ताओं के वकील रहे कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज का कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं है। पार्टी इस मसले पर स्टैंड ले भी सकती है और नहीं भी, लेकिन कांग्रेस जैसे दलों के लिए ये जरूरी नहीं कि वो हर सोशल लीगल मसले पर स्टैंड लें। जबकि केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा है कि ये एक शहरी और संभ्रांत सोच है। वहीं संघ ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था इससे संबंधित सभी मुद्दों पर गंभीरता से विचार कर उचित निर्णय ले सकती है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी, डीएमके, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, शिवसेना यूटीबी, एनसीपी, बीएसपी जैसे दलों ने खुलकर कोई स्टैंड नहीं लिया।
सेम सेक्स मैरिज मामले में कुछ राजनीतिक हस्तियों ने अपनी राय दी है, लेकिन वह पार्टी की राय होने की बजाय निजी राय रहती है। वृंदा करात, शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसी हस्तियों ने इसका समर्थन किया है, लेकिन उनकी पार्टी ने इस पर कुछ खुलकर नहीं कहा। हालांकि एनसीपी और कांग्रेस जैसे दलों के संगठन के भीतर एलजीबीटी सेल भी हैं। सीपीआई को छोड़कर किसी और पार्टी ने एलजीबीटीक्यू के अधिकारों पर खुलकर स्टैंड नहीं लिया। सीपीआई ने इस मसले पर बयान जारी कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार से अपील है कि वो समुदाय के अधिकारों को पूरी तरह से सुरक्षित करे।