Sunday, December 22, 2024
HomeIndian Newsआखिर एलआईसी के लिए क्यों उठ रहे हैं सवाल?

आखिर एलआईसी के लिए क्यों उठ रहे हैं सवाल?

वर्तमान में एलआईसी के लिए सवाल उठाए जा रहे हैं! देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी LIC एक बार फिर चर्चा में है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने बुधवार को खम्मम में आयोजित विपक्षी नेताओं की एक रैली में एलआईसी का मुद्दा उठाया। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर एलआईसी को निजी हाथों में बेचने का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनी तो इस कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाएगा। केंद्र सरकार पिछले साल एलआईसी का आईपीओ लेकर आई थी जो देश का अब तक का सबसे बड़ा आईपीओ था। इसका इश्यू प्राइस 949 रुपये था और आज इसकी कीमत 703 रुपये रह गई है। कभी सरकार के लिए दुधारू गाय रही एलआईसी आज बिकने के कगार पर पहुंच गई। सरकार पिछले साल एलआईसी का आईपीओ लाई थी। इसका साइज 21,000 करोड़ रुपये का था। इस आईपीओ के जरिए सरकार ने कंपनी में अपनी 3.5 फीसदी हिस्सेदारी बेची थी। पहले सरकार की एलआईसी में पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना थी लेकिन बाजार में जारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए उसने 3.5 फीसदी हिस्सेदारी ही बेची थी। इस आईपीओ को कुल 2.95 गुना बोलियां मिली थीं। कई लोगों ने एलआईसी का शेयर लेने के लिए पहली बार डीमैट अकाउंट खोला था। लेकिन यह शेयर निवेशकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।

60 साल से अधिक पुरानी इस सरकारी इंश्योरेंस कंपनी का सफर शानदार रहा है। यह देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी है। भारत के इंश्योरेंस मार्केट में इसकी 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। यह सरकार की तारणहार रही है। जब भी सरकार मुश्किल में फंसती है तो एलआईसी ही उसे उबारती रही है। इस कारण एलआईसी को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है। साल 2015 में ओएनजीसी के आईपीओ को एलआईसी ने ही पार लगाया था। कर्ज से जूझ रहे आईडीबीआई बैंक की नैया भी एलआईसी ने पार लगाई थी। लेकिन अब एलआईसी खुद बिकने के कगार पर है। सरकार धीरे-धीरे इसमें अपनी हिस्सेदारी कम करना चाहती है।

फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने एलआईसी में हिस्सेदारी की बिक्री का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि स्टॉक मार्केट में किसी कंपनी के लिस्ट होने से कंपनी में अनुशासन आता है और इससे फाइनेंशियल मार्केट्स तक उसकी पहुंच बनती है। कंपनी के लिए संभावनाओं के द्वार खुलते हैं और रिटेल इनवेस्टर्स को भी कमाई का मौका मिलता है। हाल के दिनों में एलआईसी को प्राइवेट कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा मिल रही है लेकिन इसके बावजूद दूसरी कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी उसके मुकाबले कहीं नहीं है।

एलआईसी देश की सबसे बड़ी इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर है और कई कंपनियों में उसकी हिस्सेदारी है। हाल के वर्षों में एलआईसी का एनपीए बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि उसने जिन कंपनियों में निवेश किया था, उनमें से कई की हालत खराब है। इसमें से कई तो दिवालिया प्रॉसीडिंग से गुजर रही हैं। इनमें दीवान हाउसिंग, अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं। सरकार ने जब 2009 में सरकारी कंपनियों को बेचना शुरू किया तो एलआईसी ख़रीदने में सबसे आगे थी। 2009 से 2012 तक सरकार ने विनिवेश से नौ अरब डॉलर कमाए जिसमें एलआईसी का एक तिहाई हिस्सा था।

एलआईसी के कर्मचारियों के एक गुट ने आईपीओ लाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया था। उनका तर्क है कि इससे कंपनी की इमेज प्रभावित होगी। एलआईसी की तरक्की में पॉलिसीहोल्डर्स और एजेंटों के भरोसे का सबसे बड़ा हाथ है। अगर सरकार इसमें हिस्सेदारी बेचती हैं तो इससे पॉलिसीहोल्डर्स का भरोसा डगमगा जाएगा।इसकी वजह यह है कि उसने जिन कंपनियों में निवेश किया था, उनमें से कई की हालत खराब है। इसमें से कई तो दिवालिया प्रॉसीडिंग से गुजर रही हैं। इनमें दीवान हाउसिंग, अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं। सरकार ने जब 2009 में सरकारी कंपनियों को बेचना शुरू किया तो एलआईसी ख़रीदने में सबसे आगे थी। 2009 से 2012 तक सरकार ने विनिवेश से नौ अरब डॉलर कमाए जिसमें एलआईसी का एक तिहाई हिस्सा था।इसकी वजह यह है कि उसने जिन कंपनियों में निवेश किया था, उनमें से कई की हालत खराब है। इसमें से कई तो दिवालिया प्रॉसीडिंग से गुजर रही हैं।

इनमें दीवान हाउसिंग, अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं। सरकार ने जब 2009 में सरकारी कंपनियों को बेचना शुरू किया तो एलआईसी ख़रीदने में सबसे आगे थी। 2009 से 2012 तक सरकार ने विनिवेश से नौ अरब डॉलर कमाए जिसमें एलआईसी का एक तिहाई हिस्सा था। एलआईसी के कामकाज के लिए संसद ने अलग से कानून बनाया था। इसकी धारा 37 में एलआईसी बीमा की राशि और बोनस को लेकर केंद्र सरकार की गारंटी होती थी। प्राइवेट सेक्टर की बीमा कंपनियों के साथ यह बात नहीं था। शायद यही वजह है एलआईसी में देश का भरोसा बना हुआ था।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments