Monday, December 23, 2024
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आखिर अमेरिका पर विश्वास क्यों नहीं कर पाता भारत?

भारत आज भी अमेरिका पर विश्वास नहीं कर पाता है! यह एक तरह का मील का पत्थर है। सौ साल की उम्र में हेनरी किसिंजर इस दुनिया से चले गए। निस्संदेह प्रतिभाशाली और हमेशा विवादास्पद, उन्होंने स्पॉटलाइट में जीवन जिया: राष्ट्रपतियों के लिए लंबे समय तक सलाहकार, वैश्विक हस्तियों के लिए वार्ताकार, कॉर्पोरेट घरानों के लिए मोटा वेतन पाने वाले सलाहकार, यहां तक कि फिल्म प्रीमियरों में हॉलीवुड अभिनेत्रियों के एस्कॉर्ट भी। कहा जाता है कि मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात ने उसे आम के पेड़ के नीचे भाई की तरह चूम लिया था; अभिलेखीय तस्वीरों में देखा जा सकता है कि कैसे चीनी प्रधानमंत्री झाऊ एन लाई, किसिंजर की प्लेट में पसंद की चीजें डाल रहे हैं। आखिरकार, किसिंजर ऑरिजनल शटल डिप्लोमैट और शानदार बैक चैनल बॉय थे। वो विचारधारा में कम और वास्तविक राजनीति में अधिक विश्वास करते थे, नीति में कम और रणनीति में अधिक। उन्होंने राजनीति में ताकत के इस्तेमाल के लिए बिस्मार्क को पूजा, उन्होंने अपने समय में कैस्टलरेआघ और मेटरनिख के 19वीं सदी के यथार्थवाद को निभाया। अपने जर्मन यहूदी बचपन के अंधेरे में रहते हुए उन्होंने उस युद्ध को रोकने के लिए अथक प्रयास किए जो उन्होंने देखा था। उनका मानना था कि विवादों को सुलझाया नहीं जा सकता, जैसा कि सोवियत संघ के साथ और मध्य पूर्व में उनके काम से पता चलता है।

और फिर भी उन्होंने वियतनाम युद्ध को हवा देने में मदद की, कंबोडिया पर अमेरिकी आक्रमण की देखरेख की, और अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में गलत सलाह दी। उनके प्रशंसक उन्हें एक शानदार अमेरिकी राजनेता, अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक दिग्गज मानते हैं; उनके विरोधियों, जिनकी भरमार है, उन्हें युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाना चाहते हैं। बहरहाल, उन्हें 1973 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विवादास्पद विरासतें भावी पीढ़ियों के लिए विकल्प छोड़ देती हैं। आप चुनते हैं कि आपको सबसे ज्यादा क्या प्रभावित करता है। भारत के लिए किसिंजर की विरासत अनिवार्य रूप से 1971 है, जब वो राष्ट्रपति निक्सन के साथ द्विपक्षीय संबंधों के सबसे खराब दिनों के लिए जिम्मेदार थे। वो तब तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में राष्ट्रपति निक्सन के बहुत करीब थे, उनसे दिन में कई बार मिलते थे और सप्ताह में एक बार उनके साथ लंच करते थे, इसलिए उस दौर में भारत से अमेरिका के खराब रिश्तों की जिम्मेदारी दोनों की है।

निक्सन चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने पर आमादा थे, ताकि मॉस्को के खिलाफ एक बेहतर जियो-पॉलिटिकल लीवर तैयार किया जा सके। किसिंजर शुरू में उहापोह में थे, लेकिन जल्द ही इस प्रॉजेक्ट में पूरी तरह जुट गए। निक्सन और किसिंजर चीन से संपर्क करने के लिए एक गुप्त मध्यस्थ की तलाश में थे, इसलिए अमेरिकी विदेश विभाग को अंधेरे में रखा गया था। अंततः पाकिस्तान के याह्या खान को चुना गया क्योंकि निक्सन उन्हें पसंद करते थे। वह एक क्लिप्ड सैंडहर्स्ट एक्सेंट के साथ बोलते थे और एक स्वैगर स्टिक ले जाते थे, लगभग एक ब्रिटिश अधिकारी की तरह। इसके विपरीत निक्सन इंदिरा गांधी को नापसंद करते थे।

यहां तक कि जब निक्सन और किसिंजर चीन के लिए ऐतिहासिक उद्घाटन का सपना देख रहे थे, पूर्वी पाकिस्तान का संकट शुरू हो गया। मानवाधिकारों के उल्लंघन, नरसंहार और बढ़ते शरणार्थी आंकड़े अमेरिका के लिए अनचाही परेशानियां थीं। भारत के कूटनीतिक संपर्क और संभावित सैन्य कार्रवाई की रिपोर्टों को किसिंजर के उस बहुमूल्य बैक चैनल के लिए खतरा माना जाता था जो पाकिस्तान से चीन तक चलता था। कांग्रेस और मीडिया के दबाव के बावजूद निक्सन ने अपने प्रशासन को निर्देश दिया कि ‘इस समय याह्या खान को न निचोड़ें’।

बड़ी योजना में पाकिस्तान की भूमिका से अनजान अमेरिकी वाणिज्य दूत जनरल आर्चर ब्लड और उनके सहयोगियों ने प्रसिद्ध ‘ब्लड टेलीग्राम’ भेजा जिसमें पाकिस्तानी सेना द्वारा ‘आतंक के शासन’ की सूचना दी गई और अमेरिकी चुप्पी का विरोध किया गया। टेलीग्राम लीक हो गया, जैसा कि अपेक्षित था, और किसिंजर और उनके बॉस सन्न रह गए। किसिंजर पहले भारत आए और वहां से गुपचुप और पेट में दर्द के बहाने पीआईए बोइंग 707 विमान पर सवार हो चीन चले गए। भारत में प्रवास के दौरान उन्होंने भारतीय नेतृत्व को कई भ्रामक बयान दिए, जो वर्षों तक कटुता कारण बने रहे, जिसमें यह आश्वासन भी शामिल था कि अमेरिका, चीन के खिलाफ भारत का समर्थन नहीं करेगा। पांच महीने बाद वो चीनियों को दूसरे रास्ते पर ले जा रहे थे। इस बीच वॉशिंगटन में उन्होंने भारतीय राजदूत से कहा कि भारत अकेला है। अमेरिका से पाकिस्तान को हथियारों के पुर्जों और अन्य आपूर्ति जारी रही। भारत ने आखिरकार अगस्त में भारत-सोवियत शांति और मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए।

3 दिसंबर को पाकिस्तान के हमले के बाद दुश्मनी भड़क उठी तो किसिंजर और निक्सन ने संघर्ष के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया, जिससे लाखों डॉलर की सहायता रुक गई। अमेरिका की धारणा थी कि भारत बाकी पाकिस्तान को भी नष्ट कर देगा। इसके खिलाफ भारत ने स्पष्ट स्पष्टीकरण दिया। बावजूद इसके अमेरिका ने भारत के खिलाफ एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में भेज दिया। उसने चीन में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए ऐसा किया। आखिरकार, निक्सन की चीन यात्रा हुई लेकिन भारत-अमेरिका संबंधों को अविश्वास के उस दौर से उबरने में वर्षों लगे।

निक्सन और किसिंजर के बीच बातचीत बाद में सामने आई तो उनके सेक्सिस्ट और नस्लवादी मिजाज से पर्दा उठ गया। निक्सन का मानना था कि भारतीयों को ‘भयंकर अकाल’ का सामना करना चाहिए; किसिंजर ने कहा, ‘वे ऐसे ही कमीने हैं।’ किसिंजर ने यह भी कहा कि भारतीय ‘कचरा बीनने वाले लोग’, ‘शानदार चापलूस’ और ‘सबसे आक्रामक लोग हैं’। इस बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट में और भी बहुत कुछ है। कहा जाता है कि मरने के बाद बुराई नहीं करनी चाहिए। लेकिन कभी-कभी सच बोलने में कोई बुराई नहीं होती।

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