नितिन पटेल मौका होते हुए भी गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए! साल 2014 मई में जब आम चुनावों के नतीजे आए तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने के लिए दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे, तो वहीं राज्य में 13 सालों के बाद पहली बार बदलाव होना था। मुख्यमंत्री मोदी का उत्ताधिकारी कौन होगा? इसको लेकर चर्चाएं तो लंबे समय से जारी थीं लेकिन राज्य की कमान मोदी से उम्र में बड़ी आनंदीबेन पटेल का सौंपी गई तो इन पर विराम लग गया, लेकिन यह वो पहला मौका था जब अनुभवी नितिन पटेल के लिए ‘सीएम इन वेटिंग’ की शुरुआत हुई। उनका सीएम बनने का सपना टूट गया, लेकिन पाटीदार समुदाय से आने वाली आनंदीबेन पटेल के चयन पर वे चाहकर भी कुछ नहीं बोल पाए। क्योंकि 2014 के चुनाव से पहले जब सर्वे में मोदी के पीएम बनने की संभावना व्यक्त की जा रही थी, तो उस वक्त नितिन पटेल ने अपने सीएम बनने की महत्वकांक्षा को खुलकर व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था कि जब मोदीजी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, तो उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने में खुशी होगी।
कुछ वक्त बीता तो सख्त शिक्षा मंत्री की छवि से सीएम बनी आनंदीबेन अभी एक साल ही पूरा कर पाई थीं। राज्य में पाटीदार आंदोलन शुरू हो गया। पाटीदार बहुल इलाकों में हिंसा हुई। जीएमडीसी ग्राउंड पर इतने लोग जमा हुए कि उसने सरकार को हिला दिया। बीजेपी के केंद्रीय आलाकमान को नेतृत्व परिवर्तन पर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा। आखिर में 6 जुलाई, 2015 को शुरु हुए आंदोलन की आग में आनंदीबेन की कुर्सी चली गई। उन्होंने आलाकमान के निर्देश पर 3 अगस्त को पद से इस्तीफा दे दिया। नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति में एक बार फिर से नितिन पटेल का नाम प्रमुख दावेदार के तौर पर उभर कर सामने आया। माना गया कि इस बार तो वे मुख्यमंत्री बन ही जाएंगे। नितिन पटेल आत्मविश्वास से लबरेज थे, उन्होंने काफी तैयारियां भी कर ली थीं। मुख्यमंत्री का चयन करने के लिए गांधीनगर में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई। इसमें विजय रुपाणी का नाम घोषित किया। सीएम के दावेदार होने के बाद भी नितिन पटेल दूसरी बार वेटिंग में रह गए। पार्टी ने उनकी नाराजगी को भांपकर संतुलन साधा और उन्हें डिप्टी सीएम डिक्लेयर कर दिया। वे राज्य के पांचवें डिप्टी सीएम बने। बाद में उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण विभाग भी दिए गए। एक साल बाद जब चुनाव हुए और पार्टी गुजरात में फिर से सरकार बनाने में सफल हुई। सामने आया कि सौराष्ट्र को छोड़कर बाकी पाटीदार बहुल इलाकों में बीजेपी को नुकसान नहीं हुआ। तो फिर से सुगबुहाहट हुई कि नितिन पटेल को मेहनत का इनाम मिल सकता है, लेकिन उन्हें दूसरी बार भी डिप्टी ही बनना पड़ा। यह तीसरा मौका था जब उनके सीएम बनने की संभावना परवान चढ़ते-चढ़ते रह गई।
केशुभाई पटेल, नरेंद्र मोदी, आनंदीबेन पटेल और फिर विजय रुपाणी के जूनियर के तौर कर रहे नितिन पटेल धैर्य धारण किए हुए थे कि एक दिन उनका नंबर जरूर आएगा। सितंबर, 2021 में पार्टी ने फिर से नेतृत्व परिवर्तन किया। अचानक विजय रुपाणी ने इस्तीफा दिया तो लगा नितिन पटेल का नंबर आ गया। वे राज्य के छह सालों से डिप्टी थे। सभी ने कहा कि अबकी बार जिम्मेदारी मिल जाएगी। पीएम मोदी के विश्वासपात्र होने और अनुभव की दुहाई दी गई लेकिन नितिन पटेल के हाथों में एक बार फिर निराशा आई। नो रिपीट थ्योरी में वे कैबिनेट से बाहर चले गए। इसका दर्द भी झलका। वे रो पड़े। चौथी बार भी नितिन पटेल राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
मेहसाणा से विधायक नितिन पटेल का नाम गुजरात की राजनीति में कांतीलाल घिया और नरहरि अमीन के साथ लिया जाएगा। नितिन पटेल से पहले गुजरात में कुल पांच डिप्टी सीएम हुए हैं। इनमें चिमनभाई पटेल और केशुभाई पटेल बाद में डिप्टी सीएम से सीएम बने, लेकिन 1990 में विधायक और 1995 में कैबिनेट मंत्री बने नितिन पटेल हमेशा के लिए सीएम इन वेटिंग रह गए। हो सकता है ये उनके अगेंस्ट में गया हो। पारेख कहते हैं कि वे काबिलियत नहीं रखते थे, ऐसा नहीं है। वे कई मौकों पर संकटमोचक बने। हां ये जरूर है कि पाटीदार आंदोलन के दौरान मेहसाणा में जो हिंसा हुई थी। वह उनके अगेंस्ट रही। पारेख मानते हैं कि इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं थे। शायद हालात ही ऐसे थे कि सभी जिम्मेदार थे। हालांकि नितिन पटेल के नाम एक रिकॉर्ड जरूर दर्ज रहेगा। वे सबसे लंबे समय डिप्टी सीएम रहे। उन्होंने करीब छह साल तक इस दायित्व को निभाया।
22 जून को मेहसाणा में जन्मे नितिन पटेल 1974 में सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुए। वे कड़ी तालुका नवर्निमाण कमेटी के महासचिव बने। इसके बाद 1977 के कड़ी नगर पालिका के लिए चुने गए। फिर एपीएमसी कड़ी के डायरेक्टर बने और फिर 1990 में फिर पालिका के लिए निर्वाचित हुए। 1990 में कड़ी से पहली बार विधायक बने इसके बाद 1995 में केशुभाई पटेल की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। 1997-98 के दौरान वे मेहसाणा भाजपा के अध्यक्ष रहे। 1999 में फिर वे मंत्री बने। 2001 में उन्हें राज्य का वित्त मंत्री बनाया गया,फिर राजस्व और बाद में सिंचाई विभाग दिए गए। 2012 में मेहसाणा से विधायक बने और लगातार वहां से विधायक हैं। ऐसे में जब राज्य में चुनाव होने है तो अटकलें हैं कि शायद उन्हें टिकट नहीं मिले, हालांकि नितिन पटेल की उम्र अभी 66 साल है फिर भी राज्य में उनके लिए अब संभावनाएं काफी कम हैं, लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।