KCR के लिए क्यों मुसीबत बन गई बीजेपी?

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हाल ही के दिनों में केसीआर और बीजेपी के बीच और दरार आ गई है! तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का जब से गठन हुआ है इस पार्टी ने तेलंगाना पर राज्य किया है। कुछ महीने पहले तक इस पार्टी को बीजेपी के सहयोगी के रूप में देखा जाता था। अब, के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली पार्टी खुद को भारतीय जनता पार्टी के कट्टर आलोचक के रूप में पेश कर रही है। क्या है जिसने के चंद्रशेखर राव को बदल दिया? उनकी राजनीति बदल दी?

आने वाले दिनों में टीआरएस चीफ क्या करने वाले हैं?

पिछले साल 30 अक्टूबर को तेलंगाना के करीमनगर जिले के हुजूराबाद विधानसभा क्षेत्र में मतदान हुआ था। इसे सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का गढ़ माना जाता था। जब 3 नवंबर को परिणाम घोषित किया गया, तो इसने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी को चौंका दिया। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार एटाला राजेंदर ने टीआरएस उम्मीदवार को बड़े अंतर से हरा दिया।2018 के राज्य चुनाव में, टीआरएस को 59.34% और बीजेपी को 0.93% वोट मिले थे। तीन वर्षों में, बीजेपी 52% तक पहुंच गई है। जून 2021 में एटाला राजेंदर टीआरएस सरकार में वरिष्ठ मंत्री थे। उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया तो उन्होंने बीजेपी जॉइन कर ली। बीजेपी ने उन्हें हुजूराबाद से प्रत्याशी बनाया और उन्होंने टीआरएस प्रत्याशी को हरा दिया। हालांकि देखें तो टीआरएस वोट शेयर नहीं गिया। बीजेपी का वोट कांग्रेस के बैंक से आया। कांग्रेस का वोट शेयर 2018 में 34.60% से गिरकर अक्टूबर 2021 में 1.46% हो गया।यह तेलंगाना की कहानी है जो राज्य में बीजेपी की ऊर्जा को दर्शाती है और मिशन तेलंगाना पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के फोकस को बताती है। पिछले एक साल में, टीआरएस और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का सिलसिला जारी है। भगवा पार्टी उम्मीद कर रही है कि केसीआर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और मरणासन्न कांग्रेस उसके पक्ष में काम करेगी। यह भी बताता है कि केसीआर पिछले कई महीनों से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इतने आक्रामक क्यों हो रहे हैं, जो वह पहले कभी नहीं हुआ करते थे।

पहले क्या हुआ था?

2014 के लोकसभा चुनाव में, बीजेपी ने तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ गठबंधन किया था और आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था। बीजेपी को इन आठ सीटों में से महज एक पर जीत मिली थी। टीआरएस ने 12, कांग्रेस ने दो, टीडीपी ने एक और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने एक जीत हासिल की। तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटें हैं।टीडीपी और वाईएसआरसीपी 2019 में तेलंगाना चुनाव परिदृश्य से बाहर हो गए, और बीजेपी ने चार लोकसभा सीटों के साथ कई लोगों को चौंका दिया। टीआरएस नौ पर आ गई, कांग्रेस तीन पर चली गई, जबकि असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी हैदराबाद सीट बरकरार रखी। सबसे हैरानी की बात यह है कि केसीआर की बेटी के कविता निजामाबाद में बीजेपी के अरविंद धर्मपुरी से हार गईं। अरविंद टीआरएस के पूर्व नेता डी श्रीनिवास के बेटे हैं। अरविंद धर्मपुरी पर कविता ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया था, जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। टीआरएस के पारंपरिक गढ़ रहे आदिलाबाद और करीमनगर भी बीजेपी के खाते में गए। वही करीमनगर से हुजूराबाद उपचुनाव का झटका भी केसीआर को लगा।

बीजेपी का वोट शेयर 2014 में 10.5% से बढ़कर 2019 में 19.5% हो गया। लेकिन वोट शेयर में यह वृद्धि आश्चर्यजनक नहीं है। राजनीतिक टिप्पणीकारों ने कहा कि यह आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि बीजेपी हमेशा अगले दौर के मतदान के लिए तैयार रहती है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के लिए हर चुनाव जीतना होता है। पश्चिम बंगाल में विपक्षी दल बनना और पूर्वोत्तर में व्यापक रूप से कब्जा करना इसका प्रमाण हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता बरकरार है। हाल ही में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार को हटाने में पर्दे के पीछे की भूमिका बीजेपी ने ही निभाई। बीजेपी ने पिछले नगर निकाय चुनावों में हैदराबाद में 48 नगरसेवकों की जीत के साथ रिकॉर्ड दर्ज किया था।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बंगाल की सीएम के बीच आश्चर्यजनक रूप से कुछ एक जैसा ही है। 68 वर्षीय केसीआर वहीं नजर आते हैं जहां ममता 2021 से पहले थीं। ममता ने बंगाल में लगातार दो विधानसभा चुनाव 2011 और 2016 जीते। केसीआर ने 2014 और 2018 के चुनाव जीते। ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए यह बहुत ही खास था क्योंकि वह पार्टी की पहली सीएम बनीं। उन्होंने बंगाल में 34 साल के वाम शासन को समाप्त कर दिया था। केसीआर के मामले में, उनका पहला कार्यकाल उसी वर्ष आया। उन्होंने आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य की मांग की। दोनों अब राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट विपक्ष की धुरी बनने की होड़ में हैं। दोनों ही मामलों में, बीजेपी अचानक एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने से पहले राज्य की राजनीति में सबसे आगे थी।

2014 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कुल 119 सीटों में से टीआरएस ने 63 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 5 सीटें। 2018 के राज्य चुनाव में बीजेपी 45 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन सिर्फ एक पर जीत हासिल की। टीआरएस ने 88 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने कुल 17 में से चार सीटें जीतकर वापसी की। टीआरएस ने 9 सीटें जीतीं। 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 294 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटों पर जीत हासिल की, जो 2016 में महज तीन सीटों पर थी।बीजेपी की नजरें तेलंगाना पर मजबूती से हैं। यह राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए तैयार है। पार्टी 2-3 जुलाई को हैदराबाद में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर रही है। बैठक में पीएम मोदी समेत बीजेपी के शीर्ष नेता शामिल हो रहे हैं। पीएम सिकंदराबाद में एक रैली को संबोधित करेंगे। सिकंदराबाद लोकसभा सीट जिसे उनके मंत्री जी किशन रेड्डी ने 2014 में जीता था और 2019 में बरकरार रखा था।