आखिर देवबंद क्यों पहुंचे इमरान मसूद?

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बसपा में शामिल होते ही इमरान मसूद देवबंद पहुंच गए हैं! बसपा के पश्चिमी यूपी के संयोजक इमरान मसूद बुधवार को सहारनपुर के देवबंद पहुंचे और वहां कई बड़े उलेमाओं और मुफ्तियों के साथ बैठक की। मसूद ने उनके साथ देश और प्रदेश के राजनीतिक हालात पर चर्चा की। उलेमाओं के साथ बैठक में उन्‍होंने बीजेपी की नीतियों की जमकर आलोचना की। इमरान मसूद 19 अक्‍टूबर को ही बसपा में शामिल हुए थे।लगभग उसी समय यूपी सरकार के सर्वे में पता चला कि देवबंद का विश्‍वविख्‍यात मदरसा दारुल उलूम भी गैर मान्‍यता प्राप्‍त है। यूपी में मदरसों के सर्वे को लेकर काफी हो हल्‍ला हो रहा है। जमीयते उलेमा हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने मदरसों के सर्वे पर कहा, ‘अगर आप मदरसे को पकड़ रहे हैं तो इसका मतलब है, आप हमारी मस्जिद पर सवाल उठा रहे हैं।’ विपक्ष भी इसे मुद्दा बना रहा है। खुद बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी यूपी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब ये गैर सरकारी मदरसे सरकार पर बोझ नहीं बनना चाहते तो फिर सरकार इनमें दखल क्‍यों दे रही है? ऐसे में सवाल उठता है कि बसपा में शामिल होते ही इमरान मसूद के देवबंद पहुंचने को मदरसों के सर्वे और इसे लेकर देवबंद के उलेमाओं के विरोध से जोड़कर देखा जाए या इसके कुछ और मायने हैं। इस सवाल का जवाब खोजने से पहले इमरान मसूद के राजनीतिक जीवन को टटोलना जरूरी है। इनका जन्म 21 अप्रैल 1971 को सहारनपुर के गंगोह में हुआ। इनके पिता राशिद मसूद पूर्व केंद्रीय मंत्री और पश्चिम उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं में गिने जाते रहे।

इमरान ने पहला विधानसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 2007 में लड़ा। यहां उन्होंने मुलायम सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जगदीश राणा को मात दी। इसके बाद इन्‍हें जीत हासिल नहीं हुई। साल 2012 में वह कांग्रेस के टिकट पर नकुड़ सीट से उतरे लेकिन हार ही नसीब हुई। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में हारे, साल 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी बने लेकिन फिर हारे, साल 2019 में ही इनका यही हाल हुआ।

इसके बाद 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान इमरान मसूद कांग्रेस छोड़कर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ हो गए। लेकिन चुनाव में इन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला। न इन्‍हें और न इनके समर्थकों को टिकट मिल सका। अब अक्टूबर 2022 में इन्होंने मायावती की बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा और मायावती ने इन्‍हें पश्चिमी यूपी का संयोजक बना दिया।

उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से ही बसपा प्रमुख मायावती को यह मलाल था कि मुसलमानों ने उनका साथ नहीं दिया। वहीं विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हुए इमरान मसूद के सामने अपना वजूद साबित करने की चुनौती थी। दोनों की यह मजबूरी ही एक-दूसरे के साथ आने की वजह बनी।

दलित-मुस्लिम समीकरण शुरुआत से बसपा की मजबूती रहा है। बसपा का ग्राफ देखा जाए तो साफ है कि साल 2012 से लगातार बसपा का वोट प्रतिशत गिर रहा है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि ओबीसी वोट बैंक सपा और भाजपा में बंटता गया। विधानसभा चुनाव 2022 में मुसलमान एकतरफा सपा की तरफ चला गया। वहीं दलित वोट बैंक में भी सेंध लग गई। अब बसपा की मजबूरी है कि किसी तरह मुसलमान उसके साथ आएं। इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं। उनके भाई नोमान मसूद विधानसभा चुनाव से ही बसपा के साथ हैं। बसपा को लग रहा है नगर निकाय चुनाव में इनके जरिए मुसलमानों को अपने पाले में लाने में सफलता मिल सकती है।

इमरान मसूद सपा में जाने के बाद से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। अब बसपा को मुस्लिम वोटों की जरूरत है और इमरान को खुद को साबित करने का एक मौका चाहिए। ऐसे में अगर निकाय चुनाव में खुद को साबित करते हैं तो 2024 में अपना कद बढ़ाने का बेहतर मौका मिलेगा।यह बात बुधवार को देवबंद में उनके भाषण से भी साफ है जिसमें उन्‍होंने कहा, यूपी में 4 करोड़ मुस्लिम वोटर होने के बावजूद 2022 विधानसभा चुनाव से यह साबित हो गया कि मुसलमान ना किसी को जिता सकते हैं और ना किसी को हरा सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह मुस्लिम के साथ प्लस वोट न होना है। इसी वजह से यूपी में बीजेपी सरकार दोबारा बन गई। इमरान ने कहा, यदि दलित और मुस्लिम सियासी ताकत बन जाएं तो देश की तस्वीर बदल देंगे। उन्होंने आगे कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव दलित व मुस्लिम एक होकर चुनाव लड़ेंगे तो बसपा को 40 से ज़्यादा सीटों पर जीत मिलना तय है। इसके बाद 2027 में बसपा सुप्रीमो मायावती जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगी।