Friday, February 7, 2025
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माधव राज सिंधिया की ज्योतिराज सिंधिया से क्यों थी दुश्मनी? जानिए!

एक समय ऐसा था जब माधवराव सिंधिया और ज्योतिराज सिंधिया के बीच नफरत के बीज पल रहे थे! करीब सवा दो साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वॉइन की थी तो इसे सिंधिया परिवार में राजनीतिक मतभेदों का अंत कहा गया। यह उम्मीद भी बंधी कि परिवार में चल रही संपत्ति की लड़ाई भी अब खत्म हो सकती है। दो साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी संपत्ति विवाद वहीं अटका है। और तो और, एक ही पार्टी में होने के बावजूद यशोधराराजे सिंधिया विरले ही कभी अपने भतीजे के साथ एक मंच पर नजर आई हैं। यह मामला केवल संपत्ति विवाद या राजनीतिक मतभेदों का नहीं है। बुआ-भतीजे की इस लड़ाई में सबसे बड़ा मुद्दा सिंधिया खानदान की विरासत का है जिस पर यशोधरा गाहे-बगाहे अपना दावा ठोकती रहती हैं जबकि ज्योतिरादित्य खुद को इसका स्वाभाविक हकदार मानते हैं।

हुआ खुला विरोध

यशोधराराजे अपने भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले चुनावी राजनीति में आई थीं। यशोधरा ने पहला चुनाव 1998 में लड़ा था। ज्योतिरादित्य पिता माधवराव की मौत के बाद 2002 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। 1998 में पहली बार विधायक बनने से पहले भी यशोधरा हालांकि राजनीति में सक्रिय हो चुकी थीं। 1989 के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया के हर चुनाव में प्रचार की कमान वही संभालती थीं। तब तक माधवराव और राजमाता के बीच संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हो चुका था। राजमाता की मृत्यु के बाद उनकी तीन बेटियों में यशोधरा ही संपत्ति विवाद में सबसे ज्यादा सक्रिय रहीं। इधर, माधवराव की मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिता की जगह संपत्ति विवाद में भी मोर्चा संभाल लिया। दोनों के अलग-अलग पार्टियों में होने के चलते भी बुआ और भतीजे की यह लड़ाई लगातार जोर पकड़ती रही।

पति से तलाक के बाद यशोधरा जब भारत लौट कर आईं, तब से वे लगातार अपनी मां विजयाराजे सिंधिया के साथ रहीं। उनकी दो बड़ी बहनों में से एक उषाराजे राजनीति से दूर हैं जबकि वसुंधराराजे एमपी छोड़ राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हैं। इसलिए यशोधराराजे खुद को राजमाता का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानती हैं। दूसरी ओर, माधवराव सिंधिया की मौत के बाद ज्योतिरादित्य उनकी खाली सीट से लोकसभा के लिए चुने गए। सिंधिया खानदान में महाराजा की परंपरागत पदवी भी उन्हीं को मिली है। अपने परिवार की विरासत पर वे स्वाभाविक दावा जताते हैं। दोनों के बीच लड़ाई की बड़ी वजह यही है।

ज्योतिरादित्य की तरह यशोधराराजे भी ग्वालियर से अपने इमोशनल कनेक्शन बताने से कभी नहीं चूकतीं। चुनाव प्रचार के दौरान वे तकरीबन हर सभा में इसकी चर्चा जरूर करती हैं। एक बार वे ग्वालियर से सांसद भी रह चुकी हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह पसंद नहीं आता और कई बार दोनों के समर्थक इस चलते आमने-सामने आ चुके हैं। साल 2007 में तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल दिल्ली-ग्वालियर-भोपाल फ्लाइट सेवा का उद्घाटन करने आए थे। ज्योतिरादित्य गुना से सांसद थे जबकि यशोधराराजे ग्वालियर से लोकसभा सदस्य थी। तब ज्योतिरादित्य भी प्रफुल्ल पटेल के साथ आए थे और समारोह के विशिष्ट अतिथि थे। यशोधराराजे ने इसके खिलाफ लोकसभा के स्पीकर को चिट्ठी लिखकर शिकायत की थी। यशोधरा ने लिखा था कि गुना के सांसद को ग्वालियर में विशिष्ट अतिथि बनाने का क्या तुक है।

इसी तरह, 2008 में रोपवे के निर्माण को लेकर यशोधरा और ज्योतिरादित्य आमने-सामने आ गए थे। ग्वालियर नगर निगम ने ग्वालियर के किले से लेकर फूलबाग गार्डन तक 750 मीटर लंबा रोपवे बनाने का प्लान बनाया था। ज्योतिरादित्य इसके सख्त खिलाफ थे। उन्हें अंदेशा था कि इससे किले को नुकसान पहुंचेगा जो उनका पुश्तैनी घर है। वहीं, यशोधरा इस मुद्दे पर उनके खिलाफ खड़ी हो गई थीं।

सिंधिया के जयविलास पैलेस में चोरी की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 2008 के आसपास ऐसी ही एक चोरी के बाद यशोधरा के पर्सनल सेक्रेटरी सतीश जायसवाल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने चोरी का शक ज्योतिरादित्य के पर्सनल सेक्रेटरी विजय फालके पर जताया था। इसके जवाब में सिंधिया के सचिव ने भी पुलिस में शिकायत दर्द कराई थी।

आपसी मदभेदों के बावजूद सिंधिया परिवार के सदस्यों के बीच एक अघोषित समझौता भी है। परिवार के सदस्य कभी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव प्रचार नहीं करते। यदि पार्टी के दबाव में प्रचार करना मजबूरी हो तो जनसभा केवल इतना ही कहते हैं- हमारी इज्जत रख लेना। भाषण सुन रहे लोगों को स्पष्ट नहीं होता कि वे आखिर कहना क्या चाहते हैं। यही अस्पष्टता ज्योतिरादित्य और यशोधरा के बीच रिश्तों में भी नजर आती है। दोनों के बीच मतभेद से ज्यादा मनभेद हैं। ये आश्चर्यजनक है क्योंकि माधवराव की तीन बहनों में यशोधरा ही उनके सबसे करीब थीं।

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