पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस्तीफा क्यों दिया, यह सबसे बड़ा सवाल है! देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई ने अपने राजनैतिक जीवनकाल में कई बार पीएम बनने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए, 1977 के चुनाव में जब जनता पार्टी जीती तो 81 साल की आयु में उनके हाथ पीएम बनने का मौका लगा। वे पहले गुजराती थे जो प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 1979 तक वे प्रधानमंत्री रहे। बचपन में मेधावी छात्र रहे मोरारजी रणछोड़भाई देसाई का जन्म गुजरात के भदेली में हुआ था। वर्तमान में यह जगह वलसाड जिले में आती है। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जब बात होती है तो गोधरा और गुजरात दंगों का जिक्र होता है। ऐसा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नहीं है बल्कि देश के चौथे प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई के साथ गोधरा का नाम जुड़ा हुआ है।29 फरवरी 1896 को जन्मे मोरारजी देसाई काफी मेधावी छात्र थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस ज्वाइन की। इसके बाद मोरारजी अफ़सर बन गए। मई 1918 में वह बतौर उप ज़िलाधीश अहमदाबाद पहुंचे। साल 1927-28 में वह गोधरा में बतौर डिप्टी कलेक्टर काम कर रहे थे। इसी दौरान वहां पर सांप्रादायिक दंगे हुए। इन दंगों में मोरारजी देसाई पर आरोप लगा कि उन्होंने हिन्दुओं के प्रति नरम रुख रखा। बाद में उन्हें दोषी करार दिया गया तो उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और फिर आजादी के आंदोलन से जुड़े गए। यही से उनकी नई शुरुआत हुई और आखिर में वह देश के प्रधानमंत्री बने, हालांकि उन्हें यह मौका कांग्रेस में रहते हुए नहीं मिला। जब जनता पार्टी जीती तो वे देश के पहले गैर-कांग्रेसी पीएम बने। अब तक उनका नाम देश के सबसे उमदराज प्रधानमंत्री के तौर पर भी दर्ज है।
कहते हैं कि पंडित नेहरू के समय में कांग्रेस के अंदर जो अनुशासन था। वह उनकी मृत्यु के बाद काम होने लगा था। कुछ नेता थे जो स्वंम को पार्टी से बड़ा समझते थे। इनमें एक नाम मोरारजी देसाई का भी था, हालांकि लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता भी थे जो पार्टी के प्रति एकदम वफादार थे। गुजरात में राजनीतिक विमर्श में इस बात की खूब चर्चा होती है कि इंदिरा गांधी ने मोरारजी की नाराजगी को भांप लिया था। यही वजह थी कि उन्होंने मोरारजी देसाई को खुश करने के लिए उप प्रधानमंत्री बना दिया था, लेकिन मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। नवंबर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस-आर और कांग्रेस-ओ के रूप में हुआ तो मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस-आई के बजाए सिंडीकेट के कांग्रेस-ओ में चले गए। फिर 1975 में वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला तो चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम को पीछे छोड़कर प्रधानमंत्री बने। इसके बाद कांग्रेस के प्रति मोरारजी की नाराजगी तब जगजाहिए हुई जब उन्होंने उस वक्त देश में चल रही नौ कांग्रेसी सरकारों को भंग कर दिया।
गुजरात से निकलकर देश में चौथे और पहली गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई का जिक्र राज्य की राजनीति में अक्सर होता है। जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री चुने जा चुके थे और गुजरात में उनका विदाई समारोह रखा गया था तो पूर्व सीएम शंकरसिंह वाघेला ने दोनों नेताओं के गोधरा कनेक्शन का जिक्र किया था। कभी अजीज मित्र रहे वाघेला अक्सर पीएम नरेंद्र मोदी पर अपने अंदाज में निशाना साधते हैं। मोरबी पुल हादसे के बाद दो दिन पूर्व उन्होंने मोरार जी देसाई का जिक्र करते हुए कहा था कि वे भी गुजरात से पीएम बने लेकिन उपचुनाव में भी अपनी पार्टी के प्रचार के लिए नहीं जाते थे।
ऐसे में जब में 15वीं विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है तब राज्य में यह चुनाव मोदी बनाम सभी का है। बीजेपी का पूरा करिश्मा इसी पर टिका हुआ है। राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता काफी ज्यादा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं हिन्दुत्व से ज्यादा मोदीत्व बीजेपी की मजबूती है। पार्टी की होर्डिंग्स में पीएम मोदी को गुजरात का पनोता पुत्र लिखा जाता है ऐसा बेटा जिस पर गर्व किया जा सके। फिलहाल इस करिश्मे की काट विपक्ष के पास नहीं है। 2014 के चुनाव में भी जब पूरे देश में अबकी बार-मोदी सरकार नारा था तब तब गुजरात में जिस नारे ने धूम मचाई थी वह था आपणो नरेंद्र-आपणो पीएम!