ब्राजील में पूर्व राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा की सत्ता में फिर वापसी हो चुकी है! भारत में 2014 में भाजपा को सत्ता मिली। 2017 में अमेरिका में ट्रंप की सरकार बनी, 2019 में जायर बोलसोनारो ब्राजील के राष्ट्रपति बने तो कहा गया कि दुनिया में दक्षिणपंथी पार्टियों का दबदबा बढ़ रहा है। लेकिन ब्राजील में बड़ा उलटफेर हुआ है। हाल में हुए चुनावों में वामपंथी ‘वर्कर्स पार्टी’ के लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने जीत हासिल की है। सिल्वा 2003 से 2010 के बीच ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं। उन्हें 2018 में भ्रष्टाचार के मामले में सजा सुनाई गई थी। पीएम मोदी ने ब्राजील के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को बधाई दी है। वहीं, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वामपंथी लूला डी सिल्वा को बधाई देते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की जीत हुई है।
पिछले चार साल में ब्राजील में जायर बोलसोनारो की छवि ट्रंप जैसे नेता की बन गई थी। ऐसे में लूला की वापसी की दुनियाभर में चर्चा हो रही है। ब्राजील दक्षिण अमेरिकी देश है और भारत दक्षिण एशियाई देश है लेकिन अपने महाद्वीप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारतीय विदेश नीति में ब्राजील का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है।बोलसोनारो के सपोर्टरों ने चुनाव नतीजों पर सवाल उठाए हैं और वोटिंग मशीन को भी चैलेंज किया गया। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन दुनिया में शायद सबसे पहले नेता थे जिन्होंने बधाई देते हुए चुनावों को ‘स्वतंत्र, निष्पक्ष और भरोसेमंद’ बताया। पीएम मोदी और बाकी देशों के नेताओं ने भी नए राष्ट्रपति को जीत की बधाई दे दी है। भले ही जीत का अंतर कम हो लेकिन लूला को दुनिया विजेता कह रही है।
राष्ट्रपति चुनाव में बोलसोनारो को 49.1 प्रतिशत और सिल्वा को 50.9 प्रतिशत मत मिले हैं। बोलसोनारो का आंकड़ा कम नहीं है और इससे साफ संकेत मिलता है कि ब्राजील की सियासत के केंद्र में दक्षिणपंथी नेता का कद बरकरार है।
इसके अलावा बोलसोनारो के सहयोगियों का कांग्रेस पर नियंत्रण है। इससे दो बातें साफ हो जाती हैं- लूला के सामने एक मजबूत विपक्ष होगा और दूसरा, उन्हें अपनी धुर वामपंथी विचारधारा को पीछे रखते हुए सेंटर की तरफ बढ़ना होगा।
इससे संसद में उनके लिए छोटी पार्टियों का समर्थन हासिल करने के दरवाजे खुल सकते हैं।
सवाल है कि क्या अपनी विचारधारा से समझौता करने को तैयार लूला एक व्यावहारिक नेता बनकर उभरेंगे, जिसके दिमाग में बड़े उद्देश्य हैं? उन्हें पता है कि यह जीत एकतरफा नहीं है। अगर लूला को दक्षिणपंथियों की ओर से उठती विरोधी आवाज से निपटना है तो उन्हें वामपंथियों की भी ऐसी तीखी आवाजों पर अंकुश लगाना होगा।
उन्हें कई डील फाइनल करने के लिए विपक्ष का साथ लेना होगा। जैसे, श्रम सुधार लेफ्ट का सपना है लेकिन अभी उसे पीछे ही रखना होगा। दूसरी तरफ, वह पर्यावरण एजेंडे पर आगे बढ़ सकते हैं। बोलसोनारो ने अमेजन के जंगलों को काटने और स्थानीय लोगों को जमीन के अधिकार पर एक प्रस्ताव दे रखा है। इसके अलावा, लूला को जलवायु परिवर्तन से संबंधित कुछ कदम उठाने होंगे जिसके लिए कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत होगी। दरअसल, बोलसोनारो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना झेलनी पड़ी है कि वह अमेजन के जंगलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन पर विकास कार्यों के लिए पर्यावरण नियमों में ढील देने के आरोप लगे थे।
ब्राजील के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने अमेजन वर्षावन में वनों की कटाई को कम करने का वादा किया है। वामपंथी राष्ट्रपति ने अपने विजयी भाषण में कहा, ‘हम एक बार फिर से निगरानी करेंगे और अमेजन में हर अवैध गतिविधि से लड़ेंगे।’ आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ब्राजील के अमेजन वनों की कटाई का क्षेत्र अगस्त 2020 से जुलाई 2021 तक 15 साल के अपने उच्च स्तर पर पहुंच गया।
अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन के लिए लूला के साथ डील करना आसान होगा।
हालांकि कोई नहीं जानता कि 2024 में वॉशिंगटन में क्या होने वाला है।
ब्राजील के लिए अमेरिका के साथ रिश्ते सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, ऐसे में लूला को अमेरिका में दोनों पक्षों के साथ सावधानीपूर्वक डीलिंग करनी होगी।
लूला के कार्यकाल में ब्राजील के चीन के साथ रिश्तों पर भी गहरी नजर रखी जाएगी। चीन निश्चित रूप से ब्राजील का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है, उसने ब्राजील की अर्थव्यवस्था में भारी-भरकम निवेश कर रखा है।कोविड के बाद देश को आर्थिक संकट से उबारना लूला सरकार का प्रमुख एजेंडा होगा, चीन एक अहम भूमिका निभा सकता है।
जब लूला 2011 में सत्ता से हटे थे, ब्राजील एक कृषि सुपरपावर बनने की कगार पर था।
निवेश और चीन के बाजारों से देश की शक्तिशाली एग्री-बिजनस लॉबी ने काफी कमाई की।
यह लॉबी बोलसनारो और जलवायु परिवर्तन को लेकर उनके लापरवाह रवैये का समर्थन करती रही।
अगर लूला इस लॉबी को साथ रखना चाहें और दूसरी तरफ चीनी पैसे को भी जारी रखना चाहें तो उनके लिए अपने क्लाइमेट एजेंडे पर चलना चुनौतियों भरा हो सकता है।
भारत गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में लूला की मेजबानी कर चुका है। भारत ने बोलसोनारो के साथ भी अच्छी बॉन्डिंग बनाई थी। महामारी के दौरान ब्राजील क्वॉड-प्लस का हिस्सा था, जिसमें दक्षिण कोरिया और इजरायल भी शामिल थे। लूला के दिमाग में भारत की छवि आदर्शवादी है। हालांकि पिछले एक दशक में दुनिया में बहुत कुछ बदला है। आज चीन के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण हैं। भारत ने अमेरिका के साथ नजदीकी बढ़ाई और दूसरी तरफ रूस के साथ अपने पुराने मजबूत रिश्तों को कमजोर नहीं पड़ने दिया। भारत ने भी लैटिन अमेरिका में काफी निवेश कर रखा है। लूला के सामने अपने संबंधों को बैलेंस करने की चुनौती बनी रहेगी। एक दशक पहले भारत और ब्राजील ने रूस और चीन के बगैर IBSA भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका ग्रुप बनाया था।
बाद में रूस और चीन भी साथ आ गए और ब्रिक्स अस्तित्व में आया।
दिलचस्प बात यह है कि सितंबर 2022 में IBSA के विदेश मंत्रियों की न्यूयॉर्क में बैठक हुई और यह उम्मीद जगी कि तीन देशों का यह समूह फिर से मजबूत होगा।
भारत को दो बड़े भूराजनीतिक घटनाक्रमों– अमेरिका और चीन में तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध, को लेकर संभलकर चलना होगा। ब्राजील को भी ऐसा करना जरूरी है। फिलहाल लूला के लिए ब्राजील की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की सबसे बड़ी चुनौती है।