श्रीं एनबी रमन्ना फिलहाल देश के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हैं! भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने रिटायरमेंट के बाद जजों की सुरक्षा पर चिंता जताई है। CJI ने कहा है कि दशकों तक अपराधियों को जेल भेजने वाले जजों से रिटायरमेंट के बाद सुरक्षा की सुविधा वापस ले ली जाती है। रांची में हाई कोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों और कानून के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। हाल में जजों पर हमलों की बढ़ती वारदातों के बीच एनवी रमण का यह चिंता जाहिर करना महत्वपूर्ण है। आइए, यहां जानते हैं कि पद पर रहते हुए जजों को किस तरह की सिक्योरिटी मिलती है।
अपने प्रतिष्ठित पद के कारण CJI को आमतौर पर Z या Z+ रेंज की सुरक्षा मिलती है। उनकी सुरक्षा को उनके पूरे कार्यकाल में कभी भी डाउनग्रेड नहीं किया जाता है। जब तक कि ऐसा करने के लिए कोई अनिवार्य कारण न हो। उनके पास अपने सुरक्षा कवर को तय करने या उसका आकलन करने का भी अधिकार है। वह इसे उचित समझे जाने पर बढ़ा या घटा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों को आम तौर पर वाई सुरक्षा कवर दिया जाता है। हालांकि, यदि आवश्यक हो तो इसे Z+ तक बढ़ाया जा सकता है। जब वे लुटियंस जोन में रहते हैं, तो सुरक्षा को ठीक से समायोजित किया जाता है, लेकिन जब वे बाहर जाते हैं, तो आवश्यकताओं के अनुसार सुरक्षा बढ़ा दी जाती है। उनके पास भी विवेकाधीन शक्ति होती है।
एक राज्य के न्यायिक संगठन के प्रमुख के रूप में राज्यों के मुख्य न्यायाधीश को राज्य के मुख्यमंत्री के समान लाभ प्राप्त होते हैं। इस तरह स्थिति के आधार पर उनकी सुरक्षा का स्तर Y से Z+ तक होता है।
जिला न्यायाधीशों को आम तौर पर उनके अलग-अलग अधिकार क्षेत्र में सुरक्षा कवर के रूप में 2 से 4 हथियारबंद गार्ड मिलते हैं। सीजेएम को 1-2 हथियारबंद गार्ड प्रदान किए जाते हैं। जबकि बाकी न्यायाधीशों को आवश्यक होने पर 1 हथियारबंद गार्ड प्रदान किया जाता है। हालांकि, इस सेवा की उपलब्धता राज्य के अनुसार अलग-अलग है।
पिछले साल धनबाद के न्यायाधीश उत्तम आनंद की संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। इस मामले की सुनवाई करते हुए भी एनवी रमण और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने खरी-खरी सुनाई थी। पीठ ने कहा था कि जजों की सुरक्षा को लेकर राज्य गंभीर नहीं हैं। धमकी की शिकायतों को पुलिस और जांच एजेंसियां गंभीरता से नहीं लेती हैं। एक नया ट्रेंड चला है। आपराधिक मामलों में जब बड़े लोग शामिल होते हैं और मनमुताबिक आदेश नहीं आता है तो वे कोर्ट की छवि खराब करने लग जाते हैं। यह सब चिंताजनक है।शनिवार को जजों की सुरक्षा का मसला उठाते हुए सीजेआई दोबारा बोले। उन्होंने कहा कि राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को अमूमन उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण रिटायरमेंट के बाद भी सुरक्षा दी जाती है। विडंबना यह है कि जजों को वैसी सुरक्षा नहीं मिलती है।
जजों पर हमलों का जिक्र करते हुए एनवी रमण ने कहा, ‘क्या आप सोच सकते हैं एक जज जिसने दशकों बेंच पर सेवाएं दी हों, क्रिमिनल्स को सलाखों के पीछे भेजा हो, उसके रिटायर होते ही सभी तरह की सुरक्षा वापस ले ली जाए। जजों को बिना किसी सुरक्षा और आश्वासन के उसी समाज के लोगों के बीच रहना पड़ता है जिनमें से कई को वह दोषी ठहरा चुके होते हैं। नेताओं, नौकरशाहों पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को रिटायरमेंट के बाद ही अक्सर सिक्योरिटी मिलती रहती है।’
हाल में जजों पर हमले के मामले बढ़े हैं। झारखंड में जज की हत्या का मामला सुर्खियों में आया था। पिछले साल 28 जुलाई को उनकी हत्या कर दी गई थी। 14 दिसंबर को भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट के स्पेशल जज रहे मोहम्मद अहमद खान को धमकीभरा पत्र मिला था। पिछले साल 31 जुलाई को उन पर हमले की कोशिश की गई। इसमें उनका गनर जख्मी हो गया था। नूपुर शर्मा पर टिप्पणी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज पारदीवाला ने कहा था कि न्यायाधीशों पर उनके फैसलों के लिए व्यक्तिगत हमले करना एक खतरनाक ट्रेंड है। वह बोले थे कि व्यक्तिगत हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सीजेआई मीडिया ट्रायल पर भी बोले। उन्होंने कहा कि हाल में देखने को मिला है कि मीडिया कंगारू कोर्ट चला रही है। कई बार कुछ मसलों में अनुभवी जजों को भी फैसला करने में मुश्किल पेश आती है। मीडिया में पक्षपातपूर्ण विचार लोगों को प्रभावित करते हैं। इससे लोकतंत्र कमजोर पड़ता है। सिस्टम को नुकसान होता है। इस प्रक्रिया में जस्टिस डिलीवरी पर प्रतिकूल असर पड़ता है।’सीजेआई ने कहा कि अपनी जिम्मेदारी का उल्लंघन कर मीडिया लोकतंत्र को पीछे ले जाती है। प्रिंट मीडिया में तो फिर भी कुछ हद तक जवाबदेही है। इसके उलट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शून्य जवाबदेही दिखती है। उससे भी खराब हालात सोशल मीडिया के हैं। इसी के चलते मीडिया पर रेगुलेशन की मांग बढ़ने लगी है। उन्होंने मीडिया खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया से अपील की कि वे जिम्मेदारी से व्यवहार करें।