क्या आपको पता है कि टेलीकॉम मंत्री अश्विनी ने बीएसएनएल को लताड़ लगा दी है! केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री अश्विनी वैष्णव की खीज उनकी लताड़ में साफ दिखाई देती है। सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनल के 62 हजार कर्मियों को उन्होंने अपना रवैया बदल लेने का अल्टीमेटम दे दिया है। उन्होंने सरकार की अपेक्षाएं दो-टूक जाहिर कर दी हैं। कर्मचारियों को सुधरने या फिर बोरिया-बिस्तर समेट लेने को कहा गया है। यह कड़ा रुख दिखाता है कि अब कर्मचारियों का सरकारी एटीट्यूड कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मंत्री ने यह चेतावनी ऐसे समय दी है जब हाल में बीएसएनएल में जान फूंकने के लिए सरकार ने टेलीकॉम कंपनी में 1,64,000 करोड़ रुपये की नई पूंजी डाली है। वह पहले भी कंपनी को जिंदा रखने के लिए करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा इसमें जलाती आई है। 2019 में रिवाइवल प्लान के तहत सरकार ने बीएसएनल और एमटीएनएस दोनों में करीब 69 हजार करोड़ रुपये की पूंजी झोंकी थी। हालांकि, इसके कुछ खास नतीजे नहीं दिखे। आज भी रिलांयस जियो और एयरटेल जैसे निजी कंपनियों की सेवाएं लेना लोग पसंद कर रहे हैं। कभी टेलीकॉम सेक्टर में एकछत्र राज करने वाली कंपनी किसी तरह से ऑपरेशन चला पा रही है। कंपनी की इस दुर्दशा के पीछे कर्मचारियों का निखट्टूपन एक बड़ी वजह रहा है।अश्विनी वैष्णव ने हाल में अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। इसी में उन्होंने कर्मचारियों को खरी-खरी सुनाई। बीएसएनएल स्टाफ को उन्होंने चेतावनी दे डाली है कि अगर वे अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं तो रिटायरमेंट लेकर घर पर बैठें। उनसे टेलीकॉम सेक्टर में बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए तैयार रहने के लिए कहा गया है। वैष्णव ने कहा है जो काम नहीं करना चाहते हैं वे वीआरएस ले लें। उन्होंने एक एक्सचेंज का उदाहरण देते हुए कहा, ‘चुल्लू भर पानी में डूबने का मन करे, इतनी गंदगी थी।’ वैष्णव ने हिदायत दे दी है कि इस कुप्रबंधन को शीर्ष नेतृत्व को मैनेज करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो कैंची चलेगी।
क्या है मायने
वैष्णव की वॉर्निंग अपने आप में कई तरह के संकेत देती है। यह बताती है कि कंपनी को जिंदा रखने क लिए अनंतकाल तक सरकार पीछे नहीं खड़ी रह सकती है। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार अब बीमारू कंपनियों में लगातार निवेश करते रहने के पक्ष में नहीं है। अगर इन कंपनियों ने खुद अपनी हालत नहीं सुधारी तो सरकार से भी वे बहुत अपेक्षा नहीं करें। यह प्रतिस्पर्धा का दौर है और सरकारी कंपनियां इससे अलग नहीं रह सकती हैं।
सैलरी पर होने वाले भारी-भरकम खर्च में कटौती करने के लिए बीएसएनएल को हाल में बड़ी संख्या में कर्मचारियों को रिटायर करना पड़ा था। इसके लिए वॉलेंटरी रिटायरमेंट स्कीम यानी VRS लाई गई थी। अपने कुल खर्चों का 70 फीसदी कंपनी कर्मचारियों की सैलरी पर करती थी। इसके उलट इस मद पर निजी टेलीकॉम कंपनियों का खर्च करीब 5 फीसदी है। वीआरएस का मकसद वेतन के बोझ को कम करना था। यह स्कीम काम भी की। बीएसएनएल के करीब 50 फीसदी कर्मचारियों ने इसे अपनाया। इससे वेज बिल 13,600 करोड़ रुपये से घटकर करीब 6,600 करोड़ रुपये पर आ गया।
जहां तक सेवाओं की बात है तो जब जियो और एयरटेल 4जी सेवाएं दे रही थीं, तब बीएसएनएल 2जी के दौर में अटकी थी। 4जी सेवाएं देने के लिए उसे आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की जरूरत थी। इसके लिए टेंडर भी निकला। हालांकि, पात्रता के लिए ऐसे पैरामीटर रख दिए गए कि इसमें बोली लगाना मुश्किल हो गया। इस बीच ब्रॉडबैंड और फिक्स्ड लाइन से कंपनी की कमाई लगातार गिरती गई। कंपनी ने वित्त वर्ष 2019-20 में करीब 15,500 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया था। बेशक, इसके बाद के वर्ष यानी 2020-21 में यह घटकर 7400 करोड़ रुपये रह गया। लेकिन, उसके पीछे दूसरे कारण थे। कंपनी का परफॉर्मेंस इसकी वजह नहीं था।वैष्णव की वॉर्निंग अपने आप में कई तरह के संकेत देती है। यह बताती है कि कंपनी को जिंदा रखने क लिए अनंतकाल तक सरकार पीछे नहीं खड़ी रह सकती है। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार अब बीमारू कंपनियों में लगातार निवेश करते रहने के पक्ष में नहीं है। अगर इन कंपनियों ने खुद अपनी हालत नहीं सुधारी तो सरकार से भी वे बहुत अपेक्षा नहीं करें। यह प्रतिस्पर्धा का दौर है और सरकारी कंपनियां इससे अलग नहीं रह सकती हैं।
सैलरी पर होने वाले भारी-भरकम खर्च में कटौती करने के लिए बीएसएनएल को हाल में बड़ी संख्या में कर्मचारियों को रिटायर करना पड़ा था। इसके लिए वॉलेंटरी रिटायरमेंट स्कीम यानी VRS लाई गई थी। अपने कुल खर्चों का 70 फीसदी कंपनी कर्मचारियों की सैलरी पर करती थी। इसके उलट इस मद पर निजी टेलीकॉम कंपनियों का खर्च करीब 5 फीसदी है। वीआरएस का मकसद वेतन के बोझ को कम करना था। यह स्कीम काम भी की। बीएसएनएल के करीब 50 फीसदी कर्मचारियों ने इसे अपनाया। इससे वेज बिल 13,600 करोड़ रुपये से घटकर करीब 6,600 करोड़ रुपये पर आ गया।