अमेरिका ने पूरी दुनिया भर में अपना दबदबा कायम कर रखा है! दुनियाभर में तनावपूर्ण माहौल के बीच मिसाइलों, फाइटर जेट और ड्रोन विमानों से रक्षा के लिए भारत से लेकर इजरायल तक पानी की तरह से पैसा बहा रहे हैं। भारत ने अरबों डॉलर खर्च करके रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम लिया है, वहीं पाकिस्तानी सेना ने चीनी मिसाइलों पर दांव लगाया है। इस बीच विशेषज्ञों का कहना है कि ये सभी एयर डिफेंस सिस्टम आने वाले समय में ‘बेकार’ हो जाएंगे और उनकी जगह लेजर हथियार लेगा। लेजर हथियारों के मामले में अमेरिका का दबदबा रहा है लेकिन अब इजरायल, रूस और चीन भी तेजी से इस अदृश्य हथियार को बनाने पर अपना फोकस लगा दिए हैं। हाल ही में इजरायल ने लेजर वेपन के सफल परीक्षण का दावा किया था। आइए जानते हैं क्या लेजर वेपन, अमेरिका में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में डायरेक्टेड एनर्जी वेपन पर काम शुरू हुआ था। इसके तहत लेजर आधारित मिसाइल डिफेंस सिस्टम बनाने पर जोर दिया गया। इसका नतीजा यह रहा कि अमेरिका लेजर हथियारों के क्षेत्र में आगे हो गया। साल 1991 के खाड़ी युद्ध, ईरान की बढ़ती मिसाइलों और साल 2006 के लेबनान युद्ध ने इजरायल को कई लेयर वाले एयर डिफेंस सिस्टम को बनाने के लिए मजबूर किया। इसके बाद इजरायल ने आयरन डोम, स्लिंग और एरो सिस्टम का इस्तेमाल करता है। आयरन डोम सिस्टम को कम दूरी के रॉकेट से बचाव के लिए बनाया गया है। इजरायल का दावा है कि आयरन डोम करीब 90 फीसदी तक अपने लक्ष्य में सफल रहता है। हालांकि इस पर संदेह भी जताया जाता है। इजरायल को यह काफी महंगा पड़ रहा था और वह अब लेजर आधारित डिफेंस सिस्टम बनाने में जुट गया है।
डिफेंस सिस्टम बनाने का इतिहास
इजरायल का David’s Sling लेजर आधारित एयर डिफेंस सिस्टम है। इसे कम दूरी की मिसाइलों, रॉकेट और क्रूज मिसाइलों को 15 किमी ऊंचाई पर 45 से 300 किमी की दूरी पर मार गिराने के लिए डिजाइन किया गया है। आयरन डोम के विपरीत डेविड स्लिंग में कोई विस्फोटक इस्तेमाल नहीं होता है। यह अमेरिका के थाड सिस्टम की तरह से अपने लक्ष्य को तबाह करता है। आयरन डोम की एक मिसाइल का खर्च जहां 50 हजार डॉलर है वहीं थाड सिस्टम की एक मिसाइल पर 10 लाख डॉलर का खर्च आता है। रूस का लंबे समय से एयर डिफेंस सिस्टम बनाने का इतिहास रहा है। सोवियत संघ के इंजीनियरों ने 1950 के दशक से ही इस पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1961 में सफलतापूर्वक एक मध्यम दूरी की मिसाइल को मार गिराया था। अभी रूस एस-300, एस-400 और एस-500 पर भरोसा कर रहा है।
चीन भी रूस की तरह से एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करता है। चीन के पास एस-400 के अलावा अपना एचक्यू-9 एयर डिफेंस सिस्टम है। एचक्यू-9 एस-300 और पेट्रियाट सिस्टम पर आधारित है। दुनिया में अब हाइपरसोनिक मिसाइलों का दौर तेज हो गया है जिसका कोई तोड़ नहीं है। इनसे निपटने के लिए अब वैज्ञानिक लेजर वेपन की ओर देख रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एस-400 जैसे पीछा करने वाले सिस्टम तत्काल खत्म नहीं होने जा रहे हैं लेकिन उनकी मदद के लिए अब लेजर वेपन जैसे हथियार महत्वपूर्ण होते जाएंगे। ये लेजर हथियार मिसाइलों की बारिश, ड्रोन सेना और हाइपरसोनिक मिसाइलों को उनके रास्ते में ही तबाह कर सकेंगे।
अमेरिका, इजरायल, रूस और चीन ये चारों ही देश अब लेजर हथियारों का प्रोटोटाइप विकसित करने में सफल हो गए हैं जो इस तरह की भूमिका को निभा सकते हैं। हालांकि लेजर हथियारों की अपनी समस्या है। इन्हें ऊर्जा की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और शुरुआती खर्च बहुत ज्यादा होता है। एक और दिक्कत यह है कि मिसाइलें जहां अपने लक्ष्य को तुरंत बर्बाद कर देती हैं, वहीं लेजर को कुछ सेकंड के लिए लक्ष्य पर फोकस करना पड़ता है ताकि उसे नष्ट किया जा सके।अमेरिका, इजरायल, रूस और चीन ये चारों ही देश अब लेजर हथियारों का प्रोटोटाइप विकसित करने में सफल हो गए हैं जो इस तरह की भूमिका को निभा सकते हैं। हालांकि लेजर हथियारों की अपनी समस्या है। इन्हें ऊर्जा की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और शुरुआती खर्च बहुत ज्यादा होता है। एक और दिक्कत यह है कि मिसाइलें जहां अपने लक्ष्य को तुरंत बर्बाद कर देती हैं, वहीं लेजर को कुछ सेकंड के लिए लक्ष्य पर फोकस करना पड़ता है ताकि उसे नष्ट किया जा सके। तूफानी रफ्तार से आ रही मिसाइलों पर लेजर को टिकाए रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बाद भी अत्याधुनिक लेजर तकनीक कम खर्च वाली और कारगर होगी। लेजर वेपन के बाद भी एस-400 जैसे हथियारों की छुट्टी तुरंत नहीं हो जाएगी।तूफानी रफ्तार से आ रही मिसाइलों पर लेजर को टिकाए रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बाद भी अत्याधुनिक लेजर तकनीक कम खर्च वाली और कारगर होगी। लेजर वेपन के बाद भी एस-400 जैसे हथियारों की छुट्टी तुरंत नहीं हो जाएगी।