एक समय ऐसा था जब लाल इमली कपड़ों का नाम हुआ करता था! कुछ दशक पहले की तो बात है। घर में लाल इमली के वूलन कपड़े लाने पर गर्व से फूले पापा यह डायलॉग मारते थे। इसी लाल इमली की लोकप्रियता ने कानपुर को ‘मैनचैस्टर ऑफ ईस्ट’ बना दिया। एक जमाने में वूलेन कपड़ों का बस यही ब्रांड था। इस ब्रांड की धाक सात समंदर पार सुनाई देती थी। इसे बनाने वाली मूल कंपनी का नाम था कॉनपोर वूलेन मिल्स। लेकिन, यह ब्रांड इतना ताकतवर और महशूर था कि कानपुर में यह लाल इमली मिल के नाम से चर्चित हो गई। इसके पास ही एक ऊंचा क्लॉक टावर है। किसी जमाने में कारखाने के मजदूरों के लिए यहीं से अलार्म बजता था। इस मिल ने हजारों कामगारों को रोजी दी। ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन की पहचान थी लाल ईटों से बनी यह बिल्डिंग। देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मनाएगा तो लाल इमली बस यादों में रह जाएगी। सदियों पुरानी इस मिल पर ताला लगने का रास्ता साफ हो गया है! खबरों के मुताबिक, लोक उद्यम विभाग ने बीआईसीएल को बंद करने के लिए कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है। इसके साथ ही नेशनल टेक्सटाइल्स कॉरपोरेशन यानी एनटीसी को भी बंद किया जाएगा। अंतर-मंत्रालयी परामर्श के बाद इस मामले को कैबिनेट में जल्द ले जाया जा सकता है। ये सरकारी उद्यम ‘बीमारुओं’ में शामिल हैं। कपड़ा मंत्रालय के अधीन इनका कामकाज आता है।
बन गई ब्रांड
लाल इमली मिल आजादी से पहले की है। ब्रितानी उद्योगपति सर एलेक्जैंडर मैकरॉबर्ट ने पब्लिक लिमिटेड कंपनी ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (BICL) की नींव रखी थी। यह बात 1920 की है। कंपनी लाल इमली के अलावा धारीवाल नाम के ब्रांडों से ऊनी कपड़ों की मैन्यूफैक्चरिंग करती थी। कंपनी की मिलें पूरे भारत के लिए सोर्सिंग का केंद्र बन गई थीं। इसके चलते कानपुर को पूरब का मैनचेस्टर कहा जाने लगा। कभी यहां डिमांड को पूरा करने के लिए 24 घंटे काम चलता था। 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार की पॉलिसी के तहत बीआईसीएल का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसके प्रोडक्टों को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया गया था। तब से कंपनी घाटे में है। इसके चलते 1991 में इसे औद्योगिक और पुनर्गठन बोर्ड में भेजा गया। 1992 में यह कंपनी बीमारू घोषित कर दी गई।
इस उद्यम में जान फूंकने की कोशिशें बराबर होती रही हैं। 2001 में सरकार ने 211 करोड़, 2005 में 47.35 करोड़ और 2011 मे 338.04 करोड़ रुपये की पूंजी डालकर कंपनी को उबारने की कोशिश की। लेकिन, नजीते अपेक्षा के अनुसार नहीं आए। नीति आयोग ने 2017 में इसे बंद करने का सुझाव दिया था। साथ ही कहा गया था कि मिल को बंद करने के बाद ही कर्मचारियों के बकाये और लंबित सैलरी का भुगतान हो। बीआईसीएल ने वित्त वर्ष 2020-21 में 106 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया था। इसके 1,209 कर्मचारियों को अपने भुगतान के सेटेलमेंट का इंतजार है।
लाल ईंटों से बने बीआईसीएल के पास एक क्लॉक टावर है। इसकी ऊंचाई 128 फीट है। एक जमाने में कारखाने के मजदूरों के लिए यहां से अलार्म बजता था। दस हजार कामगार मिल में काम करते थे। मिल अलग-अलग शिफ्टों में 24 घंटे चलती थी। हूटर की आवाज दो किलोमीटर तक सुनाई देती थी। यह क्लॉक टावर लोगों को समय की याद दिलाता था। लाल इमली अपने वूलेन क्लॉथ के लिए मशहूर थी। ऑस्ट्रेलिया की मोरिनो भेड़ के बाल से बनने वाले वूल कपड़े बहुत गरम होते थे। कहा जाता था कि ठंड में भी इन्हें पहनने पर लोगों को पसीना आ जाता था।
बताया जाता है कि राजीव गांधी का लाल इमली से खास लगाव था। वह इसकी बनी लोई पहना करते थे। उनकी कई ऐसी तस्वीरें हैं जिन्हें वह यह लोई पहने हुए हैं। लाल इमली को स्पेन में इंटरनेशनल ग्लोबल अवॉर्ड मिला था।
नई पब्लिक सेक्टर पॉलिसी के अनुसार, लोक उद्यम विभाग को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। उसी पर उन सेंट्रल पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स की पहचान करने का जिम्मा होता है जिन्हें बंद किया जाना है। इसके लिए वह आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी से अनुमति लेता है।बताया जाता है कि राजीव गांधी का लाल इमली से खास लगाव था। वह इसकी बनी लोई पहना करते थे। उनकी कई ऐसी तस्वीरें हैं जिन्हें वह यह लोई पहने हुए हैं। लाल इमली को स्पेन में इंटरनेशनल ग्लोबल अवॉर्ड मिला था।