जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?
यह मुहावरा तो आपने बचपन में बखूबी ही सुना होगा ,इसका सही अर्थ हमारे देश के प्रधानमंत्री ने हमें बताया है। जी हां , गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाएंगे, यह इस मुहावरे से काफी मिलता-जुलता सा वाक्य है। दरअसल श्री नरेंद्र मोदी यानी हमारे माननीय प्रधानमंत्री लगातार दूसरी बार देश की प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । जब 2014 में उनका आगमन हुआ था, जिस तरीके से हुआ था साथ ही जिस तरीके से उन्होंने खुद को तथा हमारी गोदी मीडिया ने हमें उनकी छवि दिखाई थी उसे देश के हर एक व्यक्ति को( जो मोदी भक्त थे) या जो उनकी बातों से इनफ्लुएंस हुए थे उनके मन में एक बात आई थी की यह गरीबों का मसीहा बनेगा, यह व्यक्ति हमारे देश से भुखमरी ,गरीबी अशिक्षा ,प्रदूषण दूर कर हमारी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। 2014 में उनकी सरकार पहली बार सत्ता में आई उन्होंने कुछ अच्छे कार्य भी किए कुछ परियोजनाएं शुरू की जिसमें से एक अगर आपको याद हो तो गंगा के लिए भी एक परियोजना लाई गई थी । जिसमें कहा गया था कि वह गंगा की सफाई एवं गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास को आगे बढ़ाएंगे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मोदी जी से पहले भी गंगा की स्वच्छता के लिए कई बार कई प्लान लाए गए थे जिनमें से एक 1985 से 2000 के बीच गंगा एक्शन प्लान गंगा को स्वच्छ करने की एक योजना के तहत बनाई गई थी । जिसमें लगभग 1000 करोड रुपए खर्च किए जा चुके थे लेकिन गंगा अभी भी प्रदूषण की मार झेल रही थी ।
बात 2011 की करें तो गंगा के प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद कोर्ट ने अनेक बार दिशानिर्देश जारी किए लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। कई सरकारें आई, कई मुख्यमंत्री बने साथ ही कई प्रकार से गंगा को स्वच्छ करने के लिए प्लान बनाए गए लेकिन नतीजा कुछ भी ना निकला । 2011 से एक वर्ष पहले ही यानी 2010 में इलाहाबाद कोर्ट ने यूपी तथा उत्तराखंड सरकार को गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ने और गंगा के आसपास पॉलिथीन को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था । लेकिन इन क्षेत्रों में ना तो प्रतिबंध लगाया गया और ना ही इस आदेश का पालन हो पाया। इलाहाबाद गंगा के काफी निकट है जहां लगभग 146 औद्योगिक उद्योग स्थित है जिनमें तेल शोधक कारखाने, चमड़ा उद्योग ,चीनी मिल ,पेपर फैक्ट्री ,फर्टिलाइजर आदि शामिल है । इनसे निकलने वाले या कहिए इन फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट के मुख्य रूप से हाइड्रोक्लोरिक एसिड, मरकरी, भारी धातु तथा कीटनाशक जैसे खतरनाक रसायन सीधे गंगा में विसर्जित होते हैं। इससे निकलने वाला कचरा और रसायन युक्त गंदा पानी गंगा में गिर कर इसके पारिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचाता है । गंगा किनारे होने वाले दाह संस्कार श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित फूल और पॉलिथीन भी गंगा को बीमार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
गंगा की एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति
नमामि गंगे परियोजना के बारे में बहुत चर्चाएं हुई थी । बहुत सारी भाषण बाजी हुई थी तथा यह बताया गया था कि इस परियोजना से गंगा को पूर्ण तरीके से स्वच्छ बना दिया जाएगा । यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी प्राथमिकता वाली महत्वपूर्ण परियोजना में से एक थी क्योंकि इसकी जिम्मेदारी स्वयं हमारे प्रधानमंत्री ने ली थी । अभी की बात की जाए तो इस योजनाओं का केंद्र सरकार के 7 मंत्रालय के साख दांव पर लगी है ।
एक रिपोर्ट की मानें तो नमामि गंगे परियोजना के तहत 97 शहर गंगा की मुख्य धाराओं के किनारे चिन्हित किए गए हैं । इन शहरों की 154 जल मल शोधन क्षमता है जबकि 1525 एमएलडी जल मल शोधन परियोजना में से केवल 50 छह शहरों में 189 परियोजना के पहले चरण में है जबकि असल में गंगा में रोजाना 120000 मिलियन लीटर प्रदूषित जल मल उत्सर्जित होता है । लेकिन इस समय तक सिर्फ 400 मिलीलीटर ही का शोधन हो पाता है। जहां तक ऑनलाइन प्रदूषण निगरानी संयंत्र लगवाने का सवाल है वह काम भी फाइलों में ही उलझा है। कहा जा रहा है कि नमामि गंगे परियोजना का असर दिखने लगा है जबकि असलियत कुछ और है । यह इस परियोजना से कोसों दूर मालूम पड़ती है इसका खुलासा एनजीटी द्वारा गठित संयुक्त समिति सीवेज शोषण प्लांट के मायने करने के बाद बीते दिनों किया गया है। बाकी जगहों की बात छोड़िए बात करते हैं ,नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी की यहां पर लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं साथ ही उनका कहना तथा दावा यह है कि भले ही कहा जा रहा हो कि वाराणसी में गंगा साफ हो गई है। पर हालात बद से बदतर है । लोगों ने कहा कि पहले गर्मी के दिनों में गंगा घाटों से दूर होती थी लेकिन अब तो सर्दी के मौसम में भी ऐसा हो रहा है। जगह-जगह गंगा में गाद है घाटों में सुधार का दावा बिल्कुल गलत है। आजकल गंगा सफाई के नाम पर नौटंकी चल रही है और धीरे-धीरे गंगा अपनी जान गवाते दिख रही है। उत्तर प्रदेश के कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी ,साथ ही बिहार के पटना, मुंगेर और भागलपुर , पश्चिम बंगाल के गयासपुर और बजबज में गंगा के पानी की गुणवत्ता किसी भी स्तर पर मापदंडों पर खरी नहीं उतर सकी है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार इसकी मिसाल दी जा सकती है। जिसने देश की जनता के सामने मोदी सरकार के दावों की पोल खोल कर रख दी है बता दें कि एनएमसीजी केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधीन आती है । इस पर ही नमामि गंगे मिशन निर्भर करता है। जिससे इस बात का खुलासा हुआ है कि सरकार को ₹41,000,000 का घाटा हो चुका है । यही नहीं सीनियर स्पेशलिस्ट के पदों पर निर्धारित 374006 7000 वेतन नामा पर डेढ़ से ₹200000 पर भर्तियां की गई पर इसका असर यह देखने को मिला कि ना तो उन्होंने सलाना रिपोर्ट तैयार की साथ ही गंगा मॉनिटरिंग केंद्र की स्थापना का सवाल भी आज तक लटका ही हुआ है।
बहती गंगा में हाथ धोती सरकार
जिस गंगा को हम राष्ट्रीय धरोहर कहते हैं, जो भारत की राष्ट्र नदी है । उसका बढ़ता प्रदूषण अब हम लोग के लिए चिंता का सबब बना हुआ है क्योंकि गंगा के प्रदूषण का किस्सा अभी भी अनसुलझा है । बता दें कि अफसोस इस बात का है कि गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे प्रसिद्ध स्थलों पर ना कुड़ा तथा अवशिष्ट पदार्थ निस्तारण की कोई स्थाई व्यवस्था है ,ना ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तथा सीवर लाइन जैसी कोई व्यवस्था है । बरसात के समय में यह और भी दयनीय हो जाता है क्योंकि लोगों की दिनचर्या में आने वाले वस्तु जो लोग इधर-उधर फेंक देते हैं वह सारे पदार्थ बरसात के समय बह कर सीधे नदियों में समा जाती है। चलिए आपको एक रिपोर्ट के द्वारा समझाते हैं कि आखिर सरकार ने जो पैसा खर्च कर रही हैं वह जा कहां रहा है , क्योंकि गंगा की स्वच्छता का सवाल अभी भी वैसा ही बना हुआ है जैसा वह पहले था ।ना तो गंगा स्वच्छ हुई है और ना उसका कगार पर है कि गंगा स्वच्छ हो सके । बीते कुछ साल के दौरान संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया था कि 31 मार्च 2017 तक राष्ट्रीय गंगा मिशन में अभी तक 21 33 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं । जिस की नाकामी सबके सामने है उसी रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया है कि आम बजट में 63 फ़ीसदी धनराशि जो निर्धारित की गई थी वह खर्च हुई है। अभी तक नमामि गंगे परियोजना के नाम पर 6705 करोड़ में से 1665.41 करोड़ खर्च हो चुके हैं। 2014 में जब यह परियोजना आई थी तब इस परियोजना के लिए 2137 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की गई थी 2017 तक इस पर 170 करो रुपए ही खर्च हो पाए पर इस खर्च का कोई भी असर देखने को नहीं मिला । इसके बारे में जब सरकार से सवाल किया गया तो वह मौन दिखी साथ ही यह पैसे कहां गए इसका खुलासा आज तक नहीं हुआ । यह सरकार की लापरवाही साथ ही नजरअंदाजी का एक नतीजा प्रतीत होता है ।जो इस बदहाली का जीता जागता मिसाल है । आज नमामि गंगे साथ ही अन्य कई योजना जो नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू की गई थी । उसके कई साल पूर्ण हो चुके हैं पर बदहाली का यह नतीजा आज भी सामान्य है।
कैसे बनेगी गंगा स्वच्छ ?
बता दे कि गंगा में मछलियों की लगभग 140 प्रजातियां पाई जाती हैं । हाल ही में हुए अध्ययन में पता चला है कि गंगा को स्वच्छ बनाने में सहायक मछलियों की अनेक प्रजातियां प्रदूषण के कारण विलुप्त हो चुके हैं । वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार गंगा विश्व की उन 10 नदियों में से एक है।जिन पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है लेकिन गंगा अभी भी इस प्रदूषण की मार झेल रही है। प्रदूषण के कारण आज भी है जा पीलिया, पेचिश और टाइफाइड जैसी बीमारियां बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 80 फ़ीसदी स्वास्थ्य की समस्याएं और एक तिहाई मौतें जल संबंधित होते हैं । सरकार की तथा जल संसाधन सचिव की मानें तो गंगा को तथा नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए अभी देश में 44 परियोजनाएं चल रही हैं । और 28 विभिन्न चरणों में है इसे निविदा किया गया है। साथ ही नमामि गंगे परियोजना के तहत 97 मुख्यधारा की शहरों में इस परियोजना को चलाया जा रहा है। पर इसका असर नाकाम है भारत जैसे देश में माता कहलाने वाली गंगा की कहानी बहुत पौराणिक है । साथ ही इसे बहुत पवित्र माना जाता है पर प्रदूषण के कारण उसका अस्तित्व खतरे में मालूम पड़ रहा है सरकार भले ही परियोजनाएं बना दे उस पर काम या करवा दे पर जब तक हम आम इंसान खुद ही प्रदूषण को संतुलित करना नहीं सीखेंगे साथी पॉलिथीन जैसे सामान चमड़ा एवं मैला गंगा में बहा ना नहीं छोड़ेंगे तब तक गंगा स्वच्छ नहीं बनेगी क्योंकि यह सिर्फ एक व्यक्ति का काम नहीं है । इसकी जिम्मेदारी पूरे देश पर है साथ ही हमारे सरकार पर भी है।गंगा
साफ-सुथरी बने और उसके आसपास का वातावरण भी स्वच्छ रहे इसके लिए अब हमें गंगा तट पर अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ों को रोपना होगा ताकि गंगा को स्वच्छ बनाया जा सके क्योकि गंगा हमसे है और हम गंगा से हैं।
अंत में मैं यही कहूंगी कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा ।।इसका अर्थ है कि लाखों रुपए गंगा की स्वच्छता पर लगाए जा चुके हैं ऐसा मोदी सरकार या हमारी गोदी मीडिया कह रही है पर उसका असर अभी तक देखने को नहीं मिला है।