आखिर चीन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है हेनरी किसिंजर का दौरा?

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FILE PHOTO: Former U.S. Secretary of State Henry Kissinger speaks during a meeting with Chinese Foreign Minister Wang Yi (not pictured) at the Great Hall of the People in Beijing, China November 22, 2019. REUTERS/Jason Lee/Pool/File Photo

हाल ही में हेनरी किसिंजर चीन के दौरे पर पहुंचे हुए थे! अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे हेनरी किसिंजर ने चीन का दौरा किया है। किसिंजर की वर्तमान में उम्र 100 साल है। उनके बीजिंग पहुंचने पर चीन के शीर्ष अधिकारियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया। किसिंजर वर्तमान में अमेरिका की राजनीति में किसी भी पद पर नहीं हैं। इसके बावजूद उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बाद नंबर दो नेता समझे जाने वाले वांग यी और चीन के विवादित रक्षा मंत्री ली शांगफू से मुलाकात की। ली शांगफू पर अमेरिका ने खुद प्रतिबंध लगाया हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि चीन 100 साल के हो चुके एक पूर्व अमेरिकी राजनयिक की इतनी खातिरदारी क्यों कर रहा है। इसे समझना है तो आपको 52 साल पुराना इतिहास जानना होगा। आज से 52 साल पहले हेनरी किसिंजर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे और रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति। वही रिचर्ड निक्सन जिन्होंने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए अपशब्द कहे थे। हेनरी किसिंजर का भी भारत विरोध किसी से छिपा नहीं है। इनके ही सुझाव पर राष्ट्रपति निक्सन ने 1971 युद्ध के दौरान भारत के खिलाफ अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा भेजा था। खैर, बात हेनरी किसिंजर और चीन की कर लेते हैं। 1970 के दशक में अमेरिका में हेनरी किसिंजर की तूती बोलती थी। उन्हें अमेरिका का जेम्स बॉन्ड कहा जाता था। हेनरी किसिंजर 20 जनवरी 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने थे।

राष्ट्रपति निक्सन ने किसिंजर को पद संभालते ही चीन के साथ संपर्क स्थापित करने के काम में लगा दिया। उन दिनों निक्सन दूसरी बार राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान चीन की तारीफ करते नहीं थकते थे। उन्होंने बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति और एक उम्मीदवार के रूप में कहा था कि चीन के साथ जुड़ने से अमेरिका और दुनिया को फायदा होगा। उन्होंने तब दलील दी थी कि चीन का आकार और महत्व इतना ज्यादा है कि उससे जुड़ने पर सबका फायदा है। तब निक्सन ने चीन को तत्कालीन सोवियत संघ वर्तमान रूस के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंदी के तौर पर भी देखा था।

अपने राष्ट्रपति पद के पहले दिन से ही उन्होंने चीन के नेताओं को यह संकेत देना चाहा कि वह बातचीत के इच्छुक हैं। इसके लिए अमेरिकी प्रशासन ने पेरिस, वारसॉ, रोमानिया और पाकिस्तान के नेताओं के माध्यम से चीन को निजी संकेत भेजे। इसके परिमास्वरूप अंत में 9 जुलाई 1971 को निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर की बीजिंग की एक गुप्त यात्रा हुई। यह यात्रा इतनी गुप्त थी कि किसिंजर पहले पाकिस्तान पहुंचे और वहां से उन्होंने बीजिंग के लिए उड़ान भरी। इस दौरान किसिंजर तीन दिनों तक चीन के शीर्ष नेताओं से मिले। 11 जुलाई 1971 को किसिंजर चीन से वापस अमेरिका रवाना हुए। चीन में हुई बैठकों में यह सहमति बनी कि राष्ट्रपति निक्सन चीन का दौरा करेंगे और विदेश नीति को नया आकार देंगे।

1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर पहुंचे। इसे उस समय अमेरिका की सबसे बड़ी रणनीतिक और कूटनीतिक पहल माना गया था। यह पहली बार था, जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति चीन के दौरे पर पहुंचा। तब निक्सन ने चीन के तीन शहरों का दौरा करते हुए सात दिन बिताए थे। इस दौरे ने अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक और राजनयिक संबंधों की स्थापना की। इससे पहले अमेरिका और चीन में किसी भी तरह के संबंध नहीं थे। इसी यात्रा के कारण साल 1979 में अमेरिका और चीन के पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित हुए। उस समय तक अमेरिका, चीन को भाव न देकर ताइवान को असली चीन मानता था। लेकिन, इस यात्रा के जरिए अमेरिका ने चीन की एक चीन नीति को स्वीकार कर लिया।

जब 1949 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने मुख्य भूमि चीन पर सत्ता हासिल कर ली और चांग काई शेक के कुओमितांग तो ताइवान द्वीप पर धकेल दिया। तब अमेरिका ने चीनी गणराज्य आरओसी के रूप में ताइवान को असली चीन का मान्यता दी थी। इसके बाद जब-जब चीन ने ताइवान पर हमले की कोशिश की, तब-तब अमेरिका दोनों देशों के बीच में खड़ा होता रहा। एक तरह से चीन के खिलाफ ताइवान की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी अमेरिका ने ले रखी थी। लेकिन, 1968 आते-आते अमेरिका की विदेश नीति में बड़ा बदलाव हुआ। 1968 में राष्ट्रपति के रूप में अपने चुनाव से पहले ही पूर्व उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पीआरसी वर्तमान चीन के साथ एक नया संबंध स्थापित करने का संकेत दिया था। इसके बाद जब वह सत्ता में आए तो इन्हीं हेनरी किसिंजर को चीन को मनाने के काम में लगा दिया था।