आखिर ईरान के बंदरगाह का विकल्प क्यों ढूंढ रहा है भारत?

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वर्तमान में भारत ईरान के बंदरगाह का विकल्प ढूंढ रहा है! भारत के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास वाला प्रोजेक्ट अब फेल होता नजर आ रहा है। यही कारण है कि भारत अब किसी दूसरे बंदरगाह के इस्तेमाल के लिए नजरें गड़ाए बैठा है। इस बंदरगाह का इस्तेमाल भारतीय शिपमेंट को तेजी से यूरोपीय देशों में भेजने के लिए किया जाएगा। चाबहार को भी भारत ने इसी सुविधा के लिए विकसित किया था, लेकिन बदलते भूराजनीतिक हालात के कारण चाबहार से व्यापार अब संभव नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग्रीस यात्रा के दौरान पीरियस बंदरगाह को लेकर बातचीत की जा सकती है। पीरियस बंदरगाह भूमध्य सागर के किनारे स्थित है। यह भारत के लिए यूरोप में प्रवेश द्वार के तौर पर काम कर सकता है। भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को यूरोपीय देशों में शिपमेंट को पहुंचाने के लिए विकसित किया था। चाबहार बंदरगाह अरब सागर के किनारे स्थित है। यहां से शिपमेंट के सामान को ईरान और आर्मेनिया के जंगेजुर कॉरिडोर के रास्ते यूरोपीय देशों तक सड़क मार्ग से भेजने पर काम चल रहा था। बता दें कि पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, 155एमएम की होवित्जर, स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार और कई दूसरे हथियार शामिल हैं। उधर, ईरान ने भी यूरोपीय देशों से जमीनी संपर्क कटने के डर से अजरबैजान को अंजाम भुगतने की धमकी दी है। ऐसे में अगर ईरान और आर्मेनिया की सीमा पर अजरबैजान के साथ युद्ध शुरू होता है तो यह भारतीय व्यापार के लिए अच्छा नहीं होगा। भारत ने कई शिपमेंट की खेप इस रास्ते से यूरोपीय देशों को भेजी भी है। लेकिन, ताजा हालात भारतीय व्यापार के लिए सुरक्षित नहीं है। आर्मेनिया के जंगेजुर कॉरिडोर पर अजरबैजान कब्जे की प्लानिंग कर रहा है। अजरबैजान की सेना आर्मेनिया का कनेक्शन ईरान से काटना चाहती है। ऐसे में भारत के सामान से लदी गाड़ियां ईरान में फंस जाएंगी।

अजरबैजान पाकिस्तान का दोस्त है। यह देश इस्लाम के नाम पर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है। अजरबैजान का एक और दोस्त तुर्की भी पाकिस्तान का दोस्त है। तुर्की भी नहीं चाहेगा कि भारत, आर्मेनिया के रास्ते यूरोपीय देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करे। अजरबैजान की इन्हीं हरकतों के खिलाफ भारत ने आर्मेनिया को हथियार बेचे हैं, जिसमें पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, 155एमएम की होवित्जर, स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार और कई दूसरे हथियार शामिल हैं। उधर, ईरान ने भी यूरोपीय देशों से जमीनी संपर्क कटने के डर से अजरबैजान को अंजाम भुगतने की धमकी दी है। ऐसे में अगर ईरान और आर्मेनिया की सीमा पर अजरबैजान के साथ युद्ध शुरू होता है तो यह भारतीय व्यापार के लिए अच्छा नहीं होगा।

भारत की कोशिश चाबहार बंदरगाह के जरिए भारतीय शिपमेंट को तेजी से अफगानिस्तान तक भेजने की भी थी। भारत चाबहार से अफगानिस्तान तक सड़क और रेल लाइन निर्माण की भी तैयारी कर रहा था। इससे भारतीय माल को अफगानिस्तान तक जाने के लिए पाकिस्तान की मंजूरी का इंतजार नहीं करना पड़ता।पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, 155एमएम की होवित्जर, स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार और कई दूसरे हथियार शामिल हैं। उधर, ईरान ने भी यूरोपीय देशों से जमीनी संपर्क कटने के डर से अजरबैजान को अंजाम भुगतने की धमकी दी है। ऐसे में अगर ईरान और आर्मेनिया की सीमा पर अजरबैजान के साथ युद्ध शुरू होता है तो यह भारतीय व्यापार के लिए अच्छा नहीं होगा। लेकिन, अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। तालिबान शासन को अभी तक दुनिया के किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है। यह भी तय नहीं है कि तालिबान की सरकार भारत के साथ कैसे संबंध रखने वाली है। ऐसे में चाबहार का विकास सिर्फ तालिबान के साथ व्यापार के लिए करना भारत के लिए फायदे का सौदा नहीं होता।

ईरान पर अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। इस कारण भारत को चाबहार के विकास में कई मुश्किलें आईं हैं। इसके बावजूद भारत ने अमेरिका को मनाकर इस बंदरगाह के विकास कार्य को पूरा किया है। भारत ने अमेरिका के सामने दलील दी थी कि इस बंदरगाह को लेकर डील अमेरिकी प्रतिबंधों के पहले ही फाइनल हो गई थी। ऐसे में अब अमेरिकी प्रतिबंधों के डर के दुनिया के बहुत कम देश ही ईरान के साथ व्यापार कर रहे हैं। इस कारण भारत को चाबहार बंदरगाह के विकास में लगाई गई पूंजी को निकालने में काफी परेशानी हो रही है।