वर्तमान में भारत हूतियों के लिए चुप्पी साधे हुआ है! साल 2023 खत्म होने के करीब था। तभी अरब सागर में भारत के पश्चिमी तट पर मालवाहक जहाज एमसी केम प्लूटो पर ड्रोन हमले ने हलचल बढ़ा दी। इसके बाद भारत ने यहां तीन युद्धपोत तैनात कर दिए। इस बीच लाल सागर में भारतीय झंडा लगे एक दूसरे जहाज एमवी साईं बाबा पर एकतरफा ड्रोन हमला हुआ। अमेरिका ने दावा किया कि दोनों ड्रोन ईरान से दागे गए। दूसरी तरफ ईरान ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया। बेशक, भारत ने अब तक यही माना है कि हमलों के अपराधियों की पहचान नहीं हुई है। लेकिन, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यह भी कह चुके हैं कि व्यापारी जहाजों पर हमलों को अंजाम देने वालों को पाताल से भी खोजकर निकाल लाया जाएगा। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दोनों व्यापारी जहाजों पर हुए हमलों ने भारत की तेल सुरक्षा के महत्व को उजागर किया है। लाल सागर उन दो मार्गों में से एक है जो भारत की तेल आपूर्ति को सुनिश्चित करता है। दूसरा मार्ग फारस की खाड़ी है। लाल सागर में हूतियों के हमलों और अब फारस की खाड़ी में ड्रोन हमलों ने दुनिया की सबसे व्यस्त शिपिंग लाइन की कमजोरी को खोल दिया है। दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मर्स्क ने अगली सूचना तक लाल सागर के जरिये सभी कंटेनर शिपमेंट को रोक दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत हिंद महासागर में एक क्षेत्रीय शक्ति है। वह क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता है। इस प्रकार उसे यह सुनिश्चित करना है कि समुद्री व्यापार मार्ग सुरक्षित रहें। यह सही है कि भारत क्षेत्र में व्यापार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने की बात करता है। लेकिन, अपने घोषित उद्देश्य के बावजूद वह लाल सागर में सुरक्षा चुनौतियों का समाधान और नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाली समुद्री सुरक्षा पहल ‘ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्डियन’ में शामिल नहीं हुआ।
इसके दो कारण हैं। एक, लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के रुख को देखते हुए भारत हमेशा किसी भी गठबंधन में शामिल होने से सावधान रहा है। फिर अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन की तो बात ही छोड़ दें। अमेरिका-भारत के बीच रिश्ते 2008 से लेकर 2022 तक तेजी से फले-फूले हैं। इस दौर में ऐतिहासिक अमेरिका-भारत नागरिक परमाणु समझौते को अंतिम रूप दिया गया तो दोनों के बीच कई तरह की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर आपसी सहमति बनी। हालांकि, पिछले कुछ समय में स्थिति थोड़ी बदली है। नवंबर 2023 में भारतीय नागरिक पर अमेरिकी धरती पर एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया। इसने आपसी रिश्तों में कुछ जटिलताएं पैदा की हैं। तब से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गणतंत्र दिवस समारोह और क्वाड शिखर सम्मेलन 2024 के लिए भारत आने का न्योता ठुकराया है। शिखर सम्मेलन लगातार दूसरे साल भी संकट में दिख रहा है।
दूसरा कारण ईरान के साथ भारत के अपने रिश्ते हैं। साथ ही अतीत में ईरान के प्रति अमेरिकी पॉलिसी से मिले सबक भी। 2018 में संयुक्त व्यापक कार्य योजना जेसीपीओए से बाहर निकलने के बाद भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन किया था। ऐसा करते हुए उसने ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था। प्रतिबंध से पहले भारत ने 2 करोड़ 35 लाख टन ईरानी क्रूड ऑयल का आयात किया था। यह उसकी 2018-19 की कुल जरूरत का लगभग दसवां हिस्सा था। यही नहीं, भारत ने इसे काफी आकर्षक शर्तों और छूट पर आयात किया था।
जैसे ही भारत ने ईरानी तेल खरीद में कटौती की चीन ने इसका फायदा उठाया। भारत का रणनीतिक प्रतिस्पर्धी और दुनिया का सबसे बड़ा क्रूड आयातक चीन ईरान का नंबर-1 ग्राहक बन गया। 2020 और 2023 के बीच अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान का चीन को ऑयल शिपमेंट तीन गुना से ज्यादा हो गया। जबकि इस सबक ने यह सुनिश्चित किया कि भारत यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों पर पश्चिम को फॉलो नहीं करेगा। लेकिन, मिडिल ईस्ट में तनाव अब भारत के रणनीतिक और आर्थिक हितों को खतरे में डाल रहे हैं। खासकर ईरान के साथ। यही कारण है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ईरान का दौरा कर रहे हैं।
भारत ईरान में अपना निवेश बढ़ा रहा है। चाबहार बंदरगाह उसकी दिलचस्पी का एक प्रमुख केंद्र है, जहां सालों की मध्यस्थता के बाद भारत भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह में एक टर्मिनल विकसित करने के लिए बहु-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है। यह मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है।
यह दिलचस्पी भी एकतरफा नहीं है। ईरान भी भारत के साथ अपने ऊर्जा संबंधों को पुनर्जीवित करने का इच्छुक है। खासकर तब जब भारत बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक और उपभोक्ता बन गया है। ओपेक ने 2024 की पहली तिमाही के लिए तेल पर कटौती पर भी जोर दिया है। इसे देखते हुए भारतीय रिफाइनर अपनी तेल आपूर्ति में और विविधता लाएंगे। इससे नई दिल्ली और तेहरान को आपसी संबंधों को मजबूत करने में बढ़ावा मिलेगा।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भारत की घरेलू राजनीति पर काफी असर पड़ता है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से घरेलू ईंधन की लागत बढ़ जाती है। इसका असर बड़े पैमाने पर निम्न-आय वर्ग पर पड़ेगा। यह बदले में 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। इस तरह हमलों में ईरान का हाथ होने के अमेरिकी दावों से भारत का सहमत न होना न सिर्फ क्षेत्र में बल्कि घरेलू मोर्चे पर भी उसके आर्थिक और रणनीतिक हितों से गहराई से जुड़ा है। इसके अलावा इस मामले पर अपनी विदेश नीति की स्थिति बनाए रखना रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दिखाता है। यह उन लोगों के लिए भी एक रिमाइंडर है जो दुनिया को द्विध्रुवीय लेंस के जरिये देखते हैं। इस विचार के उलट अब एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था उभर रही है, जो मूल्यों से ज्यादा हितों पर आधारित होगी।